-पुंज प्रकाश
सामाजिक और राजनैतिक स्तर पर सही होना किसी भी सार्थक कला के मुख्य उद्देश्यों में से एक है. लेकिन फिल्म, सिनेमा, सीरियल, नाटक आदि में ऐसा कंटेंट बहुत ही कम देखने को मिलता है जो इस स्तर पर करेक्ट हो और बिना किसी अतिवाद के अपनी बात कहे. अच्छी और बुरी कला में फ़र्क केवल इतना है कि अच्छी और सार्थक कला आपके स्वाद को परिष्कृत करती है लेकिन बुरी कला स्वादिष्ट होने का भ्रम फैलाकर बाज़ारू होकर आपका दोहन करती है. बुरी और निरर्थक कला उस गिद्ध की तरह है जो आपको मरता हुआ एकटक देखती रहती और आपको सांस्कृतिक, बौद्धिक, सामाजिक, राजनैतिक आदि तरीक़े से शून्य बनाकर अपना बैंक बैलेंस बढ़ाती रहती है. वैसे भी कला से जहां सांस्कृतिक स्तर को बढ़ाया जा सकता है तो वहीं प्रचूर मात्रा में दूषित भी किया जा सकता है; और चिंतनीय बात यह है कि दूषित करनेवालों की संख्या ज्यादा है.
बहरहाल, ज़माना वेब सीरीज का आ रहा है. विभिन्न वेब प्लेटफॉर्म पर एक से एक कंटेंट गढ़े जा रहे हैं. कुछ वेब सीरीज फालतू का सेक्स, गालियां और हिंसा बेचकर पहले से बीमार समाज को और ज़्यादा बीमार करने में व्यस्त हैं तो कुछ (बहुत कम ही सही) एक ख़ास क़िस्म की संवेदनशीलता और बहुत मेहनत के साथ काम सार्थकता पूर्वक अंजाम दे रहे हैं. मनोज बाजपेयी अभिनीत The Family Man ऐसी ही एक शानदार सीरीज है जो एक स्पाई थ्रिलर होते हुए देश में घट रही कुछ अतिमहत्वपूर्ण घटनाओं के साथ एक परिवार की कथा भी कहती है. यहां केवल फालतू का हीरोइज़्म नहीं है बल्कि लगभग सारे चरित्र मानवीय गुण-दोष से परिपूर्ण हैं. स्पाई हैं लेकिन इंसान जैसे, आतंकी हैं लेकिन उनके पीछे की अपनी पूरी कहानी है कि कोई क्यों और किस वजह से आतंक के रास्ते को अख़्तियार करता है, उसकी जड़ में कौन सी स्थितियां हैं. यहां ना किसी एक धर्म को लेकर अतिवाद है और ना ही ज़रूरत से ज़्यादा संवेदनशील. स्पाई के द्वारा कुछ ग़लत होने पर उसका पछतावा भी है. अब यह पछतावा यथार्थ की धरातल पर कितना है, यह तो यथार्थवाले ही जानें. कश्मीर है लेकिन कश्मीर का द्वंद भी है.
सीरीज पिछले कुछ सालों से भारत में घट रही घटनाओं को अपने में समाहित करती है. यह बात सत्य है कि बाबरी मस्ज़िद को गिराए जाने के बाद देश का विमर्श बदल गया. फिर गुजरात आता है और फिर गाय के नाम पर हत्या, वंदे मातरम पर ज़रूरत से ज़्यादा संवेदना, देशद्रोह और देशभक्ति का फ़र्ज़ी विमर्श, 26/11, दिल्ली बम ब्लास्ट, मुम्बई हमला, संसद अटैक, समाचार चैनलों पर एंकर की जगह सर्टिफिकेट बाँटनेवालों का बैठना, मॉब लिंचिंग आदि है और रही सही कसर को पूरा करने के लिए पाक प्रायोजित आतंकवाद और रोज़ाना की सोशल मीडिया ट्रायल तो है ही. यह सीरीज कहीं ना कहीं इन सबको बड़ी ही कुशलतापूर्वक अपने में समाहित करते हुए चलती है. यह बुनावट ऐसी है जैसे किसी अद्भुत क़िस्सागोह के मुंह से इतिहास का यह किस्सा सुन रहे हों. वेब सीरीज इतनी शानदार है कि अगर आप एक फिलमची हैं तो इसके दस घंटे के दस एपिसोड आप एक बार में ख़त्म कर सकते हैं और आगे भी इसे देखने की भूख बनी रहती है. मुख्य भूमिका में मनोज बाजपेयी शानदार हैं और इन्हें देखते हुए यह बात साफ तौर पर समझ में आती है कि कुछ भी करने और किसी भी प्रकार का काम करके स्टार बन जाने और माल कमानेवाले तथा एक ज़िम्मेदार कलाकार में क्या फ़र्क होता है. बहरहाल, अगर यह कहा जाय तो शायद अतिवाद नहीं होगा कि The Family Man अब तक भारत में वेब के लिए बनी सीरीज में से श्रेष्ठ है.