अगर आप पर मिर्जापुर के दूसरे सीजन की खुमारी चढ़ी हुई है तो मैं बता देना चाहता हूं कि वेब सीरीज की दुनिया में Scam 1992 को एक कल्ट सीरीज का दर्जा जरूर मिलना चाहिए.. मेरी नजर में इसकी स्टोरी, स्क्रीनप्ले, प्रेजेंटेशन, कैमरा वर्क, बैकग्राउंड म्यूजिक और इसकी कास्टिंग के साथ-साथ उन सभी का अभिनय, हर पक्ष को इतने बारीकी के साथ गुथा-बुना गया है कि आप बिग बुल ‘हर्षद मेहता’ के शेयर बाजार से निकल कर, टाइम्स ऑफ इंडिया की सुचिता दलाल के पत्रकारिता में, फिर सीबीआई इन्वेस्टिगेशन में अच्छे-अच्छों की पैंट गीली करने वाले ‘माधवन’ तक बिना भटके खोए चले जायेंगे. ऐसे ढ़ेर सारे किरदार हैं जिसपर ढ़ेर सारी बातें लिखी जा सकती हैं और लिखी जानी चाहिए.
इस सीरीज की कहानी 80-90 के दशक में भारत के सबसे बड़े स्टॉक ब्रोकर हर्षद मेहता पर है. एक आम इंसान का स्टॉक मार्केट का बिग बुल बनना और उस बिग बुल का भारत के सबसे बड़े बैकिंग स्कैम से नाम जुड़ने के बीच की दास्तां है ‘स्कैम 1992’. ये पूरी तरह से हर्षद मेहता की बॉयोग्राफी है. जिसमें उनकी जिंदगी के हर पहलू को बड़ी बारीकी से दर्शाया गया है. कैसे एक गुजराती जो मुंबई के छोटे से घर में परिवार के साथ रहकर बड़े सपने देखता है और एक दिन उन सपनों को पूरा भी करता है. वो शून्य से शिखर और फिर शिखर से शून्य की ओर आता है. ये सीरीज हर्षद मेहता की कहानी के अलावा उस समय की राजनीति, अर्थव्यवस्था और बैकिंग सिस्टम को बड़ी बेबाकी से दिखाने में कामयाब हुई है. आज जहां पत्रकारिता के स्तर को लेकर बातें होती हैं वहीं इसमें पत्रकारिता के स्तर और उसकी ताकत को भी समझने अवसर देगी ये सीरीज.
इस सीरीज के क्रिएटर ‘हंसल मेहता’ उस्ताद हैं. भाई आजतक मुझे शेयर बाजार का खेल समझ ही नहीं आया था, न्यूजपेपर में बिज़नेस वाला पेज हमेशा बिना पढ़े पलटने वाले इंसान को बड़ी सरलता से सब कुछ समझा दिया। मतलब जो किया बेमिसाल है. अब बात इस सीरीज के बिग बुल की। ‘हर्षद मेहता’ के रोल में ‘प्रतीक गांधी’ ने एक बड़ी और लंबी लकीर खींची है. कल तक इस नाम को कम ही लोग जानते थे लेकिन इस सीरीज को अगर एक बार भी या इसका एक एपिसोड भी देख लिया तो ये बंदा आपके दिलो-दिमाग में मजबूती से बैठ जाएगा. इस साल के बेहतरीन परफॉर्मेंस में से एक है. इस साल क्या ये परफॉर्मेंस हमेशा के लिए यादगार हो गई है। पत्रकार सूचिता दलाल के किरदार में ‘श्रेया धन्वंतरी’ का काम बढ़िया है, वो इस सीरीज की कड़ी हैं और इस कड़ी ने मजबूती से बांधा है. हर्षद के भाई ‘अश्विन मेहता’ की भूमिका में हेमंत खेर हैं और वो सहयोगी भूमिका में बेहतरीन दिखे हैं. इस सीरीज में कई पुराने और मंझे हुए कलाकार छोटे ही सही लेकिन मजबूत किरदारों में दिखे हैं जो इसके स्तर और बढ़ाते हैं. चाहें वो सीबीआई ऑफिसर के रोल में ‘रजत कपूर’ हों या मुन्ना मुंद्रा के रोल में सतीश कौशिक. इसमें अंजली बरोट, चिराग वोहरा, जय उपाध्याय, केके रैना, निखिल द्विवेदी, अनंत नारायण, परेश गनत्र, कविन दवे, ललित परिमू इत्यादि बेहतरीन कलाकार हैं. यहाँ तक को खुद डायरेक्टर हंसल मेहता एक सीन का हिस्सा बने हैं हालांकि उन्हें जल्दी कोई नोटिस नहीं कर पायेगा. वेब सीरीज ‘द फैमिली मैन’ में अहम भूमिका में दिखे ‘शारिब हाशमी’ का बस एक छोटे से लेकिन जरूरी किरदार के लिए दिखना बताता है कि इसकी कास्टिंग कितनी तवज्जो दी गयी है.
इसके सेट और डिज़ाइन पूरे 80-90 के दशक के लगते हैं, किरदारों के पहनावा उनके अंदाज, लोकेशन इस पर भी मेहनत दिखाई देती है. कैमरावर्क बिल्कुल अलग की अंदाज का है मतलब कमाल. कुछ लोग सोचेंगे ये कोई एडवेंचरस या एक्शन सीरीज तो नहीं फिर क्या खास कैमरावर्क होगा. लेकिन अगर आप जरा भी तकनीक या कैमरे की कलाकारी को समझते होंगे तो आपको कई चीजें खास और अलग लगेंगी. डायलॉग ऐसे की आप अंदर ही अंदर तालियां बजाने वाली फीलिंग लेंगे. जब-जब हर्षद मेहता स्क्रीन पर बिग बुल वाले अंदाज में दिखेंगे आपका सीटी मारने को मन तो होगा लेकिन सिनेमाहाल में न होने की वजह से सिर्फ मुस्कुरा कर रह जाएंगे. हालांकि एक जगह एक डायलॉग मुझे खटक रहा था जहां हर्षद मेहता अपनी कंपनी ‘ग्रो मोर’ की आईपीएल बनाने की बात करते हैं. उस आईपीएल का मतलब क्या था वो मेरी समझ के बाहर था.
अगर मजबूत पक्ष की बातें की जाएं तो एक और मजबूत पक्ष है इसका बैकग्राउण्ड म्यूजिक, जो पूरे सीरीज में आपको थ्रिल वाली फीलिंग देता है. बहुत दिनों बाद कुछ ऐसा लगा जिसे बस सुनते रहने को मन हुआ. एकदम इस सीरीज के कंटेंट के मूड के हिसाब का. इसे देखते हुए ‘लियोनार्डो डिकैप्रियो’ की हॉलीवुड फिल्म ‘द वुल्फ ऑफ द वाल स्ट्रीट’ की याद आ सकती है लेकिन विषय एक जैसा होना और एक ही होने में अंतर होता है.
इतने सारे हाइप बनाने वाली फिल्मों और वेब सीरीज के बीच ये चुपके से इंडियन सिनेमा को वैश्विक सिनेमा के बराबर खड़ा करने का माद्दा रखती है. हो सकता है आपको लग रहा हो कि कुछ ज्यादा ही तारीफों के पूल बांध दिये गए हैं जैसे कोई कमी ही ना हो इसमें, परफेक्ट तो कोई चीज होती ही नहीं लेकिन जब आप ‘हॉउस ऑफ कार्ड्स’ और द क्राउन’ जैसे सीरीज को इतना तवज्जो देते हैं. तब उसी दर्जे की अपने देश में कम संसाधनों और बिना बड़े स्टारकास्ट की आयी ऐसी सीरीज जो हर सिनेमाई पैमाने पर खरी उतरती हो उसके तारीफ में लंबे लेख लिखने में मुझे कोई गुरेज नहीं. और हाँ मुझे व्यक्तिगत रूप से इसके टाइटल ट्रैक ने दीवाना बना दिया है बिना स्किप किये हर एक एपिसोड में सुना मैंने..
सीरीज 10 एपिसोड की लंबी है लेकिन कहीं भी आपको बोरियत महसूस नहीं होने देती.मेरी ओर से ये जरूर देखी जाने वाली सीरीज है. मिर्जापुर का फीवर चढ़ा हो, कोई बात नहीं, मिर्जापुर देखने के बाद जब वो फीवर उतर जाए तभी देख लेना.. लेकिन देख जरूर लेना…
और हां मेरे कहने के बाद मिर्जापुर से पहले देखने का रिस्क लेने वालों याद रखो ‘रिस्क है तो इश्क़ है’