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उदास समय में विदाई का आखिरी गीत इरफ़ान के लिए

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irrfan khan


-मुन्ना के पांडेय

प्यारे इरफान,

“रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई

तुम जैसे गए जाता नहीं कोई (कैफ़ी आज़मी)

उन आँखों में मैंने नवों रस और जीवन के तमाम भाव एक जगह देखे हैं – उसने कहा था, वह लौटेगा पर वादाखिलाफी कर गया. मैं एक क्षण को सन्नाटे में बैठता हूँ. एक-ब-एक उसका एक-एक किरदार, उसके भाव इरफान की जीवन से भरी आँखें…तैरने लगी हैं.

वह खड़ा है, दूर आर्मी वाली ड्रेस में उसका बेटा चला जा रहा है, वो जगह, वह ड्रेस कभी उसके हिस्से की थी. मुट्ठियों में पकड़ी रेत आखिरी कण तक फिसल गयी है, कुछ झाड़न भर हथेलियों से चिपके रह गए हैं…वह थोड़ी देर पहले ही अपने उस्ताद को कहकर लौटा है…आपकी गाली सुनने आ गया था कोच सर जी! और अपनी ट्रेक वाली वह तस्वीर अल्बम से फाड़ जेब में रख चुका है…जाते बेटे को देखते वह जान गया है कि वह नहीं लौट सकेगा. वह अब अपने बेटे को कभी नहीं देख सकेगा. ट्रेक फील्ड सब ज़िन्दगी के बीहड़ों के हवाले हो गई है अब उसको वहीं मिट्टी होना है…एक हल्की आह और वह लौट गया. यह आँखें जिनमें सारे जहाँ का दर्द उमड़ कर कोरों पर टिका है पर बेटे से सफाई से छिपा गया है. वह जा रहा है चला ही गया …पर उस ट्रेक फील्ड पर नए बच्चे कह रहे हैं…पानसिंह सर इसी पर दौड़ते थे…सूबेदार पानसिंह…उसकी आँखें देखीं? सारे जहाँ का सारा रस, सब भाव उस नटवर के हिस्से में ईश्वर ने डाल दिया…वह कितनी ‘अब क्या करें, भगवान ने मुझे आँख ही ऐसी दी है’…उफ्फ!!

काश! उस अंतिम विदा का वह क्षण ‘जाओ ढल जाओ रात के तारे…सीने में चुभते हैं उजाले…नींदों में खंजर…ख़्वाब हैं बंजर…जल गए चाँद तुम्हारे होsss जल गए चाँद तुम्हारे…रुक जाता,

यह समय तो नहीं था जाने का तुम्हें आज की विदा की अनुमति नहीं थी. शांत, संयत, चुप ऐसे विदा, महीनों से दर्द लिए…तुम्हारी चिट्ठी अब तक कलेजे पर चस्पां है. इरफान जाने क्यों साहिर की पंक्तियाँ भी झूठ लग रही हैं ‘जिस्म के मर जाने से इंसान नहीं मरा करते’…सौ कारण इश्क़ के तुमसे, सौ कारण नफरतों के तुमसे और कितने कारण फिदा होने के…किस एक किरदार में तुम साथ नहीं हो इरफान! अब शिकायतें हज़ार लो तुम…ऐसे नहीं जा सकते…मगर राजशेखर भाई की स्याही याद आती है कहीं वाकई दिल ख्वाब से तो नहीं गुजरा…

वो जो था ख्वाब सा/क्या कहें जाने दें/ये जो है कम से कम/ये रहे के जाने दें/क्यूँ ना रोक कर खुदको/एक मशवरा करलें/मगर जाने दे/आदतन तो सोचेंगे/होता यूँ तो क्या होता/मगर जाने दे!!.. माई ठीक कहती है, इतने प्यार बटोरने की भी जरूरत नहीं है नजर लग जाती है…अपनी माँ के पास ही चल दिए इरफान…अब सएच कहूँ तो न जाने क्यों धड़क लग गयी थी मुझे कल ही और देखो अच्छी चीजों के लिए कभी सच न हुई…ये यहाँ जाकर काली हुई है. आज 29 अप्रैल है आज कुछ लोगों ने कहा उल्कापात होगा…यही है वह उल्कापात…तुम भी उसी गीत का हिस्सा बन चल दिए – कल खेल में

हम हो ना हो/ गर्दिश में तारे रहेंगे सदा/ भूलोगे तुम भूलेंगे वो/पर हम तुम्हारे रहेंगे सदा…यह साल 2020 है, इस साल ने चौथे महिने तक में दुनिया से कितनी चीजें छीनी हैं और दिल आशंका में है न जाने कितना कुछ अभी और छीनेगा…यह क्षण, ये बात डिलीट क्यों नहीं होती, इरफान खान नहीं रहे…लगता है कोई साथी खो दिया गोया कोई अपना चला गया, माहे अप्रैल, साल 20 निकल जाओ जितनी जल्दी हो सके प्लीज…

मुस्कुराना वहाँ इरफ़ान उस दूसरी दुनिया उस पारलौकिक जगह पर तुम्हारा होना हमारा निजी नुकसान है यार…

अंतिम सलामी…तुम्हारे इस तरह एक्जिट लेने से शिकायतें, खीझ सब हैं पर प्यार तुमसे बेइंतहा रहा है, तुमने एक्जिट जल्दी मारी पर मंच पर जब तक रहे किरदारों के बादशाह रहे…इसलिए झल्लाहट भी अधिक हो रही है तुम्हें ऐसे नहीं जाना था ऐसे नहीं जाना था…पता नहीं आँख भी बरबस नम हो गयी और सब भारी भारी सा…

रेज़ो सेरेस की ग्लूमी संडे…ग्लूमी ट्यूसडे हो गया है…और दिल के दराज में तुम्हारा वह आखिरी ख़त अब अपना बयान, जोरो से मेरे कानों में तुम्हारी आवाज़ में, हल्की दर्दीली मुस्कान में, कह रहा है…

” इस बात को कुछ समय बीत चुका है जब मुझे पता चला कि मैं हाई ग्रेड न्यूरो एंडोक्राइन कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से पीड़ित हूं. मेरी शब्दावली में यह नया नाम था. मुझे पता चला कि ये एक दुर्लभ बीमारी है. वहीं इसके इलाज के बारे में भी ज्यादा जानकारी नहीं थी. जिसकी वहज से इसके इलाज पर मुझे संदेह भी ज्यादा है. अभी तक मैं तेज रफ्तार वाली ट्रेन में सफर कर रहा था. मेरे कुछ सपने थे, कुछ योजनाएं थीं, कुछ इच्छाएं थीं, कोई लक्ष्य था. फिर किसी ने मुझे हिलाकर जगा दिया. मैंने पीछे मुड़कर देखा तो वो टीसी था. उसने कहा आपका स्टेशन आ गया है. कृपया नीचे उतर जाइए. मैं कंफ्यूज था. मैंने कहा- नहीं नहीं अभी मेरा स्टेशन नहीं आया. उसने कहा- नहीं आपको अगले किसी भी स्टॉप पर उतरना होगा. “

– इरफान खान

मुझे अहमद फ़राज़ की लाइनें याद आ रही हैं –

वो जो ईक शख्स है मुँह फेर के जाने वाला/ तिरे होते हुए आ जाती थी सारी दुनिया/ आज तन्हा हूँ तो कोई नहीं आने वाला/

मुन्तज़िर किसका हूँ टूटी हुई दहलीज़ पे मैं/

कौन आएगा यहाँ कौन है आने वाला…

सच है …Wednesday is gloomy…

पर याद रहोगे खान साहब अपने किरदारों में हमेशा

2 thoughts on “उदास समय में विदाई का आखिरी गीत इरफ़ान के लिए

  1. बहुत ही बेहतरीन लेख सर …इस महान कलाकार का असमय जाना बेहद ही दुखद है|
    भावभीनी श्रद्धांजली

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