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सफलता का असली स्वाद कड़े मेहनत के बाद ही आता है : हर्ष मायर (Harsh Mayar)

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Harsh Mayar

  • गौरव

बीते दिनों एक वेब सीरीज आई, गुल्लक. अपने तीसरे सीजन के साथ. पहले दो सीजन में सीरीज और इसके किरदार आम आदमी के जीवन में कुछ ऐसे पैबंद हो चुके थे कि तीसरे सीजन का लोगों को बेसब्री से इंतजार होने लगा था. और तीसरे सीजन ने भी उम्मीद के अनुसार ही एक बार फिर सब को अपनी गिरफ्त में ले लिया. पर तीसरे सीजन की एक सबसे खास उपलब्धि कहें तो अमन मिश्रा का किरदार निभा रहे हर्ष मायर (Harsh Mayar) का सीरीज में ‘छोटा पैकेट बड़ा धमाका’ वाले कहावत की तरह आकर दर्शकों का दिल चुरा ले जाना रहा. किरदार की बारीकियों में मासूमियत का तड़का लगाकर हर्ष ने जिस खूबसूरती से उसे परोसा उसने हर्ष को सबका चहेता बना दिया है. पर रुकिए यह हर्ष का असली परिचय नहीं है. असली परिचय हर्ष का अब कराता हूं. बड़े-बड़े दिग्गज कलाकार जिस नेशनल अवार्ड का ताउम्र सपना संजोए रहते हैं उसे 12  साल की कम उम्र में ही अपनी मेहनत से हासिल कर लेने वाले अभिनेता का नाम है हर्ष मायर. फिल्म थी 2011 में रिलीज ‘आई एम कलाम’. इसके अलावा काम की फेहरिस्त इतनी और ऐसी कि आप भी जानकर दंग रह जाएं. आई एम कलाम के अलावा जलपरी- द डेजर्ट मर्मेड,   चारफुटिया  छोकरे, डिजायर्स ऑफ द हार्ट, रानी मुखर्जी के साथ हिचकी, कनपुरिये और अब गुल्लक. दिल्ली की छोटी गली से निकल कर एक लड़का जो अभिनय केवल यह सोचकर शुरू करता है ताकि उसे पढ़ाई से दूर रहने का मौका मिल जाए कैसे मुंबई की कामयाबी तक का सफर तय कर लेता है यह खुद हर्ष से बेहतर कौन बता सकता है. तो पेश है हमारे आपके और सबके चहते अमन मिश्रा उर्फ़ हर्ष मायर से खास बातचीत.

Harsh
The President, Smt. Pratibha Devisingh Patil presenting the Rajat Kamal Award to Master Harsh Mayar for the Best Child Artist (I Am Kalam), at the 58th National Film Awards function, in New Delhi on September 09, 2011.

-दिल्ली से सफर शुरू करते हैं. बिना किसी सपोर्ट के एक संकरी गलियों में घूमता लड़का मुंबई के सपने कैसे पाल लेता है ?

-हां थोड़ी ताज्जुब की बात तो है. क्योंकि काफी अच्छे-अच्छे और मजे हुए एक्टर्स हैं जिन्हें मौका नहीं मिल पाता. पर मेरी मेहनत के साथ-साथ लक भी एक बड़ा फैक्टर रहा. जहां तक अभिनय शुरू करने की बात है तो सबसे पहले मेरे मामा जी ने मेरे भीतर के कलाकार को पहचाना. शायद उन्होंने मेरे भीतर कुछ वैसा देखा होगा जो मुझे थिएटर और वर्कशॉप तक ले गए. और मैंने तो यह सोच कर वो राह चुन ली कि इससे मुझे पढ़ाई से बचने का मौका मिल जाएगा और घर वालों को भी लगता रहेगा कि मैं कुछ कर रहा हूं. कुछ वक्त बाद मैं फिल्मों के ऑडिशन देने लगा और इसी दौरान मुझे ‘आई एम कलाम’ मिल गई और फिर सिलसिला चल पड़ा.

Harsh
Harsh Mayar (Left) in Gullak

-बड़े-बड़े एक्टर्स जो ख्वाब पूरे करियर के दौरान देखते हैं आपने वह पहली फिल्म में हासिल कर लिया, वह भी इतनी कम उम्र में. कैसी फीलिंग रही ?

-आप नेशनल अवार्ड की बात कर रहे हैं. हां यह सम्मान की बात तो थी. पर सच कहूं तो उस वक्त मैं इतना नासमझ था कि इस अवार्ड के मायने तक नहीं समझता था. इस फिल्म के लिए मुझे पहले ही फेस्टिवल से 12 इंटरनेशनल अवार्ड मिल चुके थे. बावजूद इसके तब मुझे उससे ज्यादा इस बात की फिक्र थी कि फिल्म थिएटर में कब रिलीज होगी. फिर जब मुझे नेशनल अवार्ड मिलने की बात बताई गई तब भी मुझे कुछ खास समझ नहीं आया. लगा बाकी अवॉर्ड्स की तरह यह भी एक अवार्ड होगा. बात थोड़ी-थोड़ी तब समझ आई जब एक बड़े समारोह में तब की राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल के हाथों सम्मान मिला. समारोह की भव्यता देख समझ आया शायद यह कुछ बड़ा हो रहा है मेरे साथ.

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-परिवार का दूर-दूर तक इस फील्ड से कोई नाता नहीं था फिर उन्होंने आप के अभिनय की बात को कैसे लिया ?

-एतराज जैसी तो कोई बात ही नहीं थी. हां थोड़ा डर जरूर था कि पढ़ाई पूरी नहीं होगी तो आगे की जिंदगी किस दिशा में जाएगी. पर जब मैंने उन्हें समझाया कि मैं इस काम में कितना खुश हूं और इसे इंजॉय कर रहा हूं तो बात उन्हें भी समझ आ गई. छोटी सी फैमिली है, मम्मी पापा और एक छोटा भाई. खुशकिस्मत हूं कि एक ऐसा परिवार मिला जो एक-दूसरे की भावना को बखूबी समझता है. मिडिल क्लास फैमिली की यही तो खास बात होती है. फिर जो थोड़ा बहुत डर उनके अंदर था वह भी वक्त के साथ सफर देखकर धीरे-धीरे चला गया. और अब तो काम देख कर खुश भी होते हैं सब.

Harsh Mayar in I Am KALAM

-मुंबई अच्छे-अच्छों की परीक्षा लेती है. कईयों को तो तोड़ भी देती है, खासकर आउटसाइडर्स को. आपका इम्तिहान कैसा रहा ?

-सच कहा आपने, परीक्षा तो काफी लेती है और कई-कई तरीके से लेती है. किसी को नाम मिलता है तो पैसा नहीं मिलता, किसी को पैसा मिलता है तो नाम नहीं मिलता, और कईयों को तो कुछ भी नहीं मिलता. मुंबई के भी अपने अलग मिजाज हैं. पर मुझे लगता है यह सही भी है कि शुरुआत में ही मुंबई आप को परख ले कि आप यहां टिकने के कितने काबिल हो. मेरा भी काफी इम्तिहान लिया और कड़ा इम्तिहान लिया. कई रातें भूखे रखकर परीक्षा ली. और आलम यह कि भूखे रहकर भी घरवालों को बताना पड़ता कि आज अच्छा-अच्छा खाया है. एक वक्त तो ये सवाल भी जेहन में उठने लगा कि मैंने मुंबई की ट्रेन पकड़ी ही क्यों ? पर फिर वक्त के साथ समझ आया, कामयाबी का जायका तभी लजीज होता है जब उसे कड़ी मेहनत के आंच पर पकाई जाए.

-और उस इम्तिहान के बाद रिजल्ट के रूप में आता है ‘गुल्लक’. कितनी उम्मीदें थी आपको ऐसे रिजल्ट की ?

-मुझे क्या, टीम से जुड़े किसी शख्स को इतने बड़े सफलता की उम्मीद तो नहीं थी. पर एक शब्द होता है चमत्कार. और मेरी लाइफ में यह अक्सर होता है. इससे पहले एक और बार मुंबई में हो चुका था. यशराज की ‘हिचकी’ के रूप में. हिचकी में भी मेरे काम को काफी पसंद किया गया. पर गुल्लक ने इतना कुछ दे दिया जो हमने सोचा भी नहीं था. तीन सीजन और सफलता के नए नए आयाम. राइटर, डायरेक्टर, को-एक्टर्स और टीम को उनकी मेहनत का फल चमत्कारिक सफलता के रूप में मिल रहा है और क्या कहूं.

Harsh

-सफलता कई बार आपके साथ अनावश्यक दबाव भी लाती है, आगे और बेहतर करने की. आप और आपके आने वाले काम को कितना प्रभावित किया है इसने ?

-मैं सच बताऊं तो ऐसे दबाव कभी लेता नहीं. क्योंकि यह बात मैं अच्छे से समझ गया हूं कि बीती बातों को आप बदल नहीं सकते और आने वाले वक्त पर आपका कोई जोर है नहीं. तो बेहतर है वर्तमान में जियें. जो मिल रहा है उसे पूरे एफर्ट और ईमानदारी के साथ करते जाएं. फिलॉसफी कहिए या बिलीफ, पर एक बात में मेरा बड़ा विश्वास है कि यहां कुछ भी परमानेंट नहीं है. जो भी मिलना है वह आपके किए कामों का ही फल मिलना है. और चूंकि इस काम के अलावा मुझे कुछ और कुछ आता ही नहीं तो बस इसी में बेस्ट करने की कोशिश किए जा रहा हूं.

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