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Pithamagan Review- विक्रम की वो फिल्म जिसमें उन्होंने अपने अभिनय से सबको चौंका दिया

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साल 2003 में एक तमिल फिल्म आई थी “पीठामगन” (Pithamagan) जिसके लेखक और निर्देशक थे बाला’. इस फिल्म में मुख्य भूमिका में ‘विक्रम’ और ‘सूर्या’ दिखे थे. दोनों के बारे में आज बताने की जरूरत नहीं क्योंकि दोनों इस वक़्त साउथ फिल्म इंडस्ट्री के सुपरस्टार हैं. दोनों उस वक़्त भले इतने बड़े स्टार न हो लेकिन ये फिल्म इनदोनों के अभिनय कौशल को दर्शाने वाली रही.

 Pithamagan filmania magazine http://www.filmaniaentertainment.com/magazine/

इस फिल्म की कहानी से ज्यादा चर्चा इस फिल्म में एक्टर्स के अभिनय को लेकर थी. सबसे ज्यादा अभिनेता विक्रम द्वारा निभाये किरदार को लेकर. वो इस फिल्म में एक मानसिक रूप से अविकसित, जिसे दुनियादारी की कोई समझ नहीं, मनुष्य के रूप में पशु के समान. बचपन से श्मशान में जीवन बिताने वाले अनाथ को जब एक गांजा बेचने वाली औरत (संगीता) और लोगों को मूर्ख बना कर पैसे कमाने वाला आदमी (सूर्या) मिल जाता है तो इस इंसानी पशु में भावनाएं जागने लगती हैं. वो हँसने और खुश होने के भाव को महसूस करने लगता है. विक्रम ने पूरी तरह से इस फिल्म को अपना बना कर रखा है, इस किरदार के ना एक इंच दाएं और ना ही एक इंच बाएं गए हैं वो. ऐसे किरदारों के निभाते या लिखते वक्त खतरा ये होता है कि कहीं किरदार ज्यादा ड्रामेटिक और बनावटी ना हो जाये. लेकिन लेखक ने जिस हिसाब से इसे लिखा विक्रम ने उसे दोगुने बेहतर तरीके से निभा ले गए.

सूर्या और विक्रम की जोड़ी उनके बीच की बॉन्डिंग आपकी आंखें नम कर सकती हैं. इनदोनों की को-स्टार संगीता और लैला ने भी अपनी अदाकारी से इनका भरपूर साथ दिया है. खासकर क्लाइमेक्स में इनदोनों ने विक्रम के साथ मिलकर दर्शकों रुलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. इसमें कई ऐसी चीजें हैं जो आपको पसंद नहीं भी आ सकती हैं. हीरो-हीरोइन का मजाक में एकदूसरे से मारपीट करना थोड़ा अटपटा लगता है. इसका प्लॉट पूरी तरह से गंवई है. शुरू से अंत तक वो बरकरार रहा है. कहानी इस वक़्त के लिहाज से भले बहुत जानी-देखी सी लग सकती है. लेकिन जब ये आई थी तब इसने ढ़ेर सारे अवार्ड जीते थे. विक्रम को इसके लिए बेस्ट एक्टर का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था

साउथ इंडस्ट्री में ऐसी बहुत सी बेहतरीन फिल्में हैं जो हमारी पहुंच से दूर हैं. आम हिंदी दर्शकों का उन तक ना पहुँचने एक कारण भाषाई है और दूसरा ये कि साउथ की मसाला फिल्मों को ही हिंदी बेल्ट के दर्शकों में इतना प्रचारित करके परोसा गया है कि इस तरह के कंटेंट में उनकी दिलचस्पी का जगना मुश्किल नजर आता है. इसका हिंदी डब वर्जन यूट्यूब पर उपलब्ध है लेकिन वो डब ठीक-ठाक ही है. और हाँ ये उन दर्शकों के लिए नहीं जिन्हें बस मसालेदार सिनेमा पसंद आता है.

दिव्यमान यती