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जामताड़ा : सबका नंबर आएगा

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filmania entertainment


– दिव्यमान यती

क्या कभी आपके पास ऐसा कोई फोन कॉल आया जिसमें सामने कोई लड़की ये बोलते हुए सुनाई दे ,” नमस्कार सर/मैम मैं फलाना बैंक से बोल रही हूँ आपका कार्ड बहुत जल्द एक्सपायर होने वाला है अगर आपको इससे बचना है तो अपने एटीएम कार्ड की डिटेल्स बतानी होगी.” शायद आप में से बहुत से लोगों को ऐसे कॉल जिसमें आपके लॉटरी जीतने या बैंक के अकाउंट में गड़बड़ी की बात हो आये ही होंगे और आप में से बहुत से लोग उन्हें अपने कार्ड के डिटेल्स देकर अपना बैंक अकाउंट खाली करा चुके होंगे. इसे साइबर क्राइम को भाषा में फिशिंग बोला जाता है.

हाल हीं में 10 जनवरी 2020 से ओटीटी प्लेटफार्म नेटफ्लिक्स पर एक भारतीय वेबसीरीज स्ट्रीम हो रही है जिसका नाम है ‘जामताड़ा- सबका नम्बर आएगा.’ ये सीरीज इसी फिशिंग पर आधारित है. 10 एपिसोड वाले इस सीरीज का हर एपिसोड लगभग 28 मिनट का है.

कहानी

ये सीरीज झारखंड के एक जिले जामताड़ा की कहानी कहती है. जो जामताड़ा हकीकत में दो वजहों से मशहूर है एक है साँपों की बहुलता के कारण और दूसरा है फिशिंग. पूरे भारत का 80% फिशिंग का क्राइम इसी जिले में होता था. जामताड़ा में चलने वाले फिशिंग के सच्चे कारोबार से प्रेरित एक काल्पनिक कहानी है. जामताड़ा में रहने वाले दो ममेरे भाई सनी और रॉकी जो अपने कई दोस्तों के साथ मिलकर फिशिंग का काम करते हैं और अलग-अलग शहरों के लोगों का बैंक बैलेंस खाली कर रुपये कमाते हैं. रॉकी जहां नेता बनना चाहता है वहीं सनी ढ़ेर सारा पैसा कमा कर जामताड़ा का रईस बनने का ख़्वाब देखता है. दोनों एक दूसरे को इसी वजह से पसंद नहीं करते. सनी अपने फिशिंग को बढ़ाने के लिए कोचिंग चलाता हैं जहां बच्चों को पढ़ाने के बहाने फोन कॉल लगवाता है वहां उसका साथ देती है गुड़िया. गुड़िया उससे तीन साल बड़ी है उसका सपना कनाडा जाने का है. जामताड़ा का एक विधायक भी है ब्रजेश भान जो इनसब लड़कों को और फिशिंग को अपने तरीके से चलाना चाहता है. जामताड़ा में आई नई एसपी डॉली साहू इस कारोबार को खत्म करने में लगी हुई हैं. इन्ही किरदारों के इर्दगिर्द घूमती ये एक क्राइम ड्रामा सीरीज है.

परफॉर्मेंस

बिना किसी बड़े स्टारकास्ट के फिशिंग का काम रहे लड़कों के रोल में सभी ने उम्दा अभिनय किया है. खासकर सनी का किरदार निभा रहे स्पर्श श्रीवास्तव का अभिनय आकर्षित करता है. वो 17 साल के ऐसे लड़के की भूमिका में हैं जो गुस्सैल है और अपने फिशिंग के काम मे उस्ताद भी. उनको बराबर की टक्कर दी है रॉकी यानी कि अंशुमन पुष्कर ने. विधायक ब्रजेशभान की भूमिका में अमित सियाल आपमें एक डर पैदा करने में कामयाब हुए हैं. वो लंबी रेस के घोड़े हैं उसकी झलक उन्होंने ‘इनसाइड एज और स्मोक’ जैसी सीरीज में  दिखा दिया था. एक साधारण लेकिन चालाक लड़की गुड़िया के किरदार में मोनिका पवार जमी हैं. एक सीन में जहां ब्रजेश भान सनी को थप्पड़ मारता है वहाँ बगल में खड़ी गुड़िया में दिखता डर और चेहरे का हाव-भाव उनके रेंज को दिखता है.  एसपी डॉली साहू की भूमिका को अक्शा पर्दासनी ने ठीक-ठाक निभाया है. इंस्पेक्टर के किरदार दिव्येंदु भट्टाचार्य भी अच्छे लगे हैं. एक्टिंग की तारीफ तो हर किरदार की होनी चाहिए चाहे वो पत्रकार हो या सनी के वो दो दोस्त जो इस कहानी को महाभारत के प्रसंग से जोड़ते हुए नैरेट करते हैं.

अब बात निर्देशन की तो सौमेन्द्र पाधी जो इसके पहले बुधिया फिल्म को निर्देशित कर चुके हैं जिसके लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है, उनका निर्देशन यहां भी बेहतरीन रहा है. वो जामताड़ा के देसीपन को दिखाने में कामयाब रहे हैं, थोड़ा चूंके हैं तो लेखन के डिपार्टमेंट में. सिनेमेटोग्राफी भी कमाल की है. हर सीन पर मेहनत दिखती है.

खास बातें

इस सीरीज की जो सबसे खास बात है वो है इसकी कास्टिंग. हर एक किरदार ने ऐसे अपने रोल को निभाया है जैसे वो उसी जगह के मूल निवासी हो. संवाद, पहनावा, चाल-ढाल हर चीज़ पर अच्छे से मेहनत की गई है. लोकेशन भी रियल लगते हैं साथ ही इसके डायलॉग भी बिहार/झारखंड वाली बोली में ही हैं जिससे आप जुड़ाव महसूस कर पाते हैं.

अगर कुछ एक सीन को छोड़ दे तो इसमें कहीं भी कुछ बनावटी सा महसूस नहीं होता. फिशिंग जैसे क्राइम को आधार बनाया गया है जो सराहनीय है. कम बजट और साधारण स्टारकास्ट के बावजूद परफॉर्मेंस ने इसे हल्का होने से बचाया है. महाभारत के प्रसंग में धृतराष्ट्र और संजय की भूमिका से जामताड़ा की कहानी को दर्शाना दिलचस्प है. बैकग्राउंड म्यूजिक भी टेंशन बढ़ाने में कामयाब रहा है.

कमियां

इसकी सबसे बड़ी कमी यही है कि ये सीरीज फिशिंग पर होने के बावजूद फिशिंग के विषय को बस स्पर्श करती दिखाई देती है. जो शुरुआत में आपको कुछ नए की उम्मीद तो देती है लेकिन ख़त्म होते-होते पुराने वाले फॉर्मूले जैसे बाहुबली बनाम आम बन कर रह जाती है. इसकी कहानी भी साधारण क्राइम-ड्रामा बन कर रह जाती है. अगर फिशिंग के कारोबार को और गहराई से दिखाया गया होता तो यह सीरीज और बेहतर हो सकती थी.स्क्रिप्ट में कमियों के बावजूद इसका स्क्रीनप्ले इस सीरीज में आपकी दिलचस्पी बनाये रखता है. इसके किरदारों को देखते हुए मिर्ज़ापुर और गैंग्स ऑफ वासेपुर वाली फीलिंग आएगी लेकिन वो फीलिंग मात्र होगी. उस लेवल तक पहुंच पाने में कामयाब तो नहीं हुई है लेकिन हां इस सीरीज में एक कोशिश जरूर दिखती है. ये कोशिश आपको निराश नहीं करेगी.