मुंबई ऐसी मायानगरी है जिससे मेहनत और दृढ़निश्चय के बुते ही पार पाया जा सकता है: मार्क दीक्षित (Marc Dixit)
1 min read-गौरव
मुंबई को मायानगरी क्यों कहते है इसके पीछे की असली वजह जाननी हो तो किसी ऐसे इंसान से बात कीजिये जो अपने जीवन के कीमती साल इस शहर में बस इस उम्मीद में बिता रहा हो कि कल का सवेरा शायद उसकी ज़िंदगी में सफलता का एक अध्याय लिख जाए. मुंबई सिनेमा में नाम बनाने वालों के लिए एक ऐसा मायाजाल है जिससे इंसान मेहनत, लगन और दृढ़निश्चय के बुते ही पार पा सकता है. कोशिशों में जरा सी लापरवाही या निश्चय की डगमगाहट आपको पलभर में गुमनामी के अँधेरे गर्त में धकेल देती है. मुंबई की इसी मायानगरी में अपने संकल्प शक्ति के बलबूते आहिस्ता-आहिस्ता कदम बढ़ा रहे युवा मार्क दीक्षित (Marc Dixit) से बातचीत के दौरान मुंबई की इस माया, स्ट्रगल, मेहनत और सफलता के कई पहलु सामने आये जो निश्चित ही किसी न्यूकमर का रास्ता थोड़ा सहज कर सकते हैं. फिल्मेनिया के गौरव से बातचीत के दौरान मार्क ने अपनी ज़िन्दगी और पैशन के साथ-साथ मुंबई की इन्हीं कई सारी पहलुओं पर बात की.
– लखनऊ के एक संभ्रांत ब्राह्मण परिवार का लड़का, नाम मार्क दीक्षित, सबसे पहले तो इस नाम के पीछे की कहानी बताएं?
-इसके पीछे की दो कहानी है. मैं अपना नाम कुछ ऐसा चाहता था जो इस इंडस्ट्री और मायानगरी में मेरी पर्सनालिटी को रिसेम्बल करे. अब चूंकि मेरा जन्मदिन मार्च में होता है तो मैंने इन दोनों बातों को मिलाकर अपना नाम रखा मार्क, जिसका मतलब है मैन विथ फुल ऑफ़ आर्ट, रियल्टी एंड कॉन्फिडेंस.
-बहुत खूब, अब बात मुंबई की करते हैं. क्या है ये मुंबई मायानगरी?
-इसका जवाब इसके नाम में ही छिपा है. माया का ऐसा जाल जो कदम-कदम पर आपको अपने लक्ष्य से भटका कर आपकी परीक्षा लेती है, और लम्बे समय तक लेती है. आपकी मेहनत, दृढ़ता और मानसिक तैयारियों का इस कदर इम्तिहान लेती है कि अच्छे-अच्छे इस इम्तिहान में घुटने टेक अपना रास्ता बदल देते हैं, सर्वाइवल के नए रास्ते तलाश लेते हैं, लेकिन इस इम्तिहान में आखिर तक जो मजबूती से टिका रह जाता है उसे सफलता का ऐसा इनाम भी देती है जो इतिहास बन जाता है. तभी तो इसे मायानगरी कहते हैं.
-जेहन में वो कौन सी पहली घटना आती है जब इस मायानगरी का या यूं कहें अभिनय का बीज अंदर पनपा ?
-ऐसी बातें तो आपके कॉन्सस माइंड में हमेशा से रहती हैं, बस वक़्त के साथ अलग-अलग रूप में बाहर आती रहती हैं. बड़ी घटना की बात करूँ तो स्कूल में दसवीं के एनुअल फंक्शन में मुझे प्ले में भाग लेने का मौका मिला. घरवाले भी देखने आये. पर उस प्ले में मुझे द्वारपाल का ऐसा रोल मिला जो स्टेज के कोने में खड़ा रहता है, मुझे घरवाले भी पहचान नहीं पाए. फिर मैंने ठाना कि अगली बार मेन रोल ही करूंगा. और अगले साल के एनुअल फंक्शन में मैंने राजा दुष्यंत की मुख्य भूमिका निभाई. उसी वक़्त लगा कि अभिनय में मेहनत और निश्चय से काम करूं तो सफलता जरूर मिलेगी.
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-अभिनय जैसी अनिश्चितता से भरी दुनिया में भविष्य तलाशने की बात पर घरवालों का क्या रिएक्शन रहा ?
-मेरी फैमिली एक बिजनेस बैकग्राउंड वाली फैमिली रही है. परिवार का इस फील्ड से दूर-दूर तक कोई सरोकार नहीं रहा. बावजूद इसके करियर चुनाव के मामले में परिवार हमेशा सपोर्टिव रहा है. घर में मां-पापा के अलावा दो बहनें हैं. स्कूल के दिनों में क्रिकेट में करियर बनाने का ख्वाब था. तब कई बड़े टूर्नामेंट्स भी खेले. पर कुछ घटनाएं ऐसी हुई जिसने क्रिकेट से अभिनय की दुनिया में पंहुचा दिया. बहरहाल इस निर्णय में बड़ी बहन का काफी सहयोग मिला. उसके प्रोत्साहन से ही मैंने ग्रेजुएशन में साइकोलॉजी विषय चुना जिससे आगे किरदारों को गढ़ने और उनकी मनोदशा समझने में मदद मिल सके.
-लखनऊ से मुंबई की यात्रा कैसे शुरू हुई और मुंबई ने कैसे स्वागत किया ?
-ग्रैजुएशन के बाद जब घर में मुंबई जाने की इच्छा जाहिर की तो सब दुविधा में पड़ गए. वजह मुंबई जैसे अनजान शहर में किसी जानने वाले का ना होना. पर कुछ समय में सबको इस बात की समझ भी आ गयी कि आगे के भविष्य के लिए मुंबई जाना ही पड़ेगा. फिर सबकी सहमति से मुंबई का रुख किया. मुंबई जिन दो दोस्तों के साथ पहले बार गया उन्होंने तीन-चार दिनों में ही वापसी की राह पकड़ ली. जिनके साथ के भरोसे मुंबई आया उनके वापस जाने के बाद एकदम से अकेला पड़ गया. पर कुछ ही दिनों में एयरटेल का एक ऐड मिल गया, और जर्नी की शुरुआत हो गयी. फिर तो कई सारे ऐड्स, चैनल वी के लिए एक प्रोजेक्ट, चैनल एपिक के शो अदृश्य, डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी के शो सुराज्य संहिता और श्याम बेनेगल की बंगा बंधू जैसे शोज किये. इस तरह मुंबई का सफर चल निकला जो अब भी जारी है. अभी मैंने अमेज़न मिनी के लिए एक वेब सीरीज लेडीज हॉस्टल की है, साथ ही अमित शाद के साथ एक फिल्म भी की है जो जल्द ही आने वाली है.
-इंडस्ट्री में सर्वाइवल का चैलेंज बहुत बड़ा है, इसे कैसे हैंडल किया जाए ? अनुभव के आधार पर कुछ बताएं.
-जैसा मैंने शुरू में कहा था, यहां सर्वाइवल ही सबसे बड़ी परीक्षा है, और इसी परीक्षा में आधे से ज्यादा लोग फेल हो जाते हैं. वो आते तो हैं अभिनेता बनने पर जल्द ही टूट कर अन्य रास्ते (मसलन प्रोडक्शन, कैमरा, कास्टिंग, राइटिंग) अपना लेते हैं. नतीजा कुछ भी सही से नहीं कर पाते. जबकि मेरा मानना है यही परिस्थितियां आपका भविष्य तय करती हैं. इन परिस्थितियों में अगर आपने खुद को मजबूती के साथ संभाल लिया और अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित रहे फिर कोई वजह नहीं जो आपको सफल होने से रोक सके. ऐसे कठिन वक़्त से उबरने के भी कई तरीके हैं. आप खुद को अधिक से अधिक व्यस्त रख कर, खुद को मांजने की दिशा में काम कर, कामयाब लोगों की मोटिवेशनल बातें सुनकर, पॉजिटिव दोस्तों के साथ से और क्रिएटिव काम से इन सारी विषम परिस्थितियों का सामना कर सकते हैं. याद रखिये मेहनत और दृढ़निश्चय का कोई विकल्प नहीं, और अगर ये दोनों आपने साध लिया फिर मुंबई आपको निश्चित ही एक बेहतरीन और सफल इंसान बना कर मानेगी.