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अगर सफर मेरा है तो संघर्ष भी मेरा ही होना चाहिए :अभिनव ठाकुर

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Abhinav Thakur


-रत्नेश पाण्डेय

संघर्ष अपने साथ सफलता ले ही आती है. ऐसी ही सफलता की एक कहानी है फिल्म निर्देशक अभिनव ठाकुर की. एक बैंक में नौकरी करने वाला शख्स कैसे अपने सपनों के पीछे भागते-भागते सपनों की मायानगरी पंहुच जाता है और सफलता हासिल करता है यह कहानी कईयों को प्रेरित कर सकती है. रत्नेश पांडेय से बातचीत में अभिनव ने अपनी कहानी कुछ यूँ बयां की.

-लॉक डाउन में आप कैसे टाइम बिता रहे हैं?

-लॉक डाउन मेरे लिए वरदान साबित हुआ है. मैं अपना टाइम अभी पूरा का पूरा स्क्रिप्ट राइटिंग बुक रीडिंग मे दे रहा हूं. अगर इन सब से टाइम मिलता है तो मैं मूवी देखता हूं वह भी वर्ल्ड सिनेमा पर.  मुझे रैंडम मूवी देखना बहुत पसंद है जैसे कि किसी भी भाषा  की और मैं कभी सबटाइटल यूज नहीं करता हूं वह जिस भाषा  में होती है उसकी भाषा मे  में देखना पसंद करता हूं. औरों से भी मैं यही कहूंगा कि घर में अच्छी किताबें पढ़े, अच्छी फिल्में देखें और उसे ओब्ज़र्ब करें. एक अभिनेता को इस दौरान खुद के क्राफ्ट पर काम करना चाहिए, जैसे लाइट, डायलॉग्स, मोनोलॉग्स और स्क्रीन प्रेजेंटेशन आदि.

-क्या बचपन से निर्देशन का ही सोचा था या फिर किसी और क्षेत्र में जाने का मन था?

-जी नहीं बचपन से तो नहीं था लेकिन मुझे याद है मेरे बचपन का किस्सा जब मैं न्यूज़ पेपर से फ़िल्म पोस्टर के कटिंग को अपने घर में चिपकाया करता था बिलकुल वैसे ही जैसे कोई सिनेमा हॉल में लगाते हैं और मैंने अपने सिनेमा हॉल का भी नाम रखा था मां पिक्चर पैलेस. शायद वही से यह कनेक्शन हुआ होगा लेकिन बचपन में ऐसा कुछ सोचा नहीं था. बचपन में मुझे क्रिकेटर बनने का शौक था क्योंकि मैं जहां से(बेगूसराय, बिहार ) आता हूं  वहां क्रिकेट ज्यादा होती थी और मैं अक्सर क्रिकेट खेलने  घर में झूठ बोलकर जाता था  जिस बात से मुझे मार भी पढ़ती थी. (हॅसते हुए)

-आपके करियर की शुरुआत कैसे हुई? हमने सुना है कि आप पहले बैंक में भी काम करते थे.

-जी हां मैं एचडीएफसी फोन बैंकिंग डिपार्टमेंट में काम करता था और मुझे याद है, वहां मैं विकिपीडिया पर फिल्मों के बारे में पढ़ा करता था. मेरी डायरेक्शन की शुरुआत 2013 में हुई थी जहां पर मैंने एक म्यूजिक वीडियो किया था “क्यों मैं जगाऊं” और तब मैं साथ-साथ बैंक में जॉब भी करता था.

 -पहली फिल्म कौन सी थी और कब बनाई थी आपने?

-मेरी पहली शॉर्ट फ़िल्म रामकली 2014 में और फीचर्स फ़िल्म झुनको 2016 में बनाई थी.

-कितनी मुश्किलों भरा सफर रहा अब तक का इस क्षेत्र में?

-मेरा मानना है कि मुश्किल तो हर क्षेत्र  मे होती है आप चाहे डॉक्टर बने या फिर इंजीनियर.  संघर्ष तो हर क्षेत्र में होती है और हर लोगो की अपनी यात्रा होती है. जो इस यात्रा को पार कर जाता है वो सिकंदर कहलाता है. मेरा मानना है कि अगर सफर मेरा है तो संघर्ष भी मेरा ही होना चाहिए और मुश्किल भी. सच बोलू तो मुझे कोई शिकायत नहीं है अपनी जिंदगी से.

-हमने देखा है कि आपकी फिल्में अक्सर लीक से हटकर होती हैं.

-जी ऐसी बात नहीं है, मै हमेशा कोशिश करता हूं वैसी कहानियो को पकडूं जो हमसभी के बीच कि हो. जिसे लोग नजरअंदाज  कर देते है और सच कहूं तो लोग मेरी फिल्मों से पहले उसके टाइटल से डरते है.  यहां तक कि मेरे प्रोडूसर और मेरी हमेशा कोशिश रहती है मैं ऐसी कहानियों का चयन करूं जो हमारे-आपके बीच कि हो.

-बॉलीवुड या हॉलीवुड में किसका काम पसंद है?

-देखा जाए तो मैं पर्सनली सब लोगों की फिल्में देखता हूं. जैसे कि मैंने पहले भी बोला मैं वर्ल्ड सिनेमा बहुत ज्यादा देखता हूं. लेकिन मेरे पसंदीदा अभिनेता रणबीर कपूर और तेलगु अभिनेत्री हैं और डायरेक्ट की बात करें तो हॉलीवुड के डायरेक्टर कॉन्टिनेंट और बॉलीवुड में इम्तियाज अली मुझे खासे पसंद हैं.

-जो लोग निर्देशन के फील्ड में आना चाहते हैं उनके लिए क्या कहेंगे आप.

-सच कहूं तो अभी मैंने जितना अनुभव  किया है मेरे अनुसार आपको किताबें पढना, फिल्में देखना सबसे ज्यादा जरोरी है और इसके अलावा यूट्यूब पर काफी ट्यूटोरियल होते हैं जिन्हें आप देख सकते हैं. शुरुआत में आप फिल्म मेकिंग की किताबें पढ़े और सीखना कभी भी ना छोड़े क्योंकि मैं खुद अभी भी सीख रहा हूं. यह एक ऐसा फील्ड है जहां इंसान पूरी लाइफ सीख सकता है.

-अंत में चलते-चलते.

-अंत में यही कहना चाहूंगा NEVER GIVE UP आप अपने समय का इंतजार करें. धैर्य और भरोसा रखें खुद पर और जिन चीजों को करने में आपको ज्यादा अच्छा लगता है बस उसके पीछे आप पागल हो जाओ फिर देखो आप जादू.