
29 अक्टूबर को Zee5 पर Taish जिसे फिल्म के रूप में बनाया गया है लेकिन सीरीज की तरह भी कुछ छोटे-मोटे क्रिएटिव बदलाव के साथ रिलीज किया गया है. इसका जब ट्रेलर आया था तब इसके लिए मेरी दिलचस्पी के कारण डायरेक्टर बेजॉय नाम्बियार, फिल्म का कांसेप्ट और इसके स्टारकास्ट थे. लगभग 3 घंटे की ये फिल्म जो सीरीज के रूप में भी आई है. इस कारण दर्शकों को आसानी होगी या परेशानी वो खुद ही तय कर पाएंगे. मैं इसे फिल्म ही कहूंगा.

खैर! अब बात इस फिल्म की, कहानी आपको बताऊं तो आपको साधारण लगेगी, एक डॉक्टर का परिवार जहां शादी का माहौल है और दूसरी तरफ एक गैंगस्टर का परिवार है जहां शादी के बाद शिकायतों का माहौल. दोनों परिवारों के बीच की एक कड़ी के कारण दोनों परिवार बेहद बुरे तरीके से आमने-सामने आ जाते हैं. इसके बीच तैश (गुस्सा) भी अहम भूमिका में है. फिर शुरू होता है नफरत और बदले का खेल. बोला था न कहानी बड़ी साधारण सी लगेगी लेकिन दूर से जब आप कहानी को देखेंगे, महसूस करेंगे तब पता चलेगा कि इस एक कहानी में कई छोटी-छोटी कहानियां हैं. यही छोटी-छोटी कहानियां इस बड़ी कहानी को मजबूत बनाती हैं. हर किरदार के अंदर अपनी वजहें हैं नफ़रत और गुस्से की.
सबसे पहले बात पाली (हर्षवर्धन राणे) की जिसे जहान (संजीदा शेख़) से बेइंतहा मोहब्बत है लेकिन पारिवारिक कारणों से उसकी शादी उसके बड़े भाई से हो जाती है जिसके बाद पाली के अंदर गुस्सा और नफ़रत बैठ गया होता है. दूसरा किरदार रोहन कालरा (जिम सर्भ) जो पेशे से डॉक्टर है और पाकिस्तानी लड़की अरफा ( संजीदा शेख) से प्यार कर बैठा है और उसे अपने हिंदुस्तानी परिवार में फिट करना चाहता है. लेकिन रोहन के गुस्से की वजह उसके साथ हुई एक घटना है जो इस पूरे फिल्म के बवाल का मुख्य कारण है. तीसरा किरदार है सन्नी (पुलकित सम्राट) मनमौजी और सनकी है जो आव देखता है न ताव, बस जो जी मे आता है, कर देता है. उसके अंदर स्वाभाविक तैश है, वो खुद कहता है “मैं पटाखे की फैक्ट्री में माचिस की एक तिल्ली जैसे हूँ”. ये सब एक दूसरे से आमने-सामने आते हैं, एक दूसरे से भिंडते भी है लेकिन इस सबका अपना कारण और गुस्सा है. सभी मुख्य किरदारों ने हिस्से कुछ लाउड सीन आये हैं वो देखते वक़्त लगता है कि किरदारों को लिखते वक्त कितनी बारीकी से ध्यान दिया गया है.

इन छोटी-छोटी कहानियों को फिल्म के मूल कॉन्सेप्ट के साथ बेहतर तरीके से पिरोया गया है. कभी-कभी ये किरदार हमें अपनी कहानी से हमें भावुक कर देते हैं और जब आमने-सामने आते हैं जो किसका पक्ष लें, किसे सही मानें समझ नहीं आता. बड़ी ही खूबसूरत तरीके से स्क्रीनप्ले में तालमेल बैठाया गया है. ऊपर से जब उनसब के बीच आपके पास ऐसे बेहतरीन अभिनेता हों, तो कमाल होना ही है. हर्षवर्धन राणे जिन्हें आपने “सनम तेरी कसम” फिल्म में प्यार की नई परिभाषा गढ़ते देखा होगा ठीक उसी तरह इसमें भी अपने प्यार के लिए पागलपन और जुनून दिखाई पड़ता है, कुछ सीन्स ऐसे हैं जो आपके दिल में जगह बना लेंगे. वो प्रेमी के साथ-साथ एक गैंगस्टर भी बने हैं. आप उनसे प्यार भी करेंगे और नफरत भी. सब हर्षवर्धन के टैलेंट को देखा चुके हैं. अब उन्होंने एक कदम आगे बढ़कर इंडस्ट्री में अपनी कीमत साबित की है. उनके साथ संजीदा शेख की बॉन्डिंग आपके अंदर के तड़पते मोहब्बत पर सीधा वार करेगी. संजीदा ने इमोशनल सीन्स में बहुत प्रभावित किया है.

जिम सर्भ, इस फिल्म में वो एक जगह अपने साथ हुई घटना को बताते वक़्त बेचैनी में हकलाते हैं उस सीन ने बताया जिम किस स्तर के अभिनेता हैं. देखने में विदेशी एक्टर लगते हैं लेकिन हैं देशी ही. इन्हें आपने फिल्म पद्मावत में रणवीर सिंह के सहयोगी के तौर पर देख चुके हैं लेकिन वो उससे कहीं ज्यादा सीरीज ‘स्मोक’ और ‘मेड इन हेवेन’ के लिए पहचाने जाने चाहिए. सोनम कपूर की फिल्म ‘नीरजा’ में उन्हें पहली बार नोटिस किया गया था. वो मुझे व्यक्तिगत रूप से एक अलग और फ्रेश अभिनेता लगते हैं जिनमें खास एक्टिंग स्किल्स हैं. उनके साथ हैं कृति खरबंदा जो पाकिस्तानी रोल में पूरी तरह से रची बसी हैं, वेशभूषा और भाषा दोनों को पाकिस्तानी रखा गया है और वो अपने दिए रोल को अच्छे से निभा ले गई हैं. लंदन में रहने वाली ये पाकिस्तानी जो पेशे से डॉक्टर हैं, अपने बॉयफ्रेंड को ‘तू’ का जवाब भी ‘आप’ में देती हैं. हो सकता है मेकर्स ने सोचा हो वो भी तू रिप्लाई में देंगी तो शायद पाकिस्तानी वाला टेस्ट ना आये.
इसके अलावा जिन्होंने सबसे ज्यादा आश्चर्यचकित किया है वो हैं पुलकित सम्राट. उनके बारे में अक्सर कहा जाता रहा है कि वो सलमान खान की नकल करते हैं लेकिन इस किरदार ने उन्हें बिल्कुल ही अलग ला खड़ा किया है. इस किरदार में सनक और गुस्सा है और वो इस किरदार के लिए परफेक्ट हैं, मेकर्स के इस डिसीजन को सही साबित किया है. एक अहम किरदार में अभिमन्यु सिंह भी अपने कम्फर्ट जोन के आस-पास होकर भी काफी अलग दिखें हैं.

बिजॉय नाम्बियार इस तरह के सिनेमा में अपनी दावेदारी मजबूत कर रहे हैं. वो धीरे-धीरे अपना एक जॉनर क्रिएट कर रहे हैं. चाहें 2011 में आई फिल्म ‘शैतान’ हो या 2016 की ‘वज़ीर’. वो थ्रिलर फिल्मों को एक अलग रूप देने और उनमें इमोशन का तड़का लगाने में सफल हुए हैं. इस फिल्म का सबसे मजबूत पक्ष किरदारों के इमोशनल पक्ष ही है.
इसके बाद जो सबसे खास था वो फिल्म का संगीत जो फिल्म के स्वाद के हिसाब से था, शादी में डांस सांग भी फिल्म के मूड के आस-पास ही रहा. जितने भी गाने रहे वो फिल्म के साथ चलते मालूम पड़े. संगीत ने इसके इंटेंस को बनाये रखा. चाहे पाली और जहान के लव सीन्स हो या क्लाइमेक्स में मुख्य किरदारों की भिड़ंत, हर जगह संगीत दिल को छूने वाला है.
कमी की बात करूं तो कई दफ़ा ऐसा लगा कि काश इसे सीरीज को ध्यान में रख कर बनाया गया होता थोड़ा और विस्तार में इन किरदारों को महसूस करने का मौका दिया गया होता. जो ऐसे किरदारों को और देखना चाहते हैं उनके लिए ये शिकायत होगी और जो कम टाइम में सब चाहते हैं उनके लिए ये परफेक्ट होगी. कुछ घटनाएं जल्दी-जल्दी हो गईं, विदेश में सब देसी होना भी खटक रहा था, विदेशी पुलिस की मौजूदगी तो थी लेकिन वो देसी गैंगस्टर्स के आगे असहाय दिख रहे थे. ये भी कहा जा सकता है कि यहां कहानी में पुलिस का होना एक संयोग मात्र है, कहानी का फोकस कुछ और ही था. तो इसकी चर्चा बहुत जरूरी नहीं.
ये फिल्म (सीरीज) देखी जानी चाहिए इसलिए नहीं कि ये आपके मनोरंजन में कोई कमी नहीं करेगी बल्कि इसलिए कि ये अलग तरह के जॉनर को दर्शा रही है, जिसे मैं इमोशनल-थ्रिलर का नाम देना चाहूंगा. सीरीज के रूप में आई है और जहां आप 8 घंटे की सीरीज नॉनस्टॉप निपटा जाते हैं वहां ये तो बस 3 घंटे की ही है जिसमें आपको रोमांस-ड्रामा-एक्शन-सस्पेंस-थ्रिल सबकुछ मिल जाएगा लेकिन थोड़ा अलग तरह से.
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