राखी (Rakshabandhan) का त्यौहार हर बहनों के लिए खास होता है. मगर आज का यह त्यौहार उन बहनों के लिए कितनी मायूसी से भरी होगी.. जो अपने भाई पर अपनी जान छिड़कती थी. मैं बात कर रही हूं.. उस भाई की जो राखी आने से पहले ही अपने बहनों से दूर इस दुनिया से खो गया. वह भाई है सुशांत.. जो अपने बहनों का राज दुलारा था. उसके मुस्कान के बिना सुशांत के बहनों की जिंदगी कुछ अधूरी सी लगती थी. चार बहनों का प्यारा दुलारा सुशांता था ही ऐसा. बड़ी मन्नत से मांगा हुआ सुशांत इन बहनों के बीच इस दुनिया में आया था. सुशांत की बहनें उन्हें अपने बच्चे से कम नहीं समझती थी. हर बार राखी के दिन इन बहनों की खुशियां सुशांत की कलाई पर देखने को मिलती थी. लेकिन आज वो राखी तो है मगर वह कलाई नहीं रहा. जिस पर राखी बांधने से उन बहनों के चेहरे पर मुस्कान आ जाती थी.
उन्हें क्या पता था कि यह साल उनका भाई छीन लेगा. आज सुशांत रहता तो बहनों के बीच आया सुशांत और उनके बीच खुशियों की बौछार देखने को मिलती. लेकिन कितनी अजीब बात है ना आज पूरी दुनिया इस त्यौहार में खुशियां मना रही है और उधर एक भाई की बहनें उदास बनी हुई है. क्या संयोग है? उन्हें भी नहीं पता था प्यारा सा मुस्कान वाला मेरा भाई इस राखी (Rakshabandhan) के त्यौहार पर हमारे बीच नहीं रहेगा. हर जगह भाई बहनों के बीच प्यार देखकर उन बहनों के दिल पर क्या बीतती होगी. शायद इसका अंदाजा तक हम नहीं लगा सकते. इतना था सुशांत अपने बहनों का खास.. सुशांत को उनकी बहनें उन्हें सुशांत नहीं बच्चा कहकर बुलाती थी. इससे हम अंदाजा लगा सकते हैं कि वह उनके जीवन में क्या महत्व रखते थे.
सारी बहनें आज अपने भाई के हाथों के कलाई पर राखी बांध रही है लेकिन वह बहनें अपने भाई के न्याय के लिए दूसरे के सामने मदद की गुहार लगा रही है. काश आज सुशांत होते. उन्हें मालूम तो था कि मेरी बहनें मुझसे बहुत प्यार करती है लेकिन यह नहीं मालूम था कि मैं नहीं रहूंगा तो मेरी बहनों का हाल क्या होगा? काश वो अपना जान देने के पहले अपने उन बहनों के बारे में सोच लेते तो आज वह हमारे बीच मौजूद रहते. और यह राखी का त्यौहार उन बहनों के लिए मायूसी भरा नहीं होता. सुशांत की चार बहने हैं जिसमें से एक की मौत हो चुकी है. तीन बहनें सुशांत के इस तरह का कदम उठाने से टूट चुकी है. उन्हें क्या पता था जिस भाई ने हमारी डोली उठाई. वहीं आज नहीं रहेगा. राखी के दिन पर भाई का साथ ना होना उनके ऊपर दुखों का पहाड़ टूटने जैसा है. हम कल्पना भी नहीं कर सकते कि आज उन बहनों पर क्या बीत रही होगी? उनके आंसू को थामने के लिए भी उनका आज भाई नहीं रहा.
हर कोई राखी के दिन बहनों का साथ निभाने और रक्षा करने जैसा वचन लेता है लेकिन कितनी अफसोस की बात है ना आज वह हमेशा साथ निभाने की बात करने वाला बहनों का दुलारा सुशांत नहीं है. बहनों के लिए 35 साल में यह पहला अवसर है जब थाली में सजी कुमकुम है, मिठाई है, दिया है ताकि जिससे अपने भाई की आरती उतार सके. सब है लेकिन भाई सुशांत का वह प्यारा चेहरा नहीं. उस भाई का बहनों के बीच इस दुनिया में आना उनके घर में खुशियों का उजाला लेकर आया होगा मगर आज अफ़सोस उस घर का उजाला ही अंधेरा में छा गया होगा. काश आज सुशांत होते तो बहनों के चेहरे पर आज मुस्कान होते.. वह घर जगमगा उठता जब उस कलाई पर बहनों का प्यार पड़ता…..