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Dia Mirza ने बॉलीवुड के नेपोटिज्म को लेकर तोड़ी अपनी चुप्पी, कहा-बॉलीवुड में कैंप का भी अस्तित्व

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बॉलीवुड के युवा सुशांत के आत्महत्या का सबसे बड़ी वजह नेपोटिज्म को मानते हुए अभिनेत्री कंगना रनौत सबसे पहले इसके खिलाफ बोलती नजर आई. यही नहीं बॉलीवुड में चल रही फेवरिटिज्म, इनसाइडर-आउटसाइडर और दलबंदी से शिकार हुए कई कलाकारों ने भी अपनी चुप्पी तोड़ी. अब इसी कड़ी में अभिनेत्री Dia Mirza ने भी अपनी चुप्पी तोड़ते हुए बॉलीवुड के इस विवाद में एक बड़ी बात कही है.

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दीया ने तोड़ी अपनी चुप्पी

दिवगंत सुशांत के बाद बॉलीवुड में चल रही विवादों में कई प्रचलित कलाकारों ने इसके खिलाफ बोलने के बाद अब बॉलीवुड की अभिनेत्री Dia Mirza ने भी अपनी बात रखी. उनका कहना है कि “सबसे पहले मुझे लगता है कि यह एक बहुत ही अनहेल्दी बहस रही है. मुझे लगता है कि दोनों पक्ष तर्क को तोड़-मरोड़कर एक-दूसरे के बारे में अपनी बात कह रहे हैं. यह पूछे जाने पर कि क्या इंडस्ट्री में फेवरिटिज्म है? जरूर है. लेकिन यह एक सामाजिक मुद्दा है. यह कुछ ऐसा है जो सभी मनुष्य करते हैं और जीवन के सभी क्षेत्रों में यह होता है. ह्यूमन नेचर के लिए अनुकूलता कोई नई बात नहीं है. यह ऐसा कुछ है जो हमारे आसपास हमेशा होता है”. आगे उन्होंने ‘मूवी माफिया’ के मुद्दे पर कहा कि “ईमानदारी से, मुझे लगता है कि पीआर मशीनरी है. कुछ व्यक्ति है जो शायद अपने स्ट्रांग रेवेन्यू स्ट्रीम के कारण अपने पीआर को संभाल रहे हैं और इतना पक्षपात फिल्म इंडस्ट्री में है कि उतना मीडिया में भी होता है. फिल्म इंडस्ट्री में बहुत से ऐसे लोग है जो जितना रिस्पेक्ट और अटेंशन पाते हैं उससे अधिक रिस्पेक्ट और अटेंशन पाने के योग्य हैं”.

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मीडिया का जिक्र करते क्या बोली दीया

Dia Mirza ने मीडिया का भी जिक्र करते हुए बोली “जब भी कुछ कलाकार किसी इशू पर टिप्पणी करते हैं, मीडिया हमेशा यह कहेगा कि फिल्म इंडस्ट्री इसके बारे में नहीं बोल रही है क्योंकि तब तक किसी बड़े स्टार ने इस पर टिप्पणी नहीं की है. यह सही बात नहीं है, क्योंकि इंडस्ट्री इसके बारे में बात कर रही है”. आगे बढ़ते हुए कहा कि “बड़ा दर्शक वर्ग या बड़ी आबादी या यहां तक की मीडिया जिस विषय पर बात करती है. उसे तब तक इंडस्ट्री की बात नहीं मानी जाती है. जब तक कि उस विषय पर कुछ बड़े स्टार नहीं बोलते हैं. यह माना जाता है कि फिल्म इंडस्ट्री नहीं बोल रही है. मुझे लगता है कि यह एक मुद्दा है जो हमारे भीतर है. यह एक स्ट्रक्चरल और परसेप्शनल इशू है. यह कुछ ऐसा इशू है जिसे मीडिया ने क्रिएट किया है”.

Divyani Paul