-रूचि शशि राय
जेठ की तपती दोपहरी, सर पर भारी गठरी, डामर की धधकती सड़क पर दम तोड़ती हिम्मत. नन्हे बच्चों की भूख से बिलखती आँखें. ये सब काफी है ये एहसास दिलाने के लिए कि इंसान का सिर्फ एक गुनाह है, वो है ‘गरीबी’. एक तरफ पेट की आग थी तो दूसरी तरफ विकराल रास्तों को पत्थर बन चुके पैरों से लांघते हौसले. तभी कोई देवदूत बन कर आया, कोई ऐसा जिसने कहा ‘फिक्र क्यों करते हो दोस्त, मैं पहुंचाऊंगा तुम्हें मंजिल तक’. और यहां से शुरू हुआ पर्दे के खलनायक के महानायक बनने का सफर. 40-50 डिग्री की गर्मी में हिम्मत छोड़ते लाखों मजदूरों के लिए सोनू सूद ही असली महानायक हैं. सोनू ने पिछले कई दिनों से लॉकडाउन की वजह से फंसे मज़दूरों को घर पहुंचाने का बीड़ा उठाया है. वो उनके लिए बस से लेकर खाने-पीने की चीज़ों तक का इंतज़ाम भी कर रहे हैं. इन हताश और निराश लोगों के लिए सोनू किसी मसीहा से कम नहीं. इन दिनों सोनू का कर्म क्षेत्र है उनका ट्विटर अकाउंट. ट्विटर पर लोग उनसे मदद की अपील कर रहे हैं और सोनू एक अच्छे दोस्त और भाई की तरह हर ट्वीट का जवाब दे रहें हैं. वैसे तो भारत में फिल्म स्टार्स का क्रेज लोगों के सिर चढ़ कर बोलता है. यहां ऐसे कई एक्टर्स हैं जिन्हें लोग भगवान मानते हैं. पर पहली बार बड़े पर्दे के एक खलनायक का मंदिर बनने की बात हो रही है. सोनू के लिए प्यार का आलम यह है कि बिहार के सिवान में लोग उनकी मूर्ति बनवाने की तैयारी कर रहे हैं. यह बात और है कि जब ये बात सोनू को पता चली तो उन्होंने लोगों से अपील की कि आप मूर्ति बनवाने के बजाए उस पैसे से लोगों की मदद करें. हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ कि कोई फिल्म स्टार आपदा के समय में लोगों की मदद कर रहा है. तो आखिर हुआ क्या जो रातोंरात एक खलनायक यूं महानायक बन गया. दरअसल सोनू ने सबसे पहले जुहू के अपने होटल को कोरोना वारियर्स के रहने के लिए खोल दिया. फिर रोजाना हजारों लोगों के खाने का इंतजाम किया और अब प्रवासियों को उनके घर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी उठाई है. सोनू अब लोगों से सीधे जुड़ चुके हैं. वो हर ट्वीट का तुरंत जबाव देते हैं. परेशान लोगों की जिम्मेदारी उठा रहे हैं जबतक कि वो घर ना पहुंच जाएं.
सोनू ने एक इंटरव्यू में बताया कि ‘जिन मजदूरों को हमने सड़कों पर छोड़ दिया. ये वो लोग हैं, जिन्होंने हमारे घर बनाए, जिन्होंने हमारे लिए सड़कों का निर्माण किया. हमने उनके बच्चों, उनके माता-पिता के साथ उन्हें सड़कों पर छोड़ दिया. हम उनके बच्चों के जहन में वो यादें डाल रहे हैं, जब वो बड़े होंगे तो याद करेंगे कि हजारों किलोमीटर पैदल चलकर बड़ी मुश्किल से अपने घरों में पहुंचे और कुछ लोग तो पहुंच भी नहीं पाए. मुझे लगा कि इन लोगों को ऐसे नहीं छोड़ सकते. हमें इनके लिए कुछ करना चाहिए.’ सोनू के लिए लोगों की दीवानगी का आलम ये है कि कोई सरकार से उन्हें भारत रत्न देने की मांग कर रहा है तो कोई रेत पर उनकी आकृति उकेर उनका धन्यवाद कर रहा, कोई उन्हें पीएम बनाने की मांग कर रहा तो किसी का कहना है कि अब सोनू को फिल्मों में खलनायक का रोल नहीं देना चाहिए क्योंकि वो सुपरहीरो हैं और इस त्रासदी में मदद का हाथ बढ़ाने वाले महानायक. इंटरव्यू के दौरान ही सोनू ने बताया कि एक प्रवासी महिला उस वक्त प्रेग्नेंट थी जब उन्होंने उसके लिए घर जाने का इंतजाम किया. बाद में महिला ने बच्चे को जन्म दिया तो उसने बच्चे का नाम सोनू सूद रखा. सोनू इस मुहीम में अब अकेले नहीं है. एक अखबार से सोनू ने कहा, ‘हमने हाल ही में एक हेल्पलाइन नंबर शुरू किया है, जिस पर हमें संकटग्रस्त प्रवासियों के कई फोन आ रहे हैं. जैसे ही मुझे फोन आता है, मेरी पत्नी सोनाली इसे नोट कर लेती है और मेरे बच्चे ईशान और अयान भी इस बात की एक सूची बना लेते हैं कि कौन किस बस में जाएगा. हम सब एक टीम के रूप में इसमें शामिल हैं.’ हर तरफ सोनू सूद के चर्चे है सोशल मीडिया, टीवी, अखबार मजदूरों के घर पहुंचने की खबरों से पटे पड़े हैं. पर इन सबसे दूर कोई है जो नहीं चाहता कि कहीं उसकी तरीफ में कसीदे पढ़े जाएं. उसकी लोगों की मदद करने की कोशिशों पर कोई खामखां सियासत करे. वो बस जुटा हुआ है किसी मासूम के चेहरे पर मुस्कान लाने में…और यही तो है असली महानायक की पहचान…
2 thoughts on “सोनू सूद: परदे का खलनायक, पर असल में महानायक”
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