-पुंज प्रकाश
आज चार्ली चैप्लिन का 131वां जन्मदिवस है. एक ऐसे समय में जब पूरी दुनियां कोरोना महामारी की चपेट में आकर घरों में क़ैद होने को अभिशप्त हो गई है, भय और नफ़रत की खेती चरम पर है और दुनियाभर की तमाम सत्ताएं निरीह सी नज़र आ रही है, मूढ़ बन जाने को सकारात्मक बताया जाने लगा हो, ठीक ऐसे वक्त में मानवता के महान नायक चार्ली चैप्लिन को उनके सही अर्थों और समझ के साथ याद करना और उनकी कला से देश, दुनियां और समाज को रूबरू करवाना भी एक बेहद ज़रूर काम हो जाता है.
चार्ली कहते हैं – “मनुष्य एक व्यक्ति के रूप में प्रतिभाशाली है लेकिन भीड़ के बीच मनुष्य एक नेतृत्वहीन राक्षस बन जाता है, एक महामूर्ख जानवर जिसे जहाँ हांका जाए वहां जाता है.” यह चैप्लिन के उन महत्वपूर्ण कथनों में से एक है जिसकी उपयोगिता आज भी जस की तस है. चैप्लिन मतलब कि विश्व सिनेमा का एक अभिनेता, लेखक, निर्देशक, संपादक, संगीतज्ञ आदि आदि जिसकी कला केवल आनंदित करनेवाला कल्पनालोक नहीं रचता बल्कि उनकी कलात्मक चिंतन में समाज हमेशा प्रखर रूप से रहा और जब भी ज़रूरी हुआ उन्होंने अपनी कला और विचार से हमेशा ही हस्तक्षेप किया. चैप्लिन साफ साफ लिखते हैं – “मैं लोगों के लिए हूँ, इसका मैं कुछ नहीं कर सकता.”
शुरुआत में हम इन्हें और इनकी कला को केवल हास्य के रूप में लेते हैं लेकिन जैसे जैसे हमारी समझ बढ़ती है हम इनकी कला के भीतर कटाक्ष, दुःख, दर्द, पीड़ा, चिंता, व्यंग्य, विडम्बना और विचारों से आत्मसात होने लगते हैं. उनकी पूरी कला के चिंतन में आम इंसान रहा है. वही आम इंसान जो अपनी मेहनत के बल पर दुनियां को खड़ा रखता है लेकिन पूंजी से संचालित यह दुनिया उसकी सबसे कम परवाह करती है. इसी दुनियां के लिए कवि लिखता है – ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है!
चार्ली ने पूरी ज़िंदगी एक ऐसे चरित्र को निभाया जिसके पास खोने के लिए कुछ नहीं लेकिन पाने के लिए पूरी दुनियां थी और अपार से अपार कष्ट में भी जिसने मानवता का दामन नहीं छोड़ा. कभी धूर्तता दिखाई भी तो दूसरे ही पल उससे ज़्यादा ज़िम्मेदार और मानवीय बनकर उभर आया. उनकी प्रसिद्ध फिल्म The Kid को कौन भूल सकता है, जहां एक अनाथ बच्चे को पालने के लिए ख़ुद एक मासूम बच्चे जैसा उनका चरित्र क्या क्या न करता है. जिसे विलासिता भी मिलती है तो वहां से निकलकर वो आराम से अपनी छड़ी फटकारते इस विचार के तहत निकल पड़ता है कि “सबसे दुःखद चीज़ जिसकी मैं कल्पना कर सकता हूँ वो है विलासिता का आदी हो जाना.” इसी विलासित का मज़ाक वो The Gold Rush में बनाते हैं जहां इंसान धन-संपदा की प्राप्ति के लिए जानवर से नीचे गिर जाने को तैयार है. जहां एक इंसान दूसरे इंसान को मुर्ग़ा दिखाने लगता है और उस फिल्म में जूता पकाने और उसे खाने का वो त्रासदियों भर दृश्य विश्व सिनेमा का धरोहर है.
कौन भूल सकता है कि जब दुनिया औद्योगिकरण और साम्राज्यवाद की चपेट में आकर किसानों को मजदूर के रूप में परिवर्तित कर रहा था और सनकी लोगों के सनक से उपजी विश्वयुद्ध के कारण वो बेरीज़गारी से जूझने को अभिष्पत हो गए थे तो एक चीत्कार के रूप में उन्होंने The Modern Times को परिकल्पित करके अपना प्रतिकार दर्ज़ किया. दुनियां जब तानाशाहों के चरणों में लोट और लूट रही थी तब चार्ली चुप होकर ख़ुद को बचाने की चेष्टा में लीन होने या सत्ता की चापलूसी करने के बजाए अपनी कला से प्रतिकार रचते हुए कह रहे थे – “तानाशाह खुद को आज़ाद कर लेते हैं, लेकिन लोगों को गुलाम बना देते हैं.”
एक तानाशाही विचार कितना मूढ़तापूर्ण और हास्यास्पद होता है इसका साक्षात चित्रण आज भी पूरी दुनियां The Great Dictator के रूप में देखती है. जहां वो घोषणा करते हैं – “इंसानों की नफरत ख़तम हो जाएगी, तानाशाह मर जायेंगे, और जो शक्ति उन्होंने लोगों से छीनी वो लोगों के पास वापस चली जायेगी और जब तक लोग मरते रहेंगे, स्वतंत्रता कभी ख़त्म नहीं होगी.” इस फिल्म में उनका वक्तव्य आज एक महागाथा है, जब वो सकुचाते हुए मानवता की गाथा प्रस्तुत करते हुए कहते हैं – “माफ कीजिए, लेकिन मैं सम्राट बनना नहीं चाहता. यह मेरा काम नहीं है. मैं किसी पर हुकूमत नहीं करना चाहता, किसी को हराना नहीं चाहता. बल्कि मैं हर किसी की मदद करना पसंद करूंगा. युवा, बूढ़े, काले, गोरे सभी की. हम सब एक दूसरे की मदद करना चाहते हैं. इंसान की फितरत ही यही है. हम सब साथ मिल कर ख़ुशी से रहना चाहते हैं, ना कि एक दूसरे की परेशानियां देखकर खुश होना. हम एक दूसरे से नफ़रत और घृणा नहीं चाहते. इस दुनिया में हर किसी के लिए गुंजाइश है और धरती इतनी अमीर है कि सभी की जरूरतें पूरी कर सकती है.
ज़िंदगी जीने का तरीका आज़ाद और खूबसूरत हो सकता है, लेकिन हम रास्ते से भटक गए हैं. लालच ने इंसान के ज़मीर को जहरीला बना दिया है. दुनिया को नफ़रत की दीवारों में जकड़ दिया है. हमें मुसीबत और ख़ून-खराबे की हालत में धकेल दिया है. हमने रफ़्तार विकसित की है, लेकिन खुद को उसमें बंद कर लिया. मशीनें बेशुमार पैदावार करती हैं, लेकिन हम कंगाल हैं. हमारे ज्ञान ने हमें पागल बना दिया है. चालाकी ने कठोर और बेरहम बना दिया है. हम सोचते ज्यादा हैं और महसूस कम करते हैं. मशीनों से ज़्यादा हमें इंसानियत की जरूरत है. होशियारी कि जगह हमें नेकी और दयालुता की जरूरत है. इन ख़ूबियों के बिना ज़िंदगी हिंसा से भर जाएगी और सब कुछ खत्म हो जाएगा.
हवाई जहाज़ और रेडियो जैसे अविष्कारों ने हमें एक दूसरे के करीब ला दिया. (आजकल इंटरनेट, टीवी आदि) इन खोजों की स्वाभाविक प्रवृत्ति इंसानों से ज्यादा शराफत की मांग करती है. दुनिया भर में भाईचारे की मांग करती है. इस समय भी मेरी आवाज दुनिया भर में लाखों लोगों तक पहुंच रही है, लाखों निराश-हताश मर्दों, औरतों और छोटे बच्चों तक, व्यवस्था के शिकार उन मासूम लोगों तक, जिन्हें सताया और कैद किया जाता है. जो मुझे सुन पा रहे हैं, मैं उनसे कहता हूं कि नाउम्मीद ना होइए. जो बदहाली आज हमारे ऊपर थोपी गयी है, वो लोभ-लालच का, इंसानों की नफ़रत का नतीजा है. लेकिन एक न एक दिन लोगों के मन से नफरत खत्म होगी ही. तानाशाह ख़त्म होंगे और जो सत्ता उन लोगों ने जनता से छीनी है, उसे वापस जनता को लौटा दिया जाएगा. आज भले ही लोग मारे जा रहे हो, लेकिन उनकी आज़ादी कभी नहीं मरेगी.
सिपाहियो! अपने आप को धोखेबाजों के हाथों मत सौंपो. उन लोगों को जो तुमसे नफरत करते हैं, तुम्हें गुलाम बनाकर रखते हैं. जो तुम्हारी ज़िंदगी के फैसले करते हैं. तुम्हें बताते हैं कि तुम्हें क्या करना है, क्या सोचना है और क्या महसूस करना है. जो तुम्हें खिलाते हैं, तुम्हारे साथ पालतू जानवरों जैसा बर्ताव करते हैं. अपने आप को इन बनावटी लोगों के हवाले मत करो. मशीनी दिल और मशीनी दिमाग वाले इन मशीनी लोगों के हवाले. तुम मशीन नहीं हो! तुम पालतू जानवर भी नहीं हो! तुम इंसान हो! तुम्हारे दिलों में इंसानियत के लिए प्यार है.
तुम नफरत नहीं करते! नफरत सिर्फ वो लोग करते हैं जिनसे कोई प्यार नहीं करता, सिर्फ अप्रिय और बेकार लोग. सैनिकों, गुलामी के लिए नहीं, आज़ादी के लिए लड़ो. ” आज यह वक्तव्य मानवता की महागाथा है, जिसे आज का मानव जितना जल्दी समझ ले और अनुपालन करे, उतना ही अच्छा है.
चार्ली एक ऐसे विचारक कलाकार हैं जिनके बारे में लिखने और लिखते रहने के लिए एक ज़िंदगी कम है. उनका जीवन और उनकी एक एक फिल्मों का एक एक फ्रेम पर कई कई बातें हो सकतीं है. चार्ली अपने आप में एक पूरा स्कूल हैं. वो शायद विश्व के एकलौता कलाकार है जो दोषरहित है, परिपूर्ण है और जिसने दुनियां को यह बताया कि एक कलाकार क्या हो सकता और अपनी कला में दक्षता हासिल करके क्या कर और रच सकता है. ऐसे अद्भुत प्रतिभा को सलाम. चार्ली अपने मासूम चेहरे, सुनी और गहरी आँखें, अल्हड़ और फ़क़ीर और मस्तमौला चरित्र व मूक के माध्यम से मानवता की जो महागाथा रच गए, वो न केवल दर्शनीय है बल्कि अनुकरणीय भी.