दिल बेचारा में सुशांत सिंह राजपूत के साथ काम कर चुके अभिनेता दुर्गेश कुमार (Durgesh Kumar) से गौरव की खास बातचीत
सुशांत सिंह राजपूत, पिछले एक महीने से यह नाम केवल भारत ही नहीं, भारत से बाहर के सिनेप्रेमियों की रोजमर्रा की जिंदगी का एक हिस्सा हो गया है. बीते सदी में शायद ही कोई ऐसा अभिनेता रहा हो जिसने अपने जाने के महीनों बाद तक आम से लेकर खास, सभी को इस कदर रुलाया हो. सिनेमा से खास राब्ता नहीं रखने वालों के लिए भी सुशांत का जाना उनके दिल के किसी हिस्से के कट जाने सा लग रहा है. इसकी एक बानगी दो दिन पहले डिज्नी हॉटस्टार के जरिये रिलीज सुशांत की आखिरी फिल्म दिल बेचारा पर मिली लोगों की प्रतिक्रिया देखकर ही मिल जाती है. जिसने डिजिटल प्लेटफार्म पर रिलीज होने के बावजूद सिनेमा इतिहास के सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए. IMDB पर १०/१० रेटिंग्स के साथ दर्शकों की उमड़ी भीड़ ने डिज्नी हॉटस्टार जैसे प्लेटफार्म को घंटे भर के लिए क्रैश कर दिया. ये लोगों के दिलों में सुशांत के जाने का दर्द ही था जो प्यार बनकर बरबस लावे सा फूट पड़ा. इन्हीं ग़मगीन और फिल्म रिलीज के ख़ुशी भरे मिश्रित पलों में हमनें बात की सुशांत सिंह राजपूत की आखिरी फिल्म दिल बेचारा में उनके साथ काम कर चुके अभिनेता दुर्गेश कुमार से. दुर्गेश को आप पहले हाईवे, संजू और धड़क जैसी फिल्मों में देख चुके हैं. इस बातचीत में हमनें जानने की कोशिश की सुशांत के व्यक्तित्व के कुछ अनछुए पहलुओं के बारे में.
बातचीत कहां से शुरू करूं यह मेरे लिए सोच पाना खुद मुश्किल हो रहा है. भावनाओं को शब्दों में ना ढाल पाने की बेबसी है. आप खुद शुरुआत करें किस्सा पहली मुलाकात से.
सही कहा आपने, मेरी भी हालत कुछ वैसी ही है. पर यह भी एक सच्चाई है कि सुशांत के व्यक्तित्व को शब्दों में बांध पाना बहुत मुश्किल है. आज भी बखूबी याद है वो पहला पल जब मैं इस फिल्म के सिलसिले में उससे मिला था. सच कहूं तो उसके प्रजेंस से ही आपको किसी स्टार के साथ खड़े होने का एहसास होता था, मानो उसका जन्म ही स्टार होने के लिए हुआ हो. ऐसी आभा थी उसकी. अपने काम के लिए डेडिकेशन, किरदार की तैयारी के लिए डिटेल्ड प्रीप्रेशन, वक्त की पाबन्दी और जूनियर सह कलाकारों की रेस्पेक्ट, उसे अपने आप में एक स्टार का रुतबा दिलाती थी. वो एक ऐसे अभिनेता थे जिसके चार्म को देखकर आपको अपने अंदर कामयाब होने की ललक जाग उठती थी. ईमानदारी से कहूं तो वो हमारे जैसे एक्टर्स का सपना था जिसके आस-पास होने मात्र से यह एहसास होता कि मेहनत के दम पर किसी भी मुकाम को हासिल किया जा सकता है. वजह क्या रही उनके जाने की नहीं पता, पर उनका जाना हम जैसे अभिनेताओं के सपनों के मर जाने जैसा है. और उन सपनों को फिर से जिन्दा कर पाना उतना ही नामुमकिन है जितना दूसरे सुशांत का पैदा होना.
सेट पर भी आपने उन्हें काफी ऑब्ज़र्ब किया होगा. उनके कुछ और खास पहलुओं से रुबरु कराएं ?
उनके साथ तो बहुत ज्यादा शूट करने का मौका नहीं मिला, हमनें साथ में तीन या चार दिनों की शूटिंग ही की थी. पर जितने भी सीन साथ में किये वो सब फिल्म का अहम् हिस्सा थे. उनकी एक और सबसे खास खूबी थी और वो थी अपने किरदार और सीन की तैयारी. फिल्म में हम दोनों का साथ में एक मैलोड्रामैटिक एक्शन सीन है. मैं देखकर दंग रह गया कि जिस सीन के लिए सेट पर एक्शन मास्टर रखे गए थे उस एक्शन सीन को भी सुशांत खुद से कोरियोग्राफ कर लाये थे. उन्होंने खुद से कोरियोग्राफ किये एक्शन को जब एक्शन मास्टर के साथ साझा किया तो वो भी हैरान रह गए. ऐसा था उनका काम के प्रति समर्पण.
एक सवाल जो अंदर कुरेद रही है, जब पूरी टीम फिल्म रिलीज़ के इंतजार में हो उस वक़्त सुशांत का अचानक चले जाना. . .
(बीच सवाल में भावुक होते हुए), उस पल को तो मैं याद भी नहीं करना चाहता, जिस मनहूस घङी यह खबर मिली. अगर मेरे हाथ होता तो शायद उस पल को ही जिंदगी से निकाल फेंकता. सुशांत का जाना सिनेमा की कितनी बड़ी क्षति है इसका अंदाजा शायद लोगों को नहीं है. वो नवाज ( नवाजुद्दीन सिद्दीकी ) और मनोज बाजपेई की विरासत को कांधे पर उठा ले जाने वाला ऐसा कलाकार था जिसे कमर्शियली सफलता हासिल थी. और ऐसा बिरले ही होता है. वो आर्ट और कमर्शियल सक्सेस का अद्भुत मेल था. अगर आपने दिल बेचारा देखी है तो आपको थिएटर के अंदर रजनीकांत की फिल्म देख रहे सुशांत के उस सीन से मेरी बात का अंदाजा बखूबी हो जायेगा. आज का कोई कमर्शियल सक्सेसफुल हीरो शायद ही वैसे किसी सीन को करने की हिम्मत दिखा पाए जिस पूरे सीन में सुशांत ने नाक से गिरती गंदगी और आंखो से टपकते आंसुओं को बिना झिझक अपने स्टारडम के ऊपर लपेट दिया. वो एक सीन सुशांत को अपने समकालीन सारे स्टार्स से कई गुना आगे ला खड़ा करता है.
कल जब आपने दिल बेचारा देखी उस वक़्त सुशांत के ना होने का एहसास स्वीकार कर पाना बड़ा मुश्किल रहा होगा ?
बगैर सुशांत के दिल बेचारा देखने का एहसास ही डरावना था. पूरी फिल्म के दौरान हर पल मन इस उम्मीद में रहा कि काश सेट पर की गयी मस्ती की तरह वो कहीं से निकल आता और रजनीकांत की तरह बालों को झटकते हुए फिर से कहता अरे यार वो सारी खबरें झूठ थी, मैं कहीं नहीं गया, मैं अब भी यहीं हूं तुमलोगों के साथ. खुशकिस्मत हूं कि उनकी आखिरी फिल्म में उनका साझेदार रहा पर दिल में एक बात की टीस रह गयी. एक अरमान अधूरा रह गया. पूरे शूट के दौरान उनके साथ एक भी तस्वीर नहीं ले पाया. सोचा था फिल्म के प्रीमियर स्क्रीनिंग पर अपना वह अरमान पूरा कर लूंगा, पर कहां पता था मेरा वो अरमान मेरे दिल में टीस बनकर पूरी उम्र के लिए मेरे साथ रह जाएगा.