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वन टाइम वाच मूवी है ‘मुंबईकर’ (Mumbaikar)

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Mumbaikar

 आलेख: डॉ. एम. के. पाण्डेय
आलेख: डॉ. एम. के. पाण्डेय

वैसे तो इस फिल्म में विजय सेतुपथी का होना ही एक बड़ी वजह है पर आश्चर्य तो यह है कि
जिस विजय को आमिर, शाहरुख जैसे सितारे अपने साथ लाने की कोशिशों में थे वह
सफलता संतोष सीवन को मिली है. विजय के हिन्दी सिनेमा में डेब्यू के बारे शोर था कि वह
‘मेरी क्रिसमस’ से कैटरीना कैफ के साथ आ रहे हैं, फिर ‘जवान’ की खबर आई गोकि वह सच
है पर इसकी लगातार बढ़ती तारीखों ने जिओ सिनेमा को यह मौका दे दिया और विजय
जैसा स्टार अभिनेता बिना किसी मुकम्मल प्रचार-प्रसार के इस ओटीटी रिलीज ‘मुंबईकर’ (Mumbaikar).
फिल्म से हिन्दी में लॉन्च हो गए. जवान के आगे बढ़ने का फायदा मुंबईकर को हो गया.
मुंबईकर देखने की बड़ी वजहों में यकीनन विजय का ही नाम है . इसके निर्देशक संतोष
सीवन हैं, जो अपने बेहतरीन कैमरावर्क से कई नेशनल अवॉर्ड जीत चुके हैं हालांकि उनके
द्वारा निर्देशित फिल्मों का हश्र कुछ खास नहीं रहा पर वह इस देश के सबसे बेहतरीन
सिनेमेटोग्राफर्स में से हैं, इसमें कोई शक नहीं. मुंबईकर हाइपरलिंक स्टाइल की कथा शैली
की फिल्म है. एक बड़े शहर में समाने और कमाने देश के अलग-अलग हिस्सों से आए
किरदार कई रास्तों, गलियों के, स्थितियों और अलग वजहों से अंत में एक जगह पर आकर
मिलते हैं.

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यह फिल्म मूल रूप से तमिल के ‘मानगरम’ का रीमेक है. मानगरम लोकेश
कनागराई की फिल्म है जो बेहद छोटे बजट में बनकर इतनी हिट हुई कि इसका रीमेक
तेलुगु, मलयालम आदि में हुआ और अब यह हिन्दी में भी आ गई है, बस अंतर चेन्नई और
मुंबई का है. कथा भूमि का बदलाव शायद ही हिन्दी के दर्शकों पर कोई विशेष प्रभाव उत्पन्न
करें, जबकि यह भी सच है कि मानगरम का हिन्दी डब वर्जन भी यू-ट्यूब पर ‘दादागिरी 2’
नाम से उपलब्ध है. संतोष सीवन ने ‘मुंबईकर’ में विजय सेतुपथी के अलावा रणवीर शौरी,
संजय मिश्रा, विक्रांत मैसी, तान्या मणिकतला (जिन्हें हम पहले नेटफलिक्स की ‘अ सुटेबल
बॉय’ में देख चुके हैं), सचिन खेडेकर जैसे अभिनेताओं का जुटान किया है. इन सबने काम भी
खूब किया है फिर भी कुछ ऐसा रह जाता है, जिससे दर्शक यह सोचता है कि एक छोटे शहर
से टैक्सी चलाने और परिवार पालने आए संजय मिश्रा का किरदार ढंग से आकार ही नहीं
ले पाता और यूपी से अपने प्रेम को बचाने के लिए नौकरी की तलाश में मुंबई आए हृदु
हारून का एक किरदार है जो जब बोलता है, एकदम नॉन हिन्दी इलाके का ही लगता है.
इस कास्टिंग का मतलब संतोष सीवन ही बता सकते हैं.

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विक्रांत मैसी का किरदार तान्या को
प्रेम करता है पर उसकी लापरवाहियों की वजह से बड़ी कंपनी की एचआर का किरदार
निभाती तान्या किस तरह जुड़ती है वह समझ से परे है लेकिन जो भी अभिनेता जिस समय
फ्रेम में आता है अपना काम बखूबी करता है. ब्रजेन्द्र काला तो इस तरह के किरदारों के आदि
हो चुके हैं. उनको हासिल के जमाने से ही परदे पर देखना सुखद होता है. काम के लिहाज से
देखें तो सचिन खेडेकर के हिस्से कुछ ग्रे शेड्स हैं, जिनमें उनका काम कमाल है. माफिया के
रोल में रणवीर शौरी जँचते हैं. पर यह फिल्म जिन तीन अभिनेताओं की ओर आपका ध्यान
अधिक खींचती है वह विजय सेतुपथी, अशोक पाठक और अमित पाठक की तिकड़ी है.

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मुंबईकर की असल वजह तो विजय को देखना है ही और उनका ही किरदार आपके ऊबते
मन पर हरियल दूब बोने की सफल कोशिश करता है. विजय की एंट्री का सीन हिन्दी
सिनेमा में उनकी एंट्री के घोषणा पत्र जैसा है . पहले ही सीन में उनका किरदार अमिताभ,
रजनीकांत और मार्लिन ब्रांडों की तस्वीरों के कोलाज के मध्य आइने के सामने कहता है
‘मुंबई मेरी जान मैं आ गया’. जानने भर को कहानी इतनी ही है कि एक गलत अपहरण के
साथ सभी किरदारों का घटनाक्रम एक पर एक जुड़ता चला जाता है और जो फिल्म बनकर
बाहर आती है वह एक कॉमिक थ्रिलर होती है. विजय का किरदार अंडमान से अपना
बायोडेटा लेकर गैंगस्टर इन मेकिंग के रूप में मुंबई आया है और जब गैंग छोड़ने की बात
आती है, तब भी वह भागता नहीं बल्कि गैंग से रिजाइन देकर लौटता है. मुंबईकर में विजय के
लौटने का दृश्य बेहद खूबसूरत नोट पर उभरता है. सच कहा जाए तो फिल्म के कंधे विजय,
अशोक, अमित का किरदार ही बनते हैं. संतोष सीवन जब इन तीनों के साथ माफिया
पीकेपी (रणवीर शौरी) को मुंबई के गलियों, रास्तों पर दौड़ाते हैं तब वह बड़ी सफाई से
मुंबई के स्टीरियोटाइप इमेजेस से बचकर निकलते हैं. मुंबई गेटवे ऑफ इंडिया और ताज
होटल से आगे भी है. हाँ! गाने मत तलाशिएगा निराश होंगे. याद करने को कुछ नहीं पर
कुछ हिस्सों में फिल्म मजेदार बनी है.

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मुंबईकर को अशोक पाठक और अमित पाठक के लिए देखिए. खासकर अंतिम दृश्यों में तो
अमित पाठक का किरदार जब रॉड लेकर संजय मिश्रा की कार के आगे खड़ा होकर अथवा
मुंबईया टपोरी जुबान में अपने संवाद बोलता है, वह इस अभिनेता का कौशल दिखाता है.
यह किरदार छोटा ही सही पर अमित की पिछली फिल्मों से अलहदा है. राष्ट्रीय नाट्य
विद्यालय के कुछ बड़े नामचीन प्रॉडक्शनस में बतौर नायक और हालिया चर्चित नाटक
मुग़ल ए आजम में अपनी अभिनय क्षमता से सबको अपना मुरीद बनाने वाले अमित को
मुंबई में अभी साबित होना है. मुंबईकर उनके और ऊँचे कैरियर के लिए एक टेकऑफ
साबित हो सकती है.

भरोसा था एक दिन दुनिया पहचानेगी: अशोक पाठक (Ashok Pathak)

अशोक पाठक पिछले वर्ष का वह अभिनेता है, जो महज एक उपस्थिति और सह किरदार के
बोले संवाद से कालजयी हो गया ‘देख रहा है बिनोद’. बिनोद उर्फ असल में अशोक पाठक
की अभिनय क्षमता का एक अलग रंग है मुंबईकर. उनके पास मुंबईकर में बिनोद वाली
मासूमियत नहीं लोकल गुंडे किरदार है जो कहीं से भी अशोक को मुंबई से बाहर का नहीं
लगने देता, उनका काम छोटा है पर कमाल है. याद कीजिए शूल में राजपाल यादव कि एंट्री
और फिर उनका इंडस्ट्री में बढ़ा कद, अशोक उसी रास्ते पर हैं हालांकि उनके हिस्से कमाल
के काम हैं जिसे बिनोद से परे जाकर देखना होगा तब इस एक्टर की रेंज का पता चलेगा.
यह फिल्म भले बड़े कमाल न दिखाए पर मनोरंजक है, देखी जा सकती है.