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टैलेंट को सही मुकाम तक पंहुचाना ही मेरा काम: सोनू सिंह राजपूत (Sonu Singh Rajput)

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  • गौरव

कहते हैं हीरे की सुंदरता और मोल का उसे खुद भी पता नहीं होता. उसे इसका आभास तब होता है जब वो किसी काबिल जौहरी के हाथ आता है. आज के दौर में कास्टिंग डायरेक्टर्स ऐसे ही जौहरी हैं जिनकी एक पारखी नजर किसी हीरे को फिल्म इंडस्ट्रीज में उसके मुकाम तक पंहुचा देती है. ऐसे में आप खुद उस जौहरी की जवाबदेही और उसके मुश्किलों का अंदाजा लगा सकते हैं जिसके कांधे पर बड़ी से बड़ी फिल्मों का भार टिका होता है. ऐसी ही एक शख़्सियत है कास्टिंग के क्षेत्र में अपनी पहचान बना रहे सोनू सिंह राजपूत. जैसे प्रतिभा किसी सुविधा या क्षेत्र की मोहताज नहीं होती. और छोटे शहरों की प्रतिभाएं भी देर-सवेर अपना रास्ता तलाश ही लेती है. बस कुछ कर गुजरने का जज्बा और लक्ष्य के प्रति समपर्ण होना चाहिए. क्राइम पेट्रोल सीजन 2 , रोहतक सिस्टर्स, रे, शाबाश मिठू और निकिता रॉय द बुक ऑफ़ डार्कनेस जैसी फिल्मों के लिए कास्ट कर चुके और ऐसे ही समर्पण के साथ इंडस्ट्री में अपना रास्ता बनाने के साथ ही नए-नए हीरों से इंडस्ट्री को रु-ब-रु करा रहे सोनू ने अपने इसी सघर्ष और कामयाबी के सफर को फिल्मेनिया के गौरव के साथ साझा किया.

Sonu Singh Rajput

-बिहार के गोपालगंज जैसे छोटे जगह से निकलकर एमबीए, बीसीए करने वाला लड़का मायानगरी में आकर प्रतिभाएं तराशने लगता है और कामयाब कास्टिंग डायरेक्टर बन जाता है. इसके पीछे क्या कहानी रही?

-इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई गोपालगंज से ही की. फिर दिल्ली में एमबीए करने लगा जो बीच में ही छोड़ दी. बीसीए किया. और पर्सनल लाइफ में कुछ ऐसे हालात बने जिससे मुंबई आना पड़ा. सच कहिये तो मामला प्यार का था. मुंबई तो आ गया पर वो प्यार वाला मामला अंजाम तक पंहुचने से पहले ही दम तोड़ गया. पर हम बिहारियों के बारे में एक कहावत है ना, बिहारी अगर प्यार में टूटता है तो सीधा आईएएस ही बनता है (हँसते हुए). प्यार की वजह से इंडस्ट्रीज के करीब आया था तो ब्रेकअप के बाद इसी इंडस्ट्रीज में मुकाम हासिल करने की ठान ली.

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-कास्टिंग का फील्ड ही क्यों? और इसमें शुरुआत कैसे की ?

-मुंबई आने के साथ हालत ऐसे बने कि इंडस्ट्रीज में उठना बैठना होने लगा था. लोगो से पहचान बनने लगी थी. फिर जब काम की बात आयी तो फ्रीलान्स को-ऑर्डिनेशन शुरू कर दिया. शुरुआत में मुश्किलें तो काफी आई. बगैर बड़े ताल्लुकात के यहां रास्ता बनाना काफी मुश्किल होता है. पर एक बार काम शुरू कर दिया तो धीरे-धीरे रास्ते खुलने लगे. पहले टेलीविज़न के क्राइम शोज मिले, फिर डेली शोप्स करना शुरू किया, जो आगे चलकर वेब सीरीज और बड़ी फिल्मों तक आ पंहुचा. 2017 में फ्रीलान्स शुरू किया और 2018 आते-आते इंडिपेंडेंट कास्टिंग डायरेक्टर के तौर पर खुद को स्थापित कर लिया था.

-अपने काम के बारे में जरा विस्तार से बताएं ?

-जी(ZEE) के टीवी शो इश्क़ सुभान अल्लाह से कास्टिंग इंटर्न के तौर पर जुड़ा, पर एक हफ्ते में ही वो शो छोड़ना पड़ा. फिर बालाजी की करले तू भी मुहब्बत सीजन 2 में कास्टिंग असिस्ट के तौर पर जुड़ा. एज अ कास्टिंग डायरेक्टर मेरा पहला शो दंगल के लिए क्राइम अलर्ट था. फिर सावधान इंडिया किया. दंगल, स्टार भारत, और सोनी के कई शोज किये. कास्टिंग का पहला बड़ा काम 2019 में प्रभुदेवा और तमन्ना भाटिया अभिनीत ख़ामोशी थी जिसमे मैंने पहली बार बड़ी फिल्म के लिए इंडिपेंडेंट कास्टिंग की. फिर वेब सीरीज रे(REY) मिली. उसके बाद शाबाश मिठू में कास्टिंग की, जिसमें मेरे अलावा मुकेश छाबड़ा जी ने भी कास्टिंग की थी. अभी परशुराम, प्रयाग जैसे बड़े टीवी शोज के अलावा सोनाक्षी सिन्हा अभिनीत निकिता रॉय द बुक ऑफ़ डार्कनेस कर रहा हूं.

-2017 की उस शुरुआत के बाद आज 2022 में खुद को कहाँ पाते हैं?

-सच कहूं तो सफर तो अभी काफी लम्बा तय करना है. पर एक कास्टिंग इंटर्न के रूप में काम शुरू कर आज मनोज बाजपेयी स्टारर रे (REY), तापसी पन्नू की शाबाश मिठू और सोनाक्षी सिन्हा की निकिता रॉय द बुक ऑफ़ डार्कनेस जैसी बड़ी फिल्मों का इंडिपेंडेंट कास्टिंग कर रहा हूं तो यह देखकर ये तो लगता ही है सही रास्ते पर हूं. शुरूआती दिनों में कमरे का किराया देना तक मुश्किल हो जाता था और आज टेलीविज़न डेली शोप्स के महंगे कास्टिंग डायरेक्टर्स में शुमार हूं तो सब मेहनत की ही बदौलत है.

रिंकी की सफलता ने मेरी जिम्मेदारियां बढ़ा दी है: सानविका

-मेहनत के दम पर एक-एक सीढ़ी चढ़कर कामयाब होने वाले लोगों का आप परफेक्ट एक्जाम्पल लग रहे हैं. कितना मुश्किल होता है एक न्यूकमर के लिए इस तरह रास्ते बनाना ?

-देखिये मेहनत तो हर क्षेत्र में है. और इसका कहीं कोई शॉर्टकट ऑप्शन है भी नहीं. तो जो आपके हाथ है आप बस वही करते जाइये, ईमानदारी से की गयी मेहनत एक ना एक दिन आपको आपके मंजिल तक पंहुचा ही देगी.

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