कुछ अलग-अलग पृष्ठभूमि के युवा हैं, सब एक साथ एक मंच पर आते हैं और एक बैंड बनाते हैं जिसका नाम है – मलंग. मलंग बैंड ने बेहद कम समय में संगीत की दुनिया में अपनी ख़ास किस्म की गायकी और उसमें किए जाने वाले प्रयोगों से अपनी एक विशिष्ट पहचान बनायी है. इस बैंड के लीड गायक, गीतकार, कम्पोजर और बेहद कम उम्र के युवा दीप्तांशु तिवारी ने भारतीय संगीत की विरासत को एक नए अंदाज में प्रस्तुत किया है. यह सच है कि बढ़ते बिरवों को नापा नहीं जाता पर यह भी सच है कि दीप्तांशु और उनके बैंड ‘मलंग’ ने इधर कुछ समय से अपनी अनूठी प्रस्तुतियों से सबका ध्यान खींचा है और तारीफें पायी हैं. अभी इस बैंड और दीप्तांशु का सफ़र लंबा है पर उन्होंने अपने सफ़र के एकदम शुरुआत में ही अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर यह साबित कर दिया है कि वे लंबी रेस के घोड़े हैं. बीते दिनों कोलकाता स्थित उनके घर पर उनसे हुई बातचीत के अंश.
-सबसे पहले तो आपने बैंड और इसकी हालिया प्रस्तुति “बुल्लेया” से सबका ध्यान अपनी ओर खींचा है, इसके लिए आपको बधाई. अब आप हमारे पाठकों को यह बताइए कि एक ऐसे मध्यवर्गीय परिवार में जहाँ इंजीनियर, डॉक्टर, सिविल सर्वेंट, सरकारी नौकरी जैसे सीमित दायरे के ख्वाब होते हैं वैसे में इंजीनियरिंग और फिर नौकरी के बाद इस क्षेत्र में आने के फैसले पर आपके माता-पिता की क्या प्रतिक्रिया थी?
– तारीफ के लिए शुक्रिया, बहुत-बहुत शुक्रिया. आपके सवाल की बात करूँ तो आपको जानकर हैरानी होगी कि मुझपर ऐसा कोई दबाव कभी रहा ही नहीं. बचपन से आसपास के छोटे-बड़े कल्चरल आयोजनों में, रिश्तेदारों के बीच गाते रहने की आदत और घर वालों के प्रोत्साहन ने भी स्टेज वाला डर या संकोच मुझ पर आने नहीं दिया. आपको एक और कमाल की बात बताऊँ कि इंजीनियरिंग के तीसरे साल में जब मुझे लगने लगा कि यह मेरी दुनिया नहीं तो इंजीनियरिंग छोड़ने तक का मूड बना लिया था और इस बारे में जब मैंने अपनी माँ को बताया तो उन्होंने कहा ठीक है पर एक काम एक वक्त में करो. फ़िलहाल इंजीनियरिंग कम्प्लीट कर लो उसके बाद अपने मन की कर लेना. जहाँ तक पापा का सवाल है तो वह बेहद संजीदा और कम बोलने वाले व्यक्ति है. मैं जो कुछ भी करने को कहता हूँ तो वह सीधे हाँ ही कहते हैं कि तुम्हे ठीक लगता है तो करो. सच कहूँ तो लकी हूँ, जो मुझ पर कोई बेजा दबाव नहीं रहा.
-आपके पास इंजीनियरिंग की डिग्री है फिर अच्छे खासे बायजुज जैसी कंपनी की जमी-जमाई नौकरी छोड़कर अपना बैंड बनाने का ख्याल कैसे आया?
-चूँकि मेरा बैकग्राउंड मध्यमवर्गीय फैमिली का है तो मेरे सामने यह सवाल था कि अगर मैं एक ठीक नौकरी छोड़कर अपने पैशन, अपने ख्वाब के पीछे जाता हूँ, तो कम से कम इतना कमा लूं कि अपने संघर्ष के दिनों में खुद को सपोर्ट कर सकूं. वर्ष 2017 में बैंगलोर जाने और बायजुज में काम करने के बाद मैं यह महसूस करने लगा था कि जो मेरा लक्ष्य है उससे मैं दूर जा रहा हूँ. पैसे तो मैं कमा रहा था रियाज़ की कोई सुविधा नहीं थी और ये नाइन टू फाईव की नौकरी वाली मानसिकता ठीक नहीं. फिर मैंने वापिस कोलकाता आने का फैसला कर लिया और यही सोचा कि वही काम किया जाए जो दिल को सही लगता है और जिसमें अधिक ईमानदार हूँ.
-दूसरे तमाम बैंड्स के बीच आपके बैंड की खासियत क्या मानी जाए?
-हमारे देश की जो सांगीतिक विरासत है वह है राग संगीत. चूँकि मैं क्लासिकल ट्रेंड और घरानेदार गायक हूँ तो मैं और मेरे साथी कलाकरों की यही कोशिश रहती है कि हम राग आधारित गानों की प्रस्तुति करें. हम सूफी गीत, कव्वाली, बॉलीवुड भी नम्बर्स करते हैं पर वह कोई भी अपने ओरिजिनल फॉर्मेट में न होकर हमारे तरीके का होता है. और यह प्रयोग लोगों को ख़ासा पसंद भी आ रहा है.
-क्या आप अपने बैंड में सेमी क्लासिकल फ्यूजन या बॉलीवुड ट्रेडिशनल नम्बर्स में ही प्रयोग करके ही अपने परफोर्मेंस देंगे या कोई और इरादा है?
-हम रागों पर आधारित गाने गाने की कोशिश करते हैं क्योंकि राग मौसम और दिन के अलग-अलग समय और मानव मन के भाव और विभिन्न रसों मसलन, श्रृंगार, वीर, भक्ति के हिसाब से क्लासिकल अंकों के साथ सूफी संतों बाबा बुल्ले शाह, बाबा फरीद की गीतों को, कव्वाली को प्रस्तुत करते हैं. हमारे बैंड का उद्देश्य यही है कि हम संगीत के द्वारा लोगों तक केवल मनोरंजन न पहुंचाए. क्योंकि लोग हमें केवल सुनने देखने ही नहीं आते. बल्कि उसके साथ साथ हमारे देश की इस अद्भुत सांगीतिक परम्परा राग संगीत और इस रागों पर आधारित जितने काम हो रहे हैं, या जितने लोगों ने काम किया है उन रागों का नेचर के साथ, मनुष्य के साथ क्या मेल है, यह भी संप्रेषित करें. उदाहरण के रूप में आपने सुना होगा एक राग है-राग मेघ मल्हार. इस राग में कुछ ऐसी बात है कि इसके सुर की जो कोम्बिनेशन है, वह कुछ नमी, कुछ ठंडक प्रदान करती है और यह भी सुनते हैं कि मियाँ तानसेन जब यह राग गाते थे तो बारिश हो जाती थी. तो यह जो विजुअल म्यूजिक ऑफ़ इंडिया है कि एक राग, एक साधक इतने वर्षों की मेहनत के बाद बनाता है और उसे जब लोगों के सामने प्रस्तुत करता है तो प्रकृति के साथ उसका ऐसा तालमेल बिठाता है कि कालजयी हो जाता है. हम अपने संगीत को उसी समृद्ध विरासत के साथ आगे लाना चाहते हैं जहाँ मनुष्य और प्रकृति का सहचर भाव स्थापित हो सके. केवल मनोरंजन नहीं.
-आपने इस क्षेत्र में आने से पहले इंजिनियरिंग की डिग्री तो ली है पर क्या संगीत की भी विधिवत तालीम ली है?
-मैं बीटेक में 2013 में गया. ए आई ई ई ई में मेरी रैंक आई थी और उसके थ्रू मैंने बंगाल के टेक्नो इंडिया यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया. बीटेक में दाखिला लेने के पहले हफ्ते में ही मैंने हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की तालीम लेनी शुरू कर दी थी. मैंने प्रारम्भिक तालीम श्री कुमार मुखर्जी जी से ली और अभी मैं पंडित नवदीप चक्रवर्ती जी से सीख रहा हूँ जो कि कसूर पाटियाला घराने से ताल्लुक रखते हैं. सुतब बड़े गुलाम अली खान साहब इस घराने के स्थापक हैं. अभी मैं रवीन्द्र भारती यूनिवर्सिटी से एम. ए. इन वोकल म्यूजिक की शिक्षा भी ले रहा हूँ. मुझमें सीखने की ललक सतत है और यह मैं कभी छोड़ भी नहीं सकता. बिना तालीम ज़माने के आगे आना धृष्टता होती और मैं या मेरे बैंड के लोगों ने पूरी तैयारी के साथ ही अपना परफॉरमेंस देना शुरू किया है और शायद यही वजह है कि हमें अपने हर प्रस्तुति से दर्शकों और सुनने वालों की ओर से पॉजिटिव फीडबैक मिले हैं.
-अपने बैंड के अन्य सदस्यों के बारे में बताइयें. ये अलग-अलग मूड मिजाज के लोग एक साथ एक मंच पर एक बैंड समूह के रूप में कैसे आए?
-हमारे बैंड में मुझे लेकर छह लोग हैं और हमारे बैंड का नाम है – मलंग. आपको जानकार मजेदार लगेगा कि मैं मूलतः बिहार के गोपालगंज जिले का हूँ और मेरे साथी बंगाल के हैं तो यह एक अद्भुत मिश्रण है एक शानदार रंग वाली टीम है. विचारों की, संगीत की भी विविधता है. एक मूड के लोग ठहरे जिनकी जिंदगी संगीत के आसपास घूम रही थी सब मलंग एक साथ एक टीम हो गए हैं. बहुत प्यारी और योग्य लोगों की मेहनती टीम है.
-आपने हाल ही में एक गुजराती फिल्म में गीत भी गाया है? कुछ इसके बारे में बताइए. क्या आप बैंड के अलावा सिने जगत के लिए पार्श्वगायन और म्यूजिक कम्पोज करने का इरादा भी रखते हैं?
– गुजराती फिल्म ‘चल जीवी लईये’ में पार्श्व गायन करना मेरे लिए शानदार अनुभव रहा. मैं दरअसल पिछले साल दिसंबर में मुंबई में था तो वहाँ के एक सीनियर और मेरे आदरणीय श्री राजीव जे भट्ट, जिन्हें मैं राजीव अंकल बोलता हूँ, वह एक म्यूजिक कम्पोजर, म्यूजिक डायरेक्टर और बैकग्राउंड स्कोरर भी है, उन्होंने सोनू निगम अलका याग्निक जी और कई अन्य दिग्गजों के साथ दुनिया भर में भ्रमण किया है और परफॉर्म किया है. मैं उनको अपना मेंटर मानता हूँ . मैं उनसे मिलने मलाड में उनके स्टूडियो गया हुआ था. हमारी ऐसे ही बातचीत हो रही थी कि मैं उनसे टिप्स ले रहा था कि अंकल इस एरिया में कैसे और बेहतर किया जाए, क्या और करूँ, क्या बदलाव करना चाहिए या क्या और सीखना चाहिए आदि. तो हमारी बातचीत खत्म हुई उन्होंने बेहद आत्मीयता से बताया, गाईड किया और अंत में मुझे कहा कि एक गाना है क्लासिकल बंदिश है उसे रिकॉर्ड करना है एक सीन के लिए तो क्या तुम कर पाओगे? तो मैं चौंक गया कि इतना बड़ा मौका अंकल ने सामने से दिया है जिसके लिए मैं तैयार नहीं था. फिर भी मैंने राग यमन में एक बंदिश ‘पिया की नजरिया जादू भरी’ को रिकॉर्ड किया. और आप सबको जानकार आश्चर्य होगा कि यह फिल्म गुजराती सिनेमा में माईलस्टोन बनी. ब्लाकबस्टर बनी. तो सिनेमा में ये मेरा पहला प्रयास था, जिसमें मैंने किसी फिल्म में अपनी आवाज़ दी. खुशकिस्मती देखिए कोलकाता में जहाँ में रहता हूँ, उस घर के ठीक सामने एक सिनेमा हॉल है, उसमें यह फिल्म लगी थी तो बड़े परदे पर भी अपनी आवाज सुनकर यह विश्वास मजबूत हुआ कि सही रास्ते पर हूँ. गायकी के अलावा मैं अपने गीत खुद लिखता और कम्पोज भी करता हूँ. ऐसे बहुत से गाने लिखे और कम्पोज हैं मेरे पास. पर फिलहाल केवल गायकी पर ही मेरा फोकस है.
-आपके पसंदीदा गायक कौन-कौन हैं?
-वैसे यह लिस्ट लंबी है मैं किसी एक को कैसे कहूँ. अभी के गायकों में सोनू निगम जी, अरिजीत सिंह जी, श्रेया घोषाल मैम, जावेद अली जी हैं जिनके गानों को सुनकर मैं बड़ा हुआ हूँ और इनसे इनकी गायकी को सुनकर गायकी की बारीकियों से सीखता हूँ, किस तरह से गानों में बायनेमिक्स का यूज होता है, उसको समझता हूँ. इसके अलावा शास्त्रीय संगीत में बड़े गुलाम अली खान साहब, जो मेरे संगीत घराने कसूर पाटियाले घराने के संस्थापक हैं, का बड़ा मुरीद हूँ. मेरे अलावा पूरी दुनिया इनको सुनती है. इनके अलावा यह सूची बहुत लंबी है. मैं इन दिगाजों को सुनकर उनके पेर्फोर्मेंसेस को देखकर सीखने समझने की कोशिश करता हूँ कि आखिर वह अपनी प्रस्तुतियों में ऐसा क्या ऐड करते हैं, ऐसा क्या प्रयोग करते हैं जो ऑडिएंस से शानदार तरीके से जुड़ते हैं. मैं भी अपने स्तर पर इसी तरह के प्रयोग करने की कोशिश भी करता हूँ.
-आपके नए प्रोजेक्ट्स और भावी योजनाएँ क्या हैं? आगे हम दीप्तांशु को किस-किस रूप में देखने वाले हैं?
– बस फ़िलहाल मैं सच्चाई और ईमानदारी से ये काम कर रहा हूँ और इसी शिद्दत, नेकनीयति और जूनून के साथ गाना गाते रहना चाहता हूँ. मुझे बचपन से ही गाना गाने में मजा आता रहा है. इसलिए लगातार बेहतर गाने की कोशिश कर रहा हूँ. फ़िलहाल, अभी तक यही डिस्कवर कर पाया हूँ और सच कहूँ तो यह मुझे रूटीन काम नहीं लगता, यह काम आसान नहीं है लेकिन मजा रहा है जूनून है तो आसान और मुश्किल को सोचे बिना काम कर रहा हूँ. अभी एम.ए. संगीत कर रहा हूँ तो कोलकाता में हूँ अगले वर्ष मुंबई की ओर रुख होगा. बस इतना ही, वैसे भी मेरे लिए मेरा गायन, मेरा संगीत मेरी सतत सार्थक जिद ही है, बस अभी तो चलते जाना है.
प्रस्तुति : डॉ. एम. के. पाण्डेय
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