(सुशांत की याद और ये दिल बेचारा…)
– गौरव
पिछले एक महीने में वक्त का जो मरहम तुम्हारी यादों के घाव पर चढ़ाया था, एक पल में सब बेअसर हो गया. एक घंटे 40 मिनट की तुम्हारी कहानी ने उस घाव को सीन दर सीन फिर से कुरेद दिया. सच कहूं, उस अंधेरे कमरे में बैठ जब तुम्हारी आखिरी सौगात को आंखों के रास्ते अपने भीतर समेट रहा था ना, हर पल बस यही लग रहा था मानो तुम भी मेरे साथ उसी अंधेरे कमरे में बैठ अपनी चमकती-चुलबुली आंखों से मुझे वो सौगात समेटता देख रहे हो. और मेरे अंदर से उठते हर एक टीस के जरिए मानो मुझसे यही पूछ रहे हो – कैसा लगा मैं इस सीन में. और यकीन मानो, तुम राजा थे, राजा हो और राजा ही रहोगे. और राजा कभी मरा नहीं करते सुशांत…वो जिंदा रहते है, सदियों-सदियों तक…लोगों के दिलों में, अपनी कहानियों के जरिए, अपनी यादों के जरिये.
सुशांत के सिनेमाई सफर का आखिरी पड़ाव ‘दिल बेचारा’
पूरे एक महीने से जद्दोजहद चल रही थी भीतर, तुम्हारे आंखों की चुलबुली भंवर से आजाद होने की, ग्रीक के देवता सरीखे तुम्हारे मुस्कान के मोहपाश से बाहर आने की, किसी तरुण मृग सरीखे कुलांचे भरते तुम्हारे पलकों की चंचलता से दूर हो पाने की और देवलोक के दूत से तुम्हारी काया की सम्मोहित करने वाली तिलिस्म से निकल भागने की. इस कोशिश में अभी दो कदम भी ना चल पाया था कि तुमने फिर मैनी का रूप धर उसी मोहपाश में जकड़ लिया. वैसे भी तुम्हारी आभा से दूर हो पाना कहां संभव था इमैनुअल राजकुमार जूनियर. सच कहूं, दूर तो यह दिल खुद भी नहीं होना चाह रहा तुमसे, वह तो बस बचपन से सुनते इस एक लाइन के सहारे शायद भ्रम पाल बैठा था कि वक्त सारे घाव को भर देता है. पर नहीं, अब वक्त तो क्या, इस कायनात की कोई भी ताकत उस घाव को नहीं भर सकती. और ना मैं खुद उस घाव को भरने देना चाहता हूं. अगर तुम्हारी मोहक मुस्कान, तुम्हारे आंखों की चपलता, तुम्हारी जिंदादिली मेरे अंदर के उस दर्द को हमेशा जिंदा रखती है तो अब वह दर्द ही सही. अब उस दर्द को खुद के भीतर समेटे तुम्हारी आखिरी फिल्म की उसी फिलॉसफी के सहारे यह जिंदगी काटी जाएगी, जिसमें तुम कह गए, राजा साथ ना भी हो तो कहानी खत्म नहीं होती, कहानी चलती रहती है राजा की यादों के साथ, राजा की बातों के साथ, राजा के ख्वाबों के साथ. जाते-जाते भी तुमने इस कहानी के जरिए बता दिया कि जिंदगी का मजा केवल साथ जीने में ही नहीं, बल्कि किसी के ना होने पर उसकी यादों के साथ, उसके संग बिताए पलों के साथ चलने में भी है.
दिल की बात कहूं तो पूरी कहानी में तुम मुझे कहीं भी इमैनुएल राजकुमार जूनियर या मैनी दिखे ही नहीं, तुम तो हर फ्रेम में सुशांत थे, वही सुशांत जो किसी की जिंदगी में आता है, अपनी जिंदादिली से किसी की जिंदगी आबाद करता है, उसे हर पल जीने का हुनर सिखाता है और फिर जिंदगी को नए नजरिए के साथ जीने का नुस्खा बता कर वापस किसी और दुनिया में चला जाता है. वहां कोई इमैनुअल राजकुमार जूनियर नहीं था, वहां कोई मैनी नहीं नहीं था, वहां था तो बस सुशांत, जो हंसाता, रुलाता और जीने का सलीका सिखाता, चुपके से कानों में यह कह कर दूर निकल जाता है कि जन्म कैसे लेना और मरना कैसे हैं यह हमारे हाथ में नहीं, पर जिंदगी कैसे जीना है वह हमें खुद तय करना है. तुमने हम सबके ‘किजी बासु’ वाले फिलासफी को झटके में तोड़ दिया सुशांत, कि एक था राजा एक थी रानी, दोनों मर गए खत्म कहानी.
वादा रहा दोस्त, हर राजा की तरह तुम्हारी यह कहानी भी कभी खत्म नहीं होगी. दर्द भले सदियों तक इस दिल में जज्ब रहेंगे, पर आंखें हमेशा अपने राजा का स्वागत उसी मुस्कुराहट के साथ करेंगी.