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पिंचू कपूर उर्फ पुष्पेन्द्र राय (Pinchu Kapoor): सिनेमा के विस्मृत चेहरे (9)


 आलेख: डॉ. एम. के. पाण्डेय
आलेख: डॉ. एम. के. पाण्डेय

सिनेमा में कुछ अभिनेता और उनकी पर्सनालिटी ऐसी रही है कि वह केवल एक खास वर्गीय चेहरे में ही फिट बैठते रहे हैं. मसलन, वह कभी गरीब, आम आदमी के रोल में नहीं दिखे और ना ही जमते हैं. अगर गलती से उनकी कास्टिंग किसी आम आदमी के किरदार लिए हुई हो तो उस रोल में वह शर्तिया मिसफिट रहे हैं. हिंदी सिनेमा के एक ऐसे ही प्रभावशाली व्यक्तित्व का नाम है – पिंचू कपूर (pinchu kapoor). असल नाम पुष्पेंद्र राय. पिंचू कपूर सिनेमा में शौकिया इंट्री थे. फिल्मों में पिंचू को अधिकतर हीरोइन या हीरो के अमीर अड़ियल दम्भी बाप के रोल में देखा गया. यद्यपि उनकी खलनायकी भी उल्लेखनीय रही है. थ्री पीस सूट पहने सामने वाले के भीतर तक उतर जाने वाली पैनी, तेज, एक्सरे आँखें, उंगलियों में सिगार या चुरुट तैरता, कैपिटलिस्ट, पूंजीपति जैसे किरदारों का सबसे मुफीद चेहरा थे पिंचू. पर्दे पर उनकी ठसक, गंभीरता और इत्मीनान से एक-एक शब्द पर पकड़ रखकर की गई संवाद अदायगी उनको विशेष बनाती है. 

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परदे पर इस अकड़ वाले, रौबदार, कठोर चेहरे वाले अमीर शख्स की भूमिका वाले पिंचू कपूर असल जिंदगी में भी बेहद अमीर थे और दिल से भी. पिंचू के वास्तविक जीवन की अमीरी देखने वाले सिनेमा इतिहास के जानकार बताते हैं कि जिन दिनों थियेटर और अधिकतर सिनेमा आर्टिस्ट्स के पास स्कूटर जैसा यातायात का साधन नहीं था उन दिनों भी पिंचू कपूर के पास फोर्ड कंपनी की शेडान कार हुआ करती थी. पिंचू कपूर की पैदाइश साल 1929 के किसी महीने में अबके पाकिस्तान और तबके ब्रिटिश भारत के रावलपिंडी में हुआ था. उनका सिनेमाई कैरियर 1969 से 1989 तक पसरा हुआ है. हालांकि उनकी फिल्मी पर्दे पर एंट्री का साल अनमोल घड़ी (1946) दर्ज है और सन 1957 से 1970 तक पिंचू कपूर की केवल सात या आठ फिल्में ही आई थीं. पर सत्तर से अस्सी के दशक में पिंचू कपूर हिंदी सिनेमा के जाने-पहचाने चेहरे हो चुके थे. इसी दौरान उनकी सभी चर्चित फिल्में आयी थी.

pinchu kapoor

रावलपिंडी में जन्में पिंचू कपूर का परिवार देश के बंटवारे के बाद जयपुर आ गया था. जयपुर में इनकी आलीशान कोठी थी. सुख वैभव का सारा माहौल था. ऐसे माहौल में पिंचू कपूर रहा करते थे. सिनेमा से जुड़ाव शौकिया था पर इसके पहले  उन्होंने आकाशवाणी में बतौर प्रोडक्शन असिस्टेंट की नौकरी भी की थी.

पिंचू की फिल्मी यात्रा में सिद्धार्थ, अलीबाबा मरजीना, साया, गेस्ट हाउस, हेराफेरी, बॉम्बे टॉकी, बड़ा कबूतर, अब क्या होगा, ओ बेवफा, महाबदमाश, रोटी, सलाखें, पुरानी हवेली, प्यार की जीत, कंवर लाल, मि. रोमियो, गैर कानूनी, धरम करम, कर्ज़, मर्दों वाली बात,किराएदार, घूंघट की आवाज़, हवस, सुनयना, बाज़ी, राम तेरे कितने नाम, कामचोर, ऊंचे लोग, ईमान धरम,  बदलते रिश्ते, अवतार, चक्रव्यूह, बलिदान, दो दिलों की दास्तान, मजलूम, साहेब, मेरी आवाज सुनो, एजेंट विनोद, इंसाफ अपने लहू से, बड़े घर की बेटी, शारदा, सावन को आने दो, इंकलाब, इंसानियत के दुश्मन, घर संसार, माय लव जैसी फिल्में रहीं. इनमें रोटी, खुद्दार, डॉन, कर्ज़ खासी चर्चित फिल्में रहीं हैं.

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पिंचू कपूर की रिश्तेदारी फिल्मों के चर्चित कपूर खानदान से भी थी और कहा यह भी जाता है कि वह शशि कपूर ही थे, जो पिंचू कपूर को जयपुर से मुम्बई लेकर आये थे. पिंचू कपूर भाइयों के रिश्ते में उनके कजिन भाई लगते थे. शशि कपूर के कहने पर ही उन्होंने अपना नाम पुष्पेंद्र राय से पिंचू कपूर किया था. यदि ‘बॉबी’आपको याद हो तो इसमें पिंचू ने मानसिक तौर पर कमजोर लड़की (फरीदा जलाल) के पिता मिस्टर शर्मा का रोल निभाया था, जिसकी शादी प्राण, अपने बेटे ऋषि कपूर से करवाना चाहते थे.

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पिंचू की मुम्बईया रिहाइश का आलम यह था कि फिल्मों में काम करने और जाना-पहचाना चेहरा हो जाने के बाद भी उन्होंने मुम्बई में अपना कोई घर नहीं खरीदा. वह मुम्बई में जितने दिन भी शूटिंग करते या किन्ही और वजहों से भी आते तो यहाँ के शानदार होटलों में ही रहा करते थे. दोस्तों के घर पर टिकना उनको पसंद नहीं था. इसके बावजूद उनका सोशल दायरा बड़ा था.

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पिंचू कपूर का सबसे मशहूर किरदार चंद्रा बरोट की सुपरहिट फ़िल्म ‘डॉन’ में इंटरपोल के अधिकारी आर. के. मलिक का था. 28 अप्रैल, 1989 को पिंचू कपूर यह दुनिया छोड़कर चले गए. हृदयाघात से उनका देहांत हुआ था. लेकिन रजत पट पर उनके निभाये किरदारों से, हिंदी सिनेमा के इतिहास में उनकी स्वर्णिम याद हमेशा के लिए दर्ज हो गयीं है.