-गौरव
80 के दशक का सिनेमा. एक हीरो, एक हीरोइन, एक विलेन और बाकी… यह जो ”बाकी” थे ना, जिनके बिना फिल्म भले पूरी ना हो पर जिनकी पूरी जिंदगी इस अधूरेपन के साथ बीत जाती, जब लोग इन्हें देख कर कहते ”यार इसे कहीं देखा है”. जिनके हिस्से फिल्म का एक सबसे कालजयी संवाद या कालजयी दृश्य होने के बावजूद उनका खुद का वजूद ताउम्र अपने नाम की कामयाबी को तरसता रह जाता था. सिनेमाई भाषा में उन्हें साइड एक्टर कहते थे. जी हां, वही साइड एक्टर जो ऊंची पहाड़ी पर बैठकर कालजयी संवाद ”अरे ओ सांभा” का जवाब देता था, वही साइड एक्टर जो गब्बर की बंदूक के सामने खड़ा होकर यह कहता था कि ”सरदार मैंने आपका नमक खाया है”. ”पुलिस ने तुम्हें चारों तरफ से घेर लिया है”, ”अब इन्हें दवा कि नहीं दुआ की जरूरत है”, ”तुम्हारी बहन हमारे कब्जे में है” या फिर ”माल अपनी जगह से निकल चुका है”, 80 के दशक के उस किरदार के हिस्से भले फिल्म के ऐसे सबसे यादगार डायलॉग्स आते रहे हो, पर उनकी पूरी जिंदगी इसी कसक में बीत जाती, जब फिल्म देखते वक्त उन्हें अपने औने पौने मिनट की सीन का इंतजार करना पड़ता अपनी फैमिली, दोस्तों और रिश्तेदारों को यह बताने के लिए कि मैं भी इस फिल्म का हिस्सा हूं. किरदार जो ना पूरी तरह पर्दे के पीछे होता और न पूरी तरह पर्दे के आगे.
संजय मिश्रा की कामयाब उसी साइड एक्टर के दर्द, वेदना और कसक को पर्दे पर उकेरती नजर आती है. शाहरुख खान की रेड चिलीज एंटरटेनमेंट और मनीष मुंद्रा के दृश्यम की साझा प्रस्तुति (फेस्टिवल्स में कामयाब की कामयाबी के बाद फिल्म का कंटेंट देखते हुए रेडचिलीज का साथ मिला ) कामयाब का ट्रेलर 18 फरवरी को जारी किया गया. संजय मिश्रा और दीपक डोबरियाल जैसे समर्थ अभिनेताओं से सजी यह फिल्म ट्रेलर के जरिए ही दिल जीत ले जाती है. 2 मिनट 31 सेकंड का यह ट्रेलर अपने कंटेंट, 80 के दशक के सिनेमा के रिक्रिएशन्स और अभिनय की रवानगी से दीवानगी की हद तक बाँध लेता है. वैसे तारीफ के काबिल लेखक हार्दिक मेहता भी हैं( जो फिल्म के निर्देशक भी हैं ) जिन्होंने ऐसे भावनात्मक विषय को कहानी में पिरोया.
असल जिंदगी में उम्र के एक पड़ाव तक कामयाबी के तलाश की जद्दोजहद से रूबरू हो चुके संजय मिश्रा से उपयुक्त शायद इस किरदार के लिए कोई और ना होता. पर हर किस्से के हिस्से संजय मिश्रा सी कामयाबी नहीं होती. कई किरदार तो संजय मिश्रा बनने की राह में ही घर-परिवार और कामयाबी की चाहत से लड़ते-बिखरते दम तोड़ देते हैं.
तो जाइये और 06 मार्च को थिएटर में उस किरदार को गले लगाइए, जिस किरदार का एक छोटा या बड़ा हिस्सा कहीं ना कहीं आपके अंदर भी जज्ब है. और जिसे यह बखूबी पता है, चाहे रील हो या रियल, उसके हिस्से बस एक ही संवाद आना है ”ENJOYING LIFE… और ऑप्शन ही क्या है…”