उनका संगीत दूसरों से अलग था – राम लक्ष्मण (Ram Lakshman)
1 min readवह दो दोस्त थे, उनकी शुरुआत एक ऑर्केस्ट्रा अमर विजय के संचालक के रूप में हुई थी. उन दोनों दोस्तों का नाम था विजय काशीनाथ पटेल और सुरेंद्र श्रीराम हिन्दरे. सुरेंद्र बाँसुरी बढ़िया बजाते थे और विजय अकार्डियन. लाइव शोज करने वाला इनका ऑर्केस्ट्रा इतना मशहूर था कि मराठी फिल्मों के प्रसिद्ध निर्माता-निर्देशक-अभिनेता दादा कोंडके ने अपनी फ़िल्म पांडु हवलदार में संगीत के लिए इनको आमंत्रित क़िया. इसके बाद राम लक्ष्मण (Ram Lakshman) का संगीत मुम्बईया फ़िल्म इंडस्ट्री की ओर आया . यह राम लक्ष्मण नाम भी दादा कोंडके की ही देन है. 1977 की एजेंट विनोद उनकी पहली फ़िल्म थी. इसी दौरान राम लक्ष्मण के राम यानी सुरेन्द्र श्रीराम हिन्दरे का दिल का दौरा पड़ने से देहान्त हो गया लेकिन साथी विजय पाटिल यानी लक्ष्मण ने दोस्ती निभाई . वह अन्त तक सुरेन्द्र श्रीराम के राम का नाम अपने लक्ष्मण से पहले रखकर राम लक्ष्मण के नाम से संगीत देते रहे.
हिंदी फिल्मों में हालांकि इनकी शुरुआत राजश्री प्रोडक्शन के एजेंट विनोद के संगीतकार के रूप में हुई थी, पर इनके आरंभिक लोकप्रियता का बड़ा श्रेय हम से बढ़कर कौन के एक गीत देवा हो देवा को जाता है. यह गीत देवा ओ देवा गणपति देवा ऐसा है, जो आज तक गणपति उत्सव का सिग्नेचर गीत का बना हुआ है . फिर कंपोजिशन का एक दौर चलता रहा लेकिन राम लक्ष्मण का संगीत सही मायनों में राजश्री प्रोडक्शन का साथ पाकर तब के हर उम्र के दर्शकों और हरेक चार्ट बस्टर में टॉप पर रहा. मोटे तौर पर राजश्री के सलमान खान अभिनीत तीन फिल्मों को देखें तो पाएंगे उतनी लोकप्रियता राम लक्ष्मण ने फिर न ली. यद्यपि उनके संगीत और गीतों का असर ऐसा कि जैसे ही बजता सुनने वालों के नसों में जहर की मानिंद उतरने लगता. फिर यह कहना भी ज़्यादती नहीं होगी कि वो राम लक्ष्मण ही थे जिनकी बदौलत दक्षिण के एस.पी. बालासुब्रह्मण्यम हिंदी पट्टी के परिचित हो गए और नवोदित सुपरस्टार सलमान खान की आवाज भी.
हालांकि नब्बे का यह आरंभिक दौर नदीम श्रवण और अनु मलिक जैसे संगीतकारों का भी था पर अपने औसत से थोड़ा ऊपर संगीत के साथ भी इन कुछ फिल्मों ने राम लक्ष्मण का ऐसा रंग जमाया कि तब के सब संगीतकारों के रंग फीके पड़ गए. खासकर तब जब राजश्री का सिनेमा आया. ओर्केस्ट्रा का अनुभव जहाँ स्टेज पर वाद्य यंत्रों के साथ खड़े टीम को यह पता होता है कि सामने की जनता किस नोट पर झूम जाएगी, वह राम लक्ष्मण के काम आया. चूंकि राम लक्ष्मण अकोर्डियन के विशेषज्ञ थे तो उनके गीतों में ड्रम बेस्ड म्यूजिक और अकोर्डियन पर ही अधिकतर स्कोर बनते थे. आप ध्यान देंगे तो इनके संगीत में उन्होंने सैक्सोफोन की जमात के वाद्ययंत्र, ड्रम परिवार के कई वाद्य यंत्र और पियानो परिवार के यंत्रों का भी रिदमिक प्रयोग खूब और सफलतापूर्वक किया है. उनके कई गीतों की शुरुआत ड्रमों के प्रयोग से इस कदर है कि लगता है कोई मार्चिंग सांग बजने वाला है.
यह नब्बे का उभार भी था और एक नए सुपरस्टार सलमान खान का उदय होने वाला था. फ़िल्म थी मैंने प्यार किया (1989). कबूतर जा जा, दिल दीवाना बिन सजना के, आजा शाम होने आयी, कहे तोसे सजनी और दिल के दर्दे मोहब्बत जैसे गीतों ने दोस्ती और प्यार की ऐसी सांगीतिक परिभाषा गढ़ी की देखते-देखते इस फ़िल्म के ऑडियो टेप की बिक्री ने एक करोड़ का जादुई आकड़ा छू लिया था. इंडिया टुडे की नवम्बर 1993 की एक रिपोर्ट में कविता शेट्टी और अनुपम चंद्रा ने लिखा कि मैंने प्यार किया के एक करोड़ से उपर रिकॉर्ड बिके थे. यूट्यूब और आज के दूसरे माध्यम तब उस तरीके से जलजले की तरह नहीं थे. ऐसे में यह संख्या फ़िल्म के गीत संगीत की शक्ति बताती है. हालांकि यह भी उतनी ही बड़ी सच्चाई है कि इस फ़िल्म के एक गीत का संगीत स्वीडिश रॉकबैंड यूरोप के गाने इट्स द फाइनल काउंटडाउन की डिट्टो कॉपी था. अगर तुलनात्मक रूप से कहें तो उससे कहीं दोयम पर अपनी जबान के शब्दों और इस जबरदस्त संगीत ने हमारे दर्शकों को दीवाना बना लिया था. गीत था – मेरे रंग में रंगने वाली परी हो या हो परियों की रानी. पर सबसे बड़ा होता है जनता का प्यार सो संगीतकार राम लक्ष्मण ने इसी फिल्म के लिए फ़िल्म फेयर बेस्ट म्यूजिक अवार्ड जीता.
राजश्री वालों का भरोसा राम लक्ष्मण के संगीत पर टिक गया था. हम आपके हैं कौन (1994) वह दूसरी फिल्म थी जिसने राम लक्ष्मण के संगीत को वहाँ पहुंचा दिया जिसपर साथी संगीतकारों लोगों को रक़्स होना स्वाभाविक था. हिंदी गीतों पर अद्भुत समझ के एना मोरकॉम ने अपनी किताब Hindi film songs and the cinema में दर्ज किया है कि The music of Hum Apke Hain Kaun (1994) was one of the most successful films ever of hindi cinema, was not particularly popular before the release of the film.
इस फ़िल्म के गानों की लिस्ट इतनी लंबी है कि चित्रहार के दो एपिसोड कम पड़ जाएं. दीदी तेरा दीवाना, माई नी माई मुंडेर पे तेरे तो घरों के हल्के फुल्के मजाक करने वालों रिश्तों का खास गीत बना वहीं पहला-पहला प्यार है, मुझसे जुदा होकर वेलेंटाइन जोड़ों के प्रेम की वह पंक्तियाँ बनी जिनका मुकाबला केवल सालों पुरानी आशिकी के गीत ही कर सकते थे और दीवानगी का आलम यह था कि पारिवारिक ताने बाने में लिपटे इन गीतों ने लोगों को सपने दिखाने शुरू किए. राम लक्ष्मण अब महानगर और छोटे शहर छोड़िए, कस्बों गांवों तक नाम से जाने जाने लगे थे. राजश्री की सफलता में राम लक्ष्मण के संगीत का बड़ा योगदान है. इसी तरह इसी प्रोडक्शन की हम साथ साथ हैं (1999) ने वही जादू दुहरा दिया. हरेक गीत हिट, टॉप टेन में फिर से आ गए.
यह वह दौर था जब कॉपीराइट के कानूनी लूपहोल्स के सहारे अन्य म्यूजिक कंपनियों ने इस फ़िल्म के अल्बम निकाल दिए जो मूल की कॉपी थे और ओरिजनल वाले एचएमवी के रिकार्ड्स से सस्ते थे. तब भी एक करोड़ का आधिकारिक आँकड़ा जादुई है. कॉपी वाले कैसेट्स की बिक्री रिकॉर्ड सामने आए तो यह संख्या कहीं अधिक होगी. यह जादु था रामलक्ष्मण के संगीत का.
राम लक्ष्मण के कंपोजिशन की कमाल यह थी कि वह गानों के बीच में अपनी पिछली फिल्मों ने धुनों को बतौर फिलर डाल दिया करते और यह इतनी बारीकी से होता कि दर्शक जानते हुए भी उसके रंग में रंगा रहता. मसलन मैंने प्यार किया की कोई सिग्नेचर ट्यूनिंग हम आपके हैं कौन में, और उन दोनों का समन्वित हम साथ साथ है में. यह प्रयोग सफल भी रहा . यह म्यूजिकल एक्सपेरिमेंट विशुद्ध ऑरकेस्ट्रा वाली है. कई बार ऐसे सांगीतिक फिलर लोक संगीत में भी खूब देखने को मिलते हैं.
बॉक्सऑफिस इंडिया की माने तो आधिकारिक रूप से मैंने प्यार किया, हम आपके हैं कौन के एक करोड़, पत्थर के फूल के लगभग पच्चीस लाख कैसेट्स, 100डेज़ और हम साथ साथ है के तकरीबन अट्ठारह लाख कैसेट्स बिके. राजश्री, एचएमवी और राम लक्ष्मण यह ऐसी तिकड़ी थी जिसका होना बाज़ार में फायदेमंद सौदा था. कैसेट्स कंपनियों के लिए एक हिट अल्बम मतलब पिछले दसियों फ्लॉप का घाटा मय सूद पूरा हो जाता.
राम लक्ष्मण के कुछ बेहद लोकप्रिय अन्य गीतों में ओ साथी तेरे नाम एक दिन (उस्तादों के उस्ताद,1982), सुल्ताना सुल्ताना मेरा नाम है सुल्ताना (तराना, 1979), सुन बेलिया (100 डेज़, 1991), गुनगुन करता आया भौंरा, बंदा नवाज़ इज्जत नवाज़ (मुस्कुराहट, 1992), ओ मेरे सपनों के सौदागर, तुम क्या मिले जाने जाँ, (सातवाँ आसमान, 1992), कभी तू छलिया लगता है, तुमको जो देखते ही प्यार हुआ, ये शाम है सिंदूरी (पत्थर के फूल,1991), फुरसत मिली है आ जाओ, मैं जिस दिन भुला दूँ (पुलिस पब्लिक,1990) समेत सैकड़ों गीत हैं जो हिंदी फिल्मी संगीत की यात्रा में, जीवन के अच्छे-बुरे समय में हम सबके साथी बने रहेंगे. उन्होंने हिंदी के अतिरिक्त कुछ भोजपुरी और मराठी फिल्मों में भी संगीत दिया है. हिंदी में यह सत्तर फिल्मों से थोड़ा ऊपर है लेकिन मैंने प्यार किया, हम आपके हैं कौन और हम साथ साथ हैं ही उनके म्यूजिकल जर्नी के सबसे सुन्दर पड़ाव हैं. आश्चर्यजनक रूप से इन तीनों में सलमान खान, लता जी और एस पी बालासुब्रमण्यम का तिकड़ी भी हैं. असल तो यह है कि इन्हीं फिल्मों के गीत उनकी प्राथमिक पहचान बन गए.
Laali Review: खाओ कसम कि अब किसी…
राम लक्ष्मण कभी महान संगीतकारों की जमात में शामिल नहीं किये गए लेकिन वह श्रोताओं के मूड की नब्ज पहचानने वाले संगीतकार थे और शायद यह बड़ी वजह थी कि उनका संगीत आज भी हमारे लिए भावनाओं का बसन्त है. वह आज भी हमारे लिए आनंद का शबब है और रहेगा. कोविड-19 में जिन हस्तियों ने असमय विदा ली उनमें राम लक्ष्मण भी थे. बीते बाईस मई को रामलक्ष्मण ने अपनी आखिरी साँस ली. वह नहीं रहे लेकिन उनकी सांगीतिक विरासत साल-सर-साल, पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्यार बांटती रहेगी. नब्बे के संगीतमयी हिंदी फिल्मी जगत की कथा राम लक्ष्मण के बिना अधूरी रहेगी.