Film Review Fukrey 3: उम्दा इंग्रेडिएंट्स के बावजूद फीकी रेसिपी
1 min read- गौरव
कलाकार: पंकज त्रिपाठी , ऋचा चड्ढा , पुलकित सम्राट , वरुण शर्मा , मनजोत सिंह
लेखक: विपुल विग
निर्देशक: मृगदीप सिंह लांबा
निर्माता: फरहान अख्तर और रितेश सिधवानी
रेटिंग: 3 (1/2 पंकज त्रिपाठी और वरुण शर्मा के लिए)
किसी फिल्म की जबरदस्त कामयाबी के बाद उस फिल्म की फ्रेंचाइजी बनाना अब एक आम बात हो गई है. पर जब केवल पहली फिल्म की कामयाबी भुनाने की गरज से फ्रेंचाइजी फिल्म बनाई जाने लगे, असली मुश्किल तब शुरू होती है. फुकरे 3 (Film Review: Fukrey 3) की हालत भी कुछ ऐसी ही है. पंकज त्रिपाठी और वरुण शर्मा के उम्दा अभिनय के बावजूद कमजोर कहानी की वजह से फिल्म खास बनते बनते रह जाती है. टॉयलेट ह्यूमर भी कई बार अति का शिकार लगता है. और सबसे बड़ी बात दिल्ली में पानी की समस्या को लेकर बुनी गई कहानी सोशल इश्यूज की बात तो कहती है पर उसकी आत्मा को अपने अंदर समेटने में विफल रहती है. बावजूद इसके अगर आप कॉमेडी के शौकीन है, तो कुछ सीन्स, पंच लाइंस और पंकज त्रिपाठी और वरुण शर्मा के उम्दा अभिनय के लिए फिल्म तो देख ही सकते हैं.
क्या है कहानी
कहानी वहीं से शुरू होती है जहां पिछली किस्त खत्म हुई थी. ओपनिंग सीक्वेंस में गाने और फोटोग्राफ्स के जरिए पिछली किश्तों का रीकैप दिखाया गया है, जो उम्दा बन पड़ा है. भोली पंजाबन इस बार चुनाव लड़ने की तैयारी में है. चुनावी मुद्दे के रूप में उसने इस बार दिल्ली में पानी की किल्लतों का मुद्दा चुना. पर चूचा की कारस्तानियों की वजह से हालात कुछ ऐसे बनते हैं कि जनता ने भोली पंजाबन की जगह चूचा को अपना समर्थन देना शुरू कर दिया. अब चूचा भोली पंजाबन के खिलाफ चुनाव के मैदान में है. कहानी इसी मुख्य प्लॉट के इर्द-गिर्द बनी गई है. जिसमें ग्लोबली पानी की कमी जैसे सोशल इश्यू, ह्यूमर और ड्रामा का तड़का लगाया गया है.
कैसा है अभिनय
अभिनय की बात करें तो पंकज त्रिपाठी अब समीक्षा से परे हो चले हैं. दर्शकों की पसंद के अनुरूप पंकज हर बार अपने सर्वश्रेष्ठ रूप में होते हैं. कम संवाद और लुभावने बॉडी लैंग्वेज के जरिए उन्होंने दर्शकों को साधने की विधा अर्जित कर ली है. और यहां उन्हें चूचा के रूप में वरुण शर्मा का भी भरपूर साथ मिला है. वरुण कई दृश्य में बिना संवाद के भी हंसाते हैं. पुलकित सम्राट और मनजोत सिंह भी किरदार के अनुरूप अच्छे हैं. रिचा चड्ढा अब भोली पंजाबन के किरदार में सामान्य लगने लगी हैं.
फिल्म की एक और कमजोरी है इसके गाने. फ्रेंचाइजी फिल्मों की सफलता में गानों का भी खासा योगदान रहता है. जो यहां अधूरा सा लगता है. अभिनय, ह्यूमर, social issue और पंच लाइन के साथ-साथ अगर कहानी को थोड़ी और कसावट के साथ बुन दी जाती तो शायद फिल्म का लेवल कुछ और ही होता.
क्यों देखें: अगर आप कॉमेडी के शौकीन हैं, फुकरे की पिछली किश्तों के दीवाने हैं और पंकज त्रिपाठी और वरुण शर्मा को बखूबी इंजॉय करना चाहते हैं तो फिल्म एक बार देखने लायक है.
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