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सफलता खुशियों के साथ-साथ जिम्मेदारियां भी लाती है: पुनीत तिवारी ( Punit Tiwari )

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Punit Tiwari

बातचीत: गौरव

कलाकार की सफलता तभी होती है जब उसका किरदार कहानी से निकल कर लोगों के जेहन में रच बस जाए. कुछ ऐसी ही सफलता का स्वाद आजकल चख रहे है नयी सीरीज संदीप भैया में प्रिंस मिश्रा का किरदार निभा रहे अभिनेता पुनीत तिवारी ( Punit Tiwari ). यूं तो ये सीरीज अपने कंटेंट और अन्य कलाकारों के उम्दा अभिनय के लिए भी याद रखे जाने लायक है, पर काबिलियत तो इसी में है जब भीड़ में कोई अपनी अलग पहचान बनाते हुए बरबस ही लोगों का ध्यान अपनी और खींच ले. बाबू कुअँर सिंह की जन्मस्थली आरा के मूलनिवासी और बंगाल-झारखण्ड बॉर्डर के इलाके में जन्मे और पले-बढ़े पुनीत ने इस सीरीज से ऐसी ही अलग पहचान कायम की है.  संदीप भैया की सफलता पर फिल्मेनिया के गौरव से बातचीत के क्रम में पुनीत की आँखों में इस पहचान की एक अलग चमक दिखी.

– सबसे पहले तो प्रिंस मिश्रा के लिए ढेर सारी बधाई, आजकल आप लोगों के जेहन के साथ-साथ मीडिया के गलियारों में भी काफी छाये हुए हैं, कैसा लग रहा है?

– सुखद एहसास है, कहते हैं ना इंतजार का फल मीठा होता है. और जब इतना मीठा फल चखने को मिले तो एक अलग ही नशा सा होता है, बस वही नशा अभी एन्जॉय कर रहा हूं. अब जब दर्शकों ने सिर-आँखों पर बिठाया है तो एक अलग जिम्मेदारी भी साथ आ गयी है, आगे और बेहतर करने की.

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– झारखण्ड-बंगाल बॉर्डर के एक छोटे सी जगह चितरंजन में पैदा होकर लड़का मुंबई के बड़े परदे का ख्वाब कैसे देख लेता है?

– लाइफ में कुछ प्रीप्लांड नहीं रहा, घटनाएं ऐसी होती गयी जिससे भीतर अभिनय का कीड़ा जन्म ले गया. पिताजी रेलवे में थे. बंगाल के इलाके में पोस्टेड और रहना झारखण्ड के इलाके में हो रहा था. सो दो-दो संस्कृति विरासत में मिल गयी. जब छठी क्लास में था तो एक दोस्त के पिताजी द्वारा किया नाटक ‘अनुकम्पा के आधार पर’ देखने का मौक़ा मिला. वहां पहली बार लाइट, साउंड और कहानी की ऐसी जादुई दुनिया दिख गयी कि लगा इसी दुनिया का हिस्सा तो बनना है मुझे. और फिर दोस्त की सलाह पर स्कूल के एनुअल डे पर नाटक में हिस्सा ले लिया. सफर की शुरुआत हो गयी, जल्द ही स्कूल में बेस्ट एक्टर के खिताब से भी नवाजा जाने लगा. ये सिलसिला बारहवीं की पढाई तक चला, फिर आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली चला गया.

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– दिल्ली अभिनय की तैयारी का गढ़ माना जाता है. आपकी तैयारियां किस-किस मोड़ से होकर गुजरी ?

– 2011 में मैं जामिया से टीवी जर्नलिज्म की पढ़ाई कर रहा था. कुछ दोस्तों की सलाह पर बहुरूप ग्रुप ऑफ़ थिएटर के साथ जुड़ गया. घरवालों को उमीदें थी कि मैं जर्नलिज्म कर टीवी ज्वाइन कर लूंगा. कही एंकर के रूप में न्यूज़ पढता दिखूंगा. पर मैं तो किसी और ही रस्ते निकल पड़ा था. जब बाद में पिताजी को ये बात पता चली हमारे बीच कुछ तल्खियां भी बढ़ गयी, जो लम्बे समय तक रही. आगे चलकर खर्चे-पानी के लिए कुछ काम भी किये. फिर 2014 के चुनाव के दौरान अंजन टीवी के साथ चुनावी सटायर को लेकर 20-25 एपिसोड करने का मौका मिला. जहां बड़े-बड़े पॉलिटिशियन्स की मिमिक्री करने थे. ऐसे ही एक एपिसोड में मेरा काम देख कर पिताजी थोड़ा भावुक हो गए. तब उन्हें लगा शायद मैं एक अच्छी कोशिश में लगा हूं, वहां से पिताजी ने पूरी तरह मेरा सपोर्ट शुरू कर दिया.

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– परिवार वालों का साथ मंजिल के रास्ते कई मायने में आसान कर देता है, आगे की जर्नी कैसी रही ?

– कुछ समय बाद मैं एमपीएसडी (मध्य प्रदेश स्कूल ऑफ़ ड्रामा) चला गया. उस वक़्त संजय उपाध्याय सर वहां के निदेशक हुआ करते थे. उनके सानिध्य में काफी कुछ सीखने को मिला. कई सारे नाटकों में मुख्य किरदार किया. वहां से पढ़ाई पूरी कर वापस दिल्ली आया और थिएटर की दुनिया के कई नामचीन लोगों के साथ काम किया. काफी सारा थिएटर करने बाद मुंबई आने की प्लानिंग कर ही रहा था कि मुझे दिल्ली में ही पंचलाइट नामक एक फिल्म में काम करने का मौका मिल गया. फिल्म कई सारे फिल्म फेस्टिवल्स में सराही गयी थी. उसके बाद एक और इंटरनेशनल फिल्म में छोटी सी भूमिका मिली. दो फिल्म करने के बाद 2017 में मैं मुंबई आ गया.

– मुंबई, एक-दूसरे के समानांतर चलते ख्वाबों और संघर्षों का शहर, कैसे स्वागत हुआ आपका ?

– शुरुआत में तो छोटे-छोटे कई सारे काम किये. 200 हल्ला, अमेज़न की ‘लाखों में एक सीजन 2’, जामुन जैसी फिल्म से अभी शुरुआत हुई ही थी कि covid जैसी बड़ी विपदा आ गयी और ज़िन्दगी जैसे थम सी गयी. उस दौरान फिल्म इंडस्ट्री ने कई बड़े कलाकारों को खोने  का दर्द झेला. हालांकि वो समय बीता और लाइफ धीरे-धीरे पटरी पर लौटने लगी. उस दौरान घरवालों के मन में भी काफी दुविधाएं उपजी, पर मैंने इस फील्ड को चुना था तो इतनी आसानी से गिव अप करने का सवाल ही नहीं उठता.

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– संदीप भैया मिलने की क्या कहानी रही ?

– एक जानने वाले के जरिये कास्टिंग डायरेक्टर नवरतन मेहता का नंबर मिला था. उनसे संपर्क में रहा तो एक रोज इस किरदार के ऑडिशन के लिए कॉल आया. किरदार को मैंने अपने थॉट प्रोसेस के हिसाब से डेवेलप कर ऑडिशन बना दिया, जो उन्हें उनकी अपेक्षाओं के काफी करीब लगा. फिर एक रीटेस्ट हुआ और फाइनली मैं इस किरदार के लिए चुन लिया गया. हालांकि प्रिंस मिश्रा मेरी ओरिजिनल पर्सनालिटी के बिलकुल उलट है. प्रिंस एक वाक्पटु व्यक्तित्व है जबकि असल ज़िन्दगी में मैं एक इंट्रोवर्ट किस्म का व्यक्ति हूं. पर कलाकार की काबिलियत तो इसी में है कि जो वो नहीं है उसे भी कन्विंसिंग्ली निभा जाए. सो थॉट प्रोसेस के साथ-साथ शूट के कुछ वक़्त पहले ही प्रयागराज चला गया और जल्द ही वहां के माहौल के हिसाब से खुद को ढाल लिया. और नतीजा आप सबों का प्यार है.

– योजना के बिना लक्ष्य केवल इच्छा है, आपका ये संवाद आज निचले तबके से लेकर आईएएस-आईपीएस तक के मोबाइल का स्टेटस बना हुआ है. क्या ऐसे वायरल की अपेक्षा थी आपको?

– इस संवाद की भी बड़ी मनोरंजक कहानी है. स्क्रिप्ट में मेरा ये संवाद था ही नहीं. वहां केवल ये लाइन थी कि फोकस करो. मुझे लगा इसके आगे इंग्लिश का कोई मोटिवेशनल कोट होता तो संवाद निखर कर सामने आता. राइटर की सहमति से मैंने कुछ फेमस कोट की तलाश शुरू की. पढ़ते-पढ़ते मुझे इंग्लिश का एक कोट मिला जिसका मैंने हिंदी रूपांतरण कर संवाद के रूप में इस्तेमाल कर दिया. संवाद कुछ गुल खिलायेगा ये अंदाजा तो था पर मेरा ये इम्प्रोवाइजेशन इस कदर वायरल हो जाएगा और लोगों को अपील करेगा ये नहीं सोचा था.

-चलिए भविष्य की काफी सारी शुभकामनाएं आपको.

– शुक्रिया.