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मेजर (Major : दक्षिण का एक और उम्दा शाहकार

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रिव्यू: डॉ. एम. के. पाण्डेय
रिव्यू: डॉ. एम. के. पाण्डेय

सिनेमा जगत चालू ट्रेंड को पकड़ने और उस पर फिल्में बनाने के लिए मशहूर है. आजकल देशभक्ति, राष्ट्रवादी फिल्मों का दौर है और दर्शकों को वह देखने को मिल रहा है जो अब तक अनकहा था. कुछ बाला गीतनुमा नायक चुन हमारे वीर नायकों का मखौल (जाने – अनजाने) बनाते हैं तो कुछ हमारे गौरवशाली किरदारों को शिद्दत से पर्दे पर लाने की ईमानदार कोशिश करते हैं. मेजर (major) दूसरी केटेगरी वाली फ़िल्म है. वह शोर नहीं मचाती, बल्कि धीरे से आपके हिस्से आकर खड़ी हो जाती है.  मेजर भी एक सच्चे नायक की कथा है जिसने  मुम्बई में हुए आतंकी हमलों के दौरान अदम्य साहस का परिचय दिया था. शहीद मेजर संदीप उन्नीकृष्णन पर बनी मेजर के आगे कुछ समय पहले आई शेरशाह के ट्रीटमेंट से बचने की चुनौती थी. क्योंकि दोनों फिल्में आर्म्ड फोर्सेस के नायकों पर बेस्ड बॉयोपिक है. इस दिक्कत को मेजर के मेकर्स ने क्या खूब अलगाया है. बाकी की खूबसूरती तो अदिवि शेष पूरी कर देते हैं.

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यह फ़िल्म 26/11 के मुम्बई हमले और उसमें 7 बिहार रेजिमेंट/एनएसजी के मेजर संदीप उन्नीकृष्णन की वीरता और शहादत पर आधारित है. फ़िल्म की स्क्रिप्ट इतनी कसी हुई है कि आप उससे अपनी नजरें हटा नहीं पाते, हालाँकि इंटरवल के बाद चंद मिनटों का रूमानी सीन हटाया भी जा सकता था. पर यह कथाप्रवाह में रचनात्मक छूट की तरह भी मन जा  सकता है. फ़िल्म के नायक अदिवि शेष को हम पहले भी बाहुबली में देख चुके हैं, वह दक्षिण के मनोरंजन जगत का चर्चित नाम हैं और उन्होंने फिल्म में काम भी बढ़िया किया है. जब कॉलेज सीन होता है तो वह एक स्टूडेंट ही लगते है पर एक्शन दृश्यों में उनकी देहभाषा चमत्कृत करती है. वैसे भी आर्म्ड फोर्सेस पर बेस्ड बॉयोपिक के दो महत्वपूर्ण हिस्सों में एक उसकी संघर्ष, कुछ बनने की जद्दोजहद, रुमानियत/इमोशन के चंद लम्हें (यदि कुछ है तो) और दूसरा कथा कहने का हिस्सा ही असल होता है,  मेजर दोनों हिस्सों में सुंदर बन पड़ी है.

फ़िल्म की नायिका महेश मांजरेकर की बिटिया है, जिन्हें खुद को अभी और मांजने की जरुरत है. इमोशंस के मुलायम क्षणों में वह लाचार लगती है, हालांकि कॉलेज और बाकी के हिस्सों में ठीक दिखती हैं. अभी सई मांजरेकर की राह लंबी है. और वैसे भी यह फ़िल्म मेजर संदीप उन्नीकृष्णन पर बेस्ड है तो नब्बे फीसदी मामला अदिवि शेष पर ही टिका है और वह निराश नहीं करते. फ़िल्म के हरक्यूलिस वही हैं और पूरी फ़िल्म उनके कंधों पर है.  फ़िल्म फुल ऑफ इमोशंस है और तब तो खासकर जब उनके पिता बने प्रकाश राज और मां रेवती पर्दे पर आते हैं. बेटे की शहादत की खबर और मां का बेतहाशा घर से निकल बीच सड़क पर आ जाना और फिर पिता का भी पत्नी के साथ सर जोड़कर बीच सड़क पर बैठ जाना, निश्चित ही बहुत देर तक मन को भिंगोये रखता है. यह दृश्य दर्शकों को याद रह जाएगा. मेजर का बैकग्राउंड स्कोर भी बढ़िया है और सिनेमाटोग्राफी के लिए आप वामसी पटीसीपुल्लिसु के मुरीद भी हो सकते हैं.

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अगर हिंदी वालों ने दक्षिण की फिल्मों से जल्दी सीख न ली तो शायद पृथ्वीराज भी मेजर के आगे पानी माँगते दिखें! कब तक कोई कार्तिक आर्यन भूलभुलैया2 लेकर राहत देगा. फ़िल्म का एक गीत ओ ईशा जुबान पर धीरे ही सही पर चढ़ेगा खासकर अपने फ़िल्मांन की वजह से, इसे अरमान मलिक और चिन्मयी श्रीपदा ने गाया भी खूबसूरती से है. साशी किरण टिक्का के निर्देशन और निर्माता जी महेश बाबू को इस फ़िल्म के लिए शुक्रिया कहने का जी करेगा. मेजर देशभक्ति का जज़्बा चीख कर नहीं जगाती या चिल्लाकर नहीं दिखाती, उसके छोटे वनलाइनर बड़ी बात कह जाते हैं – एक दृश्य में रेवती कहती हैं मुझे डर लगता है, बदले में मेजर का किरदार जवाब देता है –  यदि हर माँ ऐसा ही सोचेगी तब? – ऐसे कई संवाद हैं. अब्बुर रवि ने शानदार संवाद लिखे हैं जो दिल को छूते हैं. सबसे कमाल है कि मेजर के कहानी का श्रेय भी अदिवि शेष को ही है. वैसे अदिवि शेष उत्तर भारतीय दर्शकों खासकर फीमेल फैन बेस बना लें तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए, वह स्क्रीन पर वाकई चार्मिंग दिखते हैं.

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मेजर के घटनाक्रम में बोरडम की गुंजाइश नहीं है सब कुछ तेजी से गुजरता है और फिर भी आपको बांधता है. इसके कई दृश्य आपको सीट से जकड़ लेते हैं. इसकी कास्टिंग भी बढ़िया है.  मुरली शर्मा, शोभिता धुलीपल्ला जैसे मंझे कलाकार अन्य किरदारों में हैं. शोभिता को देखते तो कई बार लीजा हेडन का भ्रम हो जाता है. फ़िल्म पहले हफ्ते सप्ताह अच्छा करेगी इसकी उम्मीद है. लेकिन ! फिर भी लेकिन रहेगा, फिल्म की लंबाई कम से कम दसेक मिनट कम हो सकती थी. खैर इससे रसदोष नहीं पैदा होगा इसका यकीन है. तो फिर वही बात कि पृथ्वीराज के लिए कहीं यह फ़िल्म तराइन का दूसरा युद्ध न हो जाए. हिंदी को अब कंटेंट चाहिए, गोलमाल, हॉउसफुल वाला कूड़ा नहीं. खैर , आप मेजर देखिए, नायक अदिवि शेष को देखिए, एक और शानदार फ़िल्म आपके पास इसी 3 जून को आ रही है.

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