“मैं क्राइस्ट से ज्यादा स्मार्ट हूँ और मैं बूढ़ा होकर मरूँगा .” – द सरपेन्ट का नायक चार्ल्स शोभराज एक दृश्य में. ”
बीबीसी के साथ मैमथ स्क्रीन प्रॉडक्शन और नेटफ्लिक्स रिलीज ‘द सरपेंट’ आठ एपिसोड की एक सीरीज है जो सातवें और आठवें दशक के मध्य बिकिनी किलर कहे जाने वाले चार्ल्स शोभराज के कारनामों, अपराधों पर केंद्रित है. इसमें डच, अंग्रेजी, थाई और फ्रेंच जबानों का प्रयोग है जो कथ्य और उसमें वर्णित इलाके और उसकी संस्कृति के मद्देनजर प्रयोग में है . क्योंकि एशियाई हिप्पी ट्रेल चार्ल्स के अपराधों की उर्वर जमीन रहा लिहाजा इसके लिए ऐसा प्रयोग बेहद सटीक जान पड़ता है. खासकर जब आप एक जीवित किरदार और सत्य कथा के आसपास दृश्य पुनःसृजित कर रहे हों.
चार्ल्स शोभराज एक रहस्य, एक जुनूनी स्मार्ट खतरनाक अपराधी जिसके लिए अपराध शायद मनोरोग जैसा हो गया था. एक तरह का एडिक्शन और वह एडिक्शन सत्तर के दशक के हिप्पी ट्रेल का एक खतरनाक सच है जिसमें ज्ञात दो दर्जन यात्रियों ने अपनी जान गँवा दी, उन्हें इस चार्ल्स शोभराज नाम के आधे हिंदुस्तानी आधे वियतनामी ने बेरहमी से लूटा और कत्ल किया. वह आज भी नेपाल के एक जेल में अमेरिकन टूरिस्ट कोनी जो ब्रोंचिज और कनाडियाई टूरिस्ट लॉरेंट कैरीरे की हत्या की जुर्म में सन 2003 से उम्र कैद की सजा काट रहा है.
हालांकि यह दौर उसके जीवन के उत्तरार्ध का है जब एक तरह से उसके जीवन में सब सेट हो चुका था फिर वह नेपाल क्यों लौटा ? यह सच भी शोभराज के अलावा कोई नहीं जानता यद्यपि डच डिप्लोमेट के सिनेमाई किरदार के संवाद को माने तो उसे खुद पर सामने वाले को छकाने, धोखा देने और कैसी भी जगह से भाग जाने का अद्भुत हुनर होने का विश्वास ही उसे नेपाल लाया. पर फिलहाल वह कैद में है.
एक जीवित किंवदंती जिसका इतिहास इतना स्याह है कि उसमें उतरकर भी आपको स्पष्टतया कुछ नहीं मिलता. एक खराब बचपन और फिर अलग अलग जीवन परिस्थितियों में एक लड़का पेरिस में परवरिश पाता है. सौतेले बाप से भावनात्मक रूप से दूर पर जीवन में अपने हिस्से की एक कहानी बनाता जिसमें वह अपने अभाव को हर तरीके से भर लेना चाहता है. उसका किरदार कहता है -“पंद्रह साल की उम्र से न मेरा कोई था , न कोई मुझे चाहता था सबने मुझे ठुकराया . यहाँ तक कि दुनिया के हर देश ने भी . न पासपोर्ट ना ही कोई पहचान . सारी जिंदगी ऐसे ही बीती तो अगर मैं दुनिया का इंतज़ार करता कि वो मुझे अपनाएं तो आज तक इंतज़ार ही कर रहा होता . इसलिए मुझे जो कुछ चाहिए था मुझे हासिल करना पड़ा.” – संवाद किरदार के हैं चार्ल्स के हैं पर जैसे कि सच के कई कोण होते हैं तो इसका एक कोण इसकी माँ का भी है जो उस क्यूबेक लड़की मरी आंद्रे से कहती है – “वह केवल झूठ बोलता है .”
चार्ल्स पर इसके पहले हिंदी में एक फ़िल्म ‘मैं और चार्ल्स’ आ चुका है जिसमें रणदीप हुड्डा ने चार्ल्स की भूमिका निभाई थी. इस सीरीज की मुख्य भूमिका अल्जेरियन-फ्रेंच अभिनेता ताहर रहीम ने निभाई है. ताहर इसके पहले प्रोफेट में निभाए अपने रोल के अभिनय के लिए फ्रांस का सर्वोच्च फ़िल्म पुरस्कार माने जाने वाले पुरस्कार ‘सेसार’ से सम्मानित हो चुके हैं . बाफ्टा में राइजिंग स्टार का नॉमिनेशन भी इन्हें मिल चुका है. ताहर पूरी सीरीज को अपने कंधों पर लेकर चलते हैं और कई दृश्यों में यह अभिनेता बिना अतिरिक्त प्रयास के दर्शकों में सिहरन पैदा कर देता है. ब्रिटिश अभिनेत्री जेना कोलमैन मरी आंद्रे/मुनीक का किरदार निभाया है और कहना न होगा कि अपने मध्य के और विशेषकर अंत के दृश्यों में उनका अभिनय प्रभावित करता है. किरदार के भीतर के अंतर्द्वंद्व और आंतरिक संघर्ष को जेना ने बेहद खूबसूरती से निभाया है. यह वास्तविक जीवन की क्यूबेक की लड़की चार्ल्स के सबसे मुखर दिनों की साथिन रही और पछतावे में वापिस क्यूबेक में कैंसर से मरी. मरी आंद्रे का किरदार जेल में जब चार्ल्स से पूछता है –
‘तुम कभी खुद से पूछते हो कि तुमने क्या किया और हमने क्या किया ? या यहाँ बैठे-बैठे यही सोचते हो कि तुम्हारी जीत हुई है? …तुम्हारा अहंकार तुम्हारी .हर चीज पर भारी पड़ता है.’- दोनों मुख्य किरदारों का यह दृश्य सीरीज का अद्भुत बिंदु है. द सरपेंट के मुख्य किरदारों की बात करे तो यह चार अभिनेताओं के कंधे पर बेहद मजबूती से खड़ी है.
ताहर रहीम, जेना कोलमैन, बिली होवले (जिन्होंने डच डिप्लोमेट हरमन निपनबर्ग की भूमिका निभाई है) और चार्ल्स के राइट हैंड की भूमिका में अमेश अदीरेवेरा (जिन्होंने अजय चौधरी की भूमिका निभाई है) इसके अतिरिक्त अली खान,बिग बॉस फेम प्रवेश राणा और दर्शन जरीवाला छोटे छोटे लेकिन महत्वपूर्ण भूमिकाओं में हैं.
आप इस सीरीज के पहले एपिसोड से जुड़ते जाते हैं और अंतिम तक यह रोमांच बना रहता है तो इसके लेखकों रिचर्ड वारलौ, टोबी फिनाले और सीरीज निर्देशक हेन्स हर्बोट्स, टॉम शंकलैंड को पूरा श्रेय देना होगा जिन्होंने यह कथा बेहद सधे और संतुलित तरीके से कही है और सीरीज के नायक निःसंदेह ताहर रहीम को कैसे भुला जा सकता है. पत्थर जैसे चेहरे के साथ बर्फ सरीखी खामोशी वाले ठंडे और सामने वाले को भेद देने वाली देह भाषा के साथ ताहर हर दृश्य में एक अलग ऊँचाई छूते हैं .
वहाँ से ज़िंदगी शुरू होती है – Once again
अंतिम दृश्य में दिया जा रहा इंटरव्यू जितनी संजीदगी से लिखा गया है उतना ही संतुलित अभिनय उसके साथ न्याय करता दिखता है –
“- क्या आप एक खतरनाक आदमी हैं?
– पहले तो सवाल यह उठता है कि क्या मैंने खून किये हैं?
– क्या अपने किये?
– कोर्ट के फैसले के फैसले के हिसाब से नहीं. मुझ पर मुकद्दमे हुए. मुझ पर इल्जाम भी लगे लेकिन कोर्ट का फैसला बिल्कुल साफ है.
– पर ये तो मेरे सवाल का जवाब नहीं हुआ.
– मेरा जवाब यही है.
– पर कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनका मानना है कि आप बच गए.
– ऐसा टाइम मैगजीन का कहना है और शायद यही सच है क्योंकि अब दुनिया में कहीं भी मुझ पर मुकदमा नही चल सकता.”
चार्ल्स के कारनामों पर कई क्राइम लेखकों ने कलम चलाई है जिनमें रिचर्ड नेविल और जूली क्लार्क की ‘द लाइफ एंड क्राइम्स ऑफ चार्ल्स शोभराज बेहद चर्चित किताब है.
सीरीज में माइक्रो डिटेल्स कई दफे चौंकाते हैं. पाकिस्तान के दृश्य में बैकग्राउंड में ‘दीवाना हुआ बादल’ बज रहा है और जिन अखबारों, होटल्स, किरदारों, तस्वीरों, चिट्ठियों में जो जैसा दर्ज हुआ उसको बेहद नजदीक तक तैयार करके दर्शकों तक परोसा गया है. कुल मिलाकर यह इस लॉकडाउन की एक बढिया सीरीज है. अगर आप अपराध और थ्रिलर कथाओं को देखने के शौकीन हैं तो खासकर .
यह सीरीज समर्पित है ‘उन सभी साहसी लोगों के नाम, जो बड़े सपनों के साथ बाहर निकले थे और कभी अपने घर नहीं लौट पाए.’ ये सब अलग-अलग मौकों पर निर्मम तरीके से चार्ल्स का शिकार हो गए थे. चार्ल्स ने अपनी माँ से सत्य कहा था – वह बूढ़ा होकर मरेगा. नेपाल की जेल में उसके जीवन का आठवां दशक चल रहा है. बैकरेट और ब्लैकजैक खेलने के शौकीन ऐसे चालाक शातिर और किस्मत वाले अपराधी कम ही होते है. इस सीरीज को पहली फुर्सत में देख जाइये निराश नहीं होंगे.
सटीक और तार्किक समीक्षा
Good review. I have watched Randip Hoodda performance and it was worth watching. Watching the same story on Netflix never attracted me. After this review it’s tempting to watch the series.
Good Review.