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रक्तांचल की गूंज से चमका सितारा: क्रांति प्रकाश झा

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Kranti Prakash Jha


-गौरव

आजकल एमएक्स प्लेयर पर स्ट्रीम हो रही रक्तांचल की गूंज हर ओर सुनाई दे रही है. अपने प्लाट के साथ-साथ पूर्वांचल की ठसक लिए इस वेब सीरीज के साथ अगर कोई किरदार लोगों के जेहन में खलबली मचा रहा है तो वो है इसके लीड विजय सिंह का किरदार और विजय सिंह के किरदार में जो अभिनेता हर तरफ वाहवाही बटोर रहा है वह है बिहार का लाल क्रांति प्रकाश झा. क्रांति प्रकाश पर दर्शक पहले भी कई किरदारों के लिए अपना प्यार लुटा चुके हैं, चाहे वो एमएस धोनी का संतोष हो, बटला हाउस के आदिल हो या डिस्कवरी जीत की सीरीज बाबा रामदेव-एक संघर्ष में बाबा रामदेव का किरदार. उससे भी पहले राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुकी मैथिली फिल्म मिथिला मखान और देसवा के लीड किरदार के जरिये भी क्रांति अपना असर छोड़ चुके है. आजकल रक्तांचल के किरदार के लिए सबका प्यार बटोर रहे क्रांति प्रकाश इतनी कामयाबी के बाद भी अपने अंदर बिहारी संस्कृति को उसी जीवटता के साथ जिंदा रखे हुए हैं मानो कामयाबी उसे छू तक नहीं गयी हो. चंद घड़ियों की बातचीत में ही ख़ामोशी से यह बता जाते हैं कि कामयाबी का पहला मंत्र जड़ों से जुड़ाव ही है.
बेगुसराय के रूदौली गांव के रहने वाले क्रांति प्रकाश झा की पढ़ाई पटना के स्कूल से हुई. मन में डॉक्टर बनने का सपना पाले क्रांति सेंट एमजी हाईस्कूल के बाद आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली चले गये. हिंदू कॉलेज से हिस्ट्री आनर्स किया. आम बिहारियों की तरह एक बारगी मन में आईपीएस बनने का ख्याल भी आया. पर नियति को तो जैसे कुछ और ही मंजूर था. मॉडलिंग के रास्ते शुरू हुआ सफर उन्हें हिंदी सिनेमा के रूपहले परदे तक ले गया. फिर राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित फिल्म मिथिला मखान, देसवा, एमएस धौनी और बटला हाउस जैसी फिल्मों ने नयी पहचान दी और अब रक्तांचल की कामयाबी उस पहचान की एक ऊंची छलांग बनकर सामने आयी है
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सबसे पहले तो रक्तांचल की कामयाबी और विजय सिंह (किरदार) के जय-जयकार की बहुत-बहुत बधाई
– शुक्रिया, आपके साथ-साथ उन सभी दर्शकों का जिन्होंने इस किरदार को इतना बेशुमार प्यार दिया. आजकल रोज आ रहे सैकड़ों मैसेजेज से मन अभिभूत है.
कैसे शुरू हुआ विजय सिंह का सफर ?
– इस सीरीज के प्रोड्यूसर ने पहले मेरी छठ पूजा की वायरल वीडियो देख रखी थी. और मुझे लेकर उनके दिमाग में काफी कुछ पहले से चल रहा था. एक दिन उनका कॉल आया कि क्रांति जी हमलोग एक वेब सीरीज प्लान कर रहे है और हम चाहते हैं कि आप इससे जुड़ें. मैंने भी ख़ुशी से हामी भर दी. मिलने गया तो चैनल वालों की ओर से किरदार को लेकर एक ऑडिशन की डिमांड हुई. ऑडिशन उन्हें काफी पसंद आयी फिर जब स्क्रिप्ट मेरे हाथ आई मैं तो लगभग उछल पड़ा. विजय सिंह के किरदार की इंटेंसिटी मेरे अंदर खलबली पैदा कर चुकी थी. इस किरदार के लिए मुझसे पहले कई बड़े कलाकारों से बात हो चुकी थी, पर वो कहते हैं ना जिस किरदार पर आपका नाम लिखा हो वो चाहे कितना भी सफर कर ले, उसकी मंजिल आपके अलावा कोई और नहीं हो सकती.
क्रांति प्रकाश झा से विजय सिंह का ट्रांसफॉर्मेशन. कितना करीब थे दोनों एक दूसरे के और क्या कुछ अतिरिक्त करना पड़ा ?
– क्रांति प्रकाश झा विजय सिंह के तबतक ही करीब थे जबतक वो सीधे-सादे थे, पढ़ाकू थे और माता-पिता के सपनों के साथ जीने वाले आज्ञाकारी बेटे थे. वो विजय सिंह क्रांति प्रकाश झा थे, पर हिंसा के एडॉप्शन के साथ ही विजय सिंह क्रांति प्रकाश झा से पूरी तरह दूर हो गए. क्यूंकि रियल लाइफ में कहूं तो मेरे अंदर हिंसा लेश मात्र भी नहीं है. तब आप अनुमान लगा सकते है कि एक मक्खी तक नहीं मारने वाले क्रांति प्रकाश को विजय सिंह बनने के लिए किन परिस्थितियों से गुजरना पड़ा होगा. किरदार की तैयारी के लिए मैंने काफी समय तक खुद को लोगों से काटे रखा, कैरेक्टर के सुर को पकड़ा. और शूटिंग के पहले दिन से आखिरी दिन तक बस विजय सिंह की ही जिंदगी जी. सोते वक़्त मैं शायद क्रांति प्रकाश रहा होऊं, पर जबतक जगा रहता विजय सिंह ही बना रहता.
आप बड़े परदे की फिल्में करते हैं, वीडियोज करते हैं, अपने क्षेत्र की भाषायी सिनेमा करते है और अब वेब सीरीज कर रहे हैं कौन सा माध्यम आपको ज्यादा संतुष्ट करता है और एज एन एक्टर क्या अंतर पाते हैं सब में ?
– संतुष्टि हर उस जगह मिलती है जहां से आपका काम बाहर लोगों तक आता है, चाहे वो सिनेमा हो वेब सीरीज हो या वीडियो. दर्शकों की पसंदगी ही सबसे ज्यादा संतुष्ट करती है. हां सिनेमा के अपने कुछ अलग गणित हैं. वहां बड़ा कास्ट बड़ा चेहरा ज्यादा मैटर करता है. पर ओटीटी प्लेटफॉर्म्स के आ जाने से अभिनेताओं को एक्सप्लोर होने का पूरा मौका मिल गया है. अब अगर आपमें टैलेंट है तो आपको पूरा मौका मिलता है उसे लोगों के सामने लाने का. बस मेहनत के साथ डटे रहिये एक ना एक दिन आपका काम खुद ब खुद बोलेगा.
थोड़ा फ्लैशबैक में चलते हैं, कौन सा वो पल था जिसने बेगूसराय के क्रांति प्रकाश के भीतर सिनेमा की क्रांति जगा दी ?
– मजेदार किस्सा है हीरोइज्म की ललक तो मेरे भीतर आमिर खान ने तभी जगा दी थी जब मैं हम हैं राही प्यार के फिल्म देखने के बाद अपने भईया के साथ पटना कि सड़कों पर आमिर वाली बांदनी जैकेट की खोज में भटक रहा था. घूंघट की आड़ गाने में आमिर के पहने इस जैकेट ने जैसे मुझमें हीरोइज्म का खुमार भर दिया था. जैसे-तैसे जैकेट का जुगाड़ कर उसे पहन घर गया इस खुमारी में कि घर में सब खूश होंगे. पर घर पहुंचते मां का जो जोरदार तमाचा पड़ा कि हीरो बनने चले हो, पढ़ाई करो. पर मन के किसी कोने में अभिनय के कीड़े ने घर तो बना ही लिया था.
काम की शुरुआत कैसे हुई ?
– मॉडलिंग से करियर की शुरुआत की मुंबई में पहला काम एक सजिर्कल इंट्रूमेंट के ऐड का मिला. मन में काफी खूशी थी कि पहली बार टीवी पर दिखूंगा. पर पूरे ऐड के दौरान मुंह पर डॉक्टर्स की तरह मास्क ही बंधा रहा. पल भर में सारी हीरोगीरी काफूर हो गयी और मैं हकीकत की धरातल पर आ खड़ा हुआ. पर उस ऐड के मेहनताने में मिले 500 रूपये की खूशी आज भी भूलाये नहीं भूलती.


बिहार की धरती से इतने बड़े-बड़े कलाकारों के बावजूद भोजपूरी सिनेमा आज अपने अस्मिता की लड़ाई लड़ रहा है कहां चूक हो रही है ?
– आज के भोजपूरी सिनेमा ने ही बाहर में बिहारियों की निगेटिव छवि बना दी है. कितना अच्छा होता हम चलताऊ चीजें दिखाने के बजाय अपनी फिल्मों के जरीये बिहार की संस्कृति व भाषा को आगे बढ़ाने का काम करते. पर यहां के लोगों में अपनी सभ्यता-संस्कृति के प्रति उदासीनता ही इसकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा है. कुछ उदासीनता सरकारी स्तर पर भी है. हरेक को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी तब जाके चीजें बदलेंगी. और मुझे उम्मीद है कि भले थोड़ा वक्त लगे, पर चीजें बदलेंगी.
मुंबई का सपना पाले यूथ्स के लिए क्या सुझाव देंगे ?
– कुछ भी करो पर अपनी जड़ों को कभी मत छोड़ो. माता-पिता के साथ अपनी माटी का सम्मान और अपनी मातृभाषा के लिए कृतज्ञता ही सफलता की राह आसान करेगी. और इसके अलावा सफल होने का कोई एकमात्र मूलमंत्र है तो वो है आपकी मेहनत और लक्ष्य के प्रति आपका समर्पण. बस सही दिशा में पूर्ण समर्पण के साथ चलते जाइये, एक न एक दिन आप वहां पंहुच ही जाएंगे जहां आपकी लक्ष्य निर्धारित है.