बातचीत: गौरव
वक्त की एक खास बात है यह एक न एक दिन पलटना जरूर है. कब इंसान की मेहनत उसका वक्त बदल गुमनामी से कामयाबी तक पहुंचा दें उस इंसान को खुद भी इल्म नहीं होता. ऐसे ही वक्त के बदलाव का स्वाद आजकल ले रहे हैं पंचायत के प्रह्लाद पांडे उर्फ प्रहलाद चा उर्फ फैसल मलिक (Faisal Malik). पहले सीजन में भी लोगों को खासे गुदगुदा चुके फैसल के हिस्से दूसरे सीजन में एक ऐसा एपिसोड आया जिसने उनकी पूरी दुनिया ही बदल कर रख दी. शुरुआती दौर में अभिनेता के तौर पर खासी मशक्कत करते फैसल आज अभिनय के बलबूते ही देश की धड़कन बन गए हैं. पंचायत के उनके किरदार ने उन्हें देश के घर-घर का बेटा बना दिया है. तो इस बार की पहली मुलाकात करते हैं फैसल मलिक से और जानते हैं पंचायत सीजन 2 के बाद से उनकी दुनिया कितनी बदल गई है.
– पंचायत सीजन 2 के सबसे पसंदीदा किरदार के रूप में आप जनता के बीच हैं. आपके लिए लोगों की फीलिंग इस कहानी से निकलकर पर्सनल हो गई है. कितना भरोसा था रिलीज से पहले इस प्यार का ?
– सच कहूं तो जब सीजन 2 की स्क्रिप्ट मेरे हाथ आई तब मैं पढ़कर डर गया था. मैंने हमेशा कहा है कि मैं कोई ग्रेट ट्रेंड एक्टर नहीं हूं. स्क्रिप्ट पढ़ कर मुझे लगा पता नहीं इतना भरोसा निर्देशक या मेकर्स ने मुझ पर किया कैसे ? क्योंकि जरा सी चूक से सारा इमोशन धराशाई हो जाता. पर दूसरी ओर निर्देशक के भरोसे ने मुझ में मुझे हिम्मत भी काफी भर दी. इस बात का भरोसा तो था कि किरदार अगर सही ढंग से निभ गया तो लोगों को पसंद तो आएगा, पर इस कदर बवंडर मचाएगा कि लोग प्रहलाद को अपने घर का बेटा मानने लगेंगे यह कभी नहीं सोचा था.
रिंकी की सफलता ने मेरी जिम्मेदारियां बढ़ा दी है: सानविका
– गैंग्स ऑफ वासेपुर को एक अरसा बीत चुका था. इस बीच आपने कुछ छोटे-मोटे किरदार करने से ज्यादा प्रोडक्शन में अपने पैर जमा लिए थे. फिर फुलेरा पंचायत में आप कैसे एंटर कर गए ?
– पहले सीजन के वक्त निर्देशक दीपक मिश्रा जी और राइटर चंदन जी ने मुझसे संपर्क किया. डायरेक्टर सर ने पहले कहीं मेरा काम देखा हुआ था. मैंने दीपक जी से पहले दिन ही बता दिया था कि मैं एक-दो सीन वाला ही एक्टर हूं तो मेरे हिस्से कम से कम डायलॉग दिए जाए. पर तारीफ करनी होगी स्क्रिप्ट की जिसने बिना ज्यादा डायलॉग्स के भी मेरे किरदार को इतना हिट बना दिया. उससे पहले मेरे मन में एक और डाउट था. उस वक्त वेब सीरीज के नाम पर क्राइम, थ्रिलर, सेक्स बस यही सब बिक रहे थे. मैंने सोचा ऐसे माहौल में एक साधारण सी गांव की कहानी जो पूरी तरह से ग्रामीण परिवेश की बात करेगी, क्या यह उतनी ही कन्विंसिंग और खूबसूरत बन पाएगी जितनी यह कागज पर है. क्या चल पाएगी और अगर चली भी तो कितना सफल हो पाएगी. पर लॉकडाउन के दौरान रिलीज के बावजूद माउथ पब्लिसिटी के सहारे सीरीज इतनी बड़ी हिट रही सारा डर निकल गया.
– अब जब आप दूसरे सीजन से देश के घर घर का चहेता बन कर उभरे हैं आगे के लिए कितना प्रेशर बढ़ गया है ?
– मेरे लिए तो प्रेशर पहले से ही काफी था अपने अभिनय को लेकर. अब मेरा किरदार इस हद तक बिल्डअप हो चुका है कि आगे के लिए नर्वसनेस और ज्यादा बढ़ गई है. देखें आगे स्क्रिप्ट क्या मोड़ लेती है.
– इलाहाबाद की गलियों से निकलकर मायानगरी तक पहुंचना कैसे हुआ ?
– जन्म मेरा इलाहाबाद में हुआ. पढ़ाई के सिलसिले में लखनऊ निकला था. एमबीए के सपने बुने गए थे मेरे लिए, जो कि मुझसे हो नहीं सका. पढ़ाई में मैं हमेशा से औसत ही रहा हूं. सो एमबीए का सपना छोड़ मुंबई की माया नगरी आजमाने निकल पड़ा. मुंबई के शुरुआती दिनों में प्रोडक्शन के छोटे काम से लेकर लाइन प्रोड्यूसर, एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर तक का सफर तय किया. प्रोडूसर के तौर पर काफी काम किया. रिवॉलवर रानी, सात उचक्के, मैं और चार्ल्स जैसी फिल्मों के अलावा कई रियलिटी शो, एमटीवी शो का प्रोडक्शन किया. बस ऐसे ही शुरुआत हुई और फिर गाड़ी चल निकली.
– मुंबई में आकर प्रोडक्शन में काम शुरू करने के बाद गैंग्स ऑफ वासेपुर में एक्टर कैसे बन गए. यह ख्याल कब और कैसे आ गया ?
– एक्टर बनने का ख्याल तो दूर-दूर तक नहीं था. एक्चुअली गैंग्स ऑफ वासेपुर की शूटिंग चल रही थी बनारस में. कुछ शेड्यूल इलाहाबाद में भी था. मैं उस फिल्म से लाइन प्रोड्यूसर के तौर पर जुड़ा था. हुआ कुछ यूं कि जिस अभिनेता को उस पुलिस वाले इंस्पेक्टर गोपाल सिंह का किरदार करना था ऐन वक्त पर फिल्म छोड़कर भाग गया. तब प्रोडक्शन वाले सदमे में थे. उस वक्त अनुभूति कश्यप, जो फिल्म की असिस्टेंट डायरेक्टर थी, ने मुझसे कहा कि यह किरदार तुम कर लो. दोस्ती की खातिर मुझे वह किरदार करना पड़ा. तो यूं समझिए कि इत्तेफाकन फिल्म मेरे हाथ आ गई. पर खुशकिस्मत था कि उस किरदार को भी लोगों ने काफी पसंद किया.
– आप तमाम स्ट्रगल्स के बावजूद अपने मुफलिसी के दिनों की कहानी किसी से शेयर नहीं करते, क्या वजह है इसकी ?
– देखिए स्ट्रगल हर इंसान की जिंदगी में होता है. बेशक सबके अलग-अलग तरह के स्ट्रगल होते हैं. पर अपने बेहतर दिनों में उस स्ट्रगल की कहानी को सिम्पथी के तौर पर बेचना मुझे कभी अच्छा नहीं लगा. सबको पता है यहां जो सफल रहा है वह एक स्ट्रगल के दौर से गुजर कर ही रहा है. फिर उस स्ट्रगल की कहानी बार-बार सुना कर क्या ही हासिल कर लेंगे हम.
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– पंचायत में अनुभवी कलाकारों की भरमार थी. रघुवीर सर से लेकर नीना मैम तक. किसके सबसे ज्यादा करीब रहे शूट के दौरान ?
– करीबी तो लगभग सभी के साथ रही. चाहे वह चंदन हो, जीतू हो या नीना मैम हो. सभी काफी प्यारे लोग हैं. पर रघु सर (रघुवीर यादव) के साथ कुछ अलग ही बॉन्डिंग थी. अब चूंकि मेरे ज्यादातर सींस उनके साथ ही थे तो शायद यह उस वजह से भी हो. पर इस बात की वजह मेरे भीतर का एक लालच भी था, उन्हें करीब से देखने और उनसे अभिनय की बारीकियां सीखने का. मैंने उन्हें शूट के पहले दिन ही अभिनय को लेकर अपने कम ज्ञान की बात बता दी थी पर उनका बड़प्पन था जो मुश्किल सीन में भी मेरा साथ देकर उसे आसान बना देते थे. रघु सर को अभिनय करते देखना अपने आप में अलग अनुभूति है. सेट पर वह आज भी खुद को यंगबॉय ही मानते हैं.
– एक आखरी सवाल पंचायत के आखिरी एपिसोड के उस सीन से जिसने पूरे देश की आंखों में आंसू ला दिए. जब आपने खुद वह एपिसोड देखा तो कैसा महसूस हुआ ?
– मुझे तो वह सीन देखकर सहसा विश्वास ही नहीं हुआ कि मैंने यह कर दिया है. किरदार को निभाने से पहले का डर उस सीन को देखने के बाद खुद पर भरोसे में तब्दील हो चुका था. उस सीन को देखकर मुझ से कहीं ज्यादा मेरी वाइफ कुमुद भावुक हो गई थी. एपिसोड देखने के बाद पूरी रात सो नहीं सकी थी. मुझसे कहीं ज्यादा उसका मुझ में भरोसा बढ़ गया था. और फिर उस सीन को लेकर देश ने जो प्यार दिया उसकी तो मैंने कल्पना भी नहीं की थी. लोगों के लगातार आ रहे मैसेजेस और कॉल्स ने मेरी जिम्मेदारियां भी काफी बढ़ा दी है आगे के लिए. इस पॉपुलैरिटी ने मुझे खुद के अंदर के अभिनेता को लेकर नए सिरे से सोचने को विवश कर दिया है.
– आखिर में एक बार फिर से ढेर सारी बधाइयां पंचायत के जरिए हमें हंसाने, रुलाने और गुदगुदाने के लिए. और भविष्य के लिए ढेरों शुभकामनाएं भी.
– बहुत-बहुत शुक्रिया आपका.
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