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लोकमान्य तिलक के पांच सीन के इस दमदार किरदार के पीछे चौदह साल का इंतजार: Santosh Ojha

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रणदीप हुडा की वीर सावरकर में लोकमान्य तिलक की भूमिका निभाई है बक्सर, बिहार के संतोष ओझा ने

बातचीत: गौरव
बातचीत: गौरव

यह आलेख पुणे FTII पासआउट अभिनेता Santosh Ojha के साथ फिल्मेनिया के निदेशक गौरव की बातचीत पर आधारित है.

सफलता का कोई शॉर्ट कट नहीं होता, पेसेंस के साथ निरंतर मेहनत ही इसे पाने का एक मात्र जरिया है. रास्ते में तमाम तरह के भटकाव, दुनियावी तंज रूपी काटें, और हताशा आपकी राह में दुश्वारियां पैदा करती हैं, पर तमाम बाधाओं से डिगे बिना जो मेहनत की कश्ती पर सवार चलता चला जाता है, वही एक रोज अपनी मंजिल पाता है. और इन सारी बातों को सच किया है बक्सर, बिहार से ताल्लुक रखने वाले अभिनेता संतोष ओझा (Santosh Ojha) ने. एक ऐसे दौर में जब सरकारी नौकरियां कामयाब जीवन का पर्याय मानी जाती हों, संतोष ने नेवी जैसी उत्कृष्ट नौकरी का त्याग कर सिनेमा में संघर्ष का रास्ता चुना. निश्चित ही यह निर्णय आसान नहीं था, ना तो खुद संतोष के लिए और ना ही उम्मीदों से भरे परिवार – समाज के लिए. पर खुद पर भरोसा और लक्ष्य पा लेने की जिद ने संतोष को उस जगह पंहुचा दिया जहां चौदह सालों के संघर्ष के बाद खड़े होकर वो अपने लिए दुनिया के तंज को तालियों की गड़गड़ाहट में बदलता देख रहे हैं.

santosh ojha

रणदीप हुड्डा ने भी की किरदार की तारीफ

वीर सावरकर में Santosh Ojha की कास्टिंग पराग मेहता के जरिए हुई. बातचीत में Santosh Ojha ने बताया कि लोकमान्य तिलक के किरदार के लिए दिए गए ऑडिशन से फिल्म से जुड़े सारे लोग काफी इंप्रेस्ड थे. फिर शूट के बाद फिल्म के एक्टर डायरेक्टर रणदीप हुड्डा ने भी काफी तारीफ की. किरदार की बेहतरी के लिए मैंने काफी तैयारी की थी. तिलक जी के बारे में काफी रिसर्च और पढ़ाई की. ज्यों-ज्यों मैं तिलक जी को करीब से समझता गया, मैं रियल लाइफ में खुद को उनके काफी करीब पता गया. मैं खुद शुरुआत से ही काफी रिबेलियस किस्म का व्यक्ति था. फिर बात चाहे करियर के चुनाव की रही हो या नौकरी छोड़ने जैसे निर्णयों की. और मेरे इस मिजाज ने इस किरदार को निभाने में काफी मदद की. फिर सेट पर रणदीप सर और टीम ने भी काफी मदद की. और वैसे भी जब आप रणदीप हुड्डा जैसे डेडीकेटेड अभिनेता के साथ काम करते हो तब आप खुद ब खुद दोगुनी मेहनत के लिए प्रेरित हो जाते हो. और यहां तो रणदीप सर अभिनेता के साथ-साथ निर्देशक की भूमिका में भी थे, तो मोटिवेशन कई गुना बढ़ गया.

हाल में थिएटर में अपने कंटेंट और बेहतरीन अभिनेताओं की वजह से चर्चा में चल रही रणदीप हुडा की फिल्म वीर सावरकर में Santosh Ojha ने लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का किरदार प्ले किया है. संतोष अपने पहले ही सीन में बेहतरीन डायलॉग डिलीवरी की वजह से अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करते है. वो जब-जब परदे पर आते हैं रणदीप हुडा की उपस्थिति के बावजूद खुद के उम्दा अभिनेता होने का परिचय देते नज़र आते हैं

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आसान नहीं था लोकमान्य का किरदार निभाना

लोकमान्य तिलक जैसे स्वतंत्रता सेनानी का किरदार निभाना कतई आसान नहीं था. खासकर जब आप किसी रियल हीरो के हिस्टोरिकल कैरेक्टर को प्ले करते है तब आप के ऊपर एक अतिरिक्त किस्म का दबाव होता है. उस किरदार की सामाजिक स्वीकार्यता और उसके कद की मर्यादा को किसी किस्म की क्षति पंहुचाए बिना अपने अभिनय से उसे उसके उचित स्तर तक पंहुचा पाने की जिम्मेदारी का आप पर काफी दबाव होता है. ऐसे में किसी अभिनेता का क्राफ्ट और सालों की मेहनत ही उसकी राह आसान करती है. शुक्रगुजार हूं ऊपर वाले का कि इस चैलेंजिंग रोल को इस बेहतरी से निभा पाया जो आज लोगों की तारीफ बटोर रहा है.

santosh ojha with randeep huda

सबसे मुश्किल दौर था लंबे संघर्ष के बीच परिवार और समाज को अपनी कामयाबी का भरोसा दिलाना

जब आप अपने छात्र जीवन में एक ब्राइट स्टूडेंट होते हो तब बिहार जैसे परिवेश वाले परिवार और समाज को आपसे काफी अपेक्षाएं होने लगती है. और वह भी तब जब घर के अन्य बड़े अच्छे खासे नौकरी पेशे में हो. मेरे परिवार का एकेडमिक बैकग्राउंड हमेशा से बेहतर रहा है. परिवार के कई लोग बड़े-बड़े पदों पर रहे हैं. ऐसे में मुझसे भी अपेक्षाएं काफी थी जो मैंने नेवी में जाकर काफी हद तक पूरी भी की. पर वह कहते हैं ना, आप कितनी भी कोशिश कर लो पर होता वही है जो मंजूरे खुदा होता है. नेवी की ट्रेनिंग के दौरान ही मुझ पर मेरे बचपन का प्यार अभिनय हावी होने लगा. मैं चाह कर नेवी की ट्रेनिंग में अपना मन नहीं लगा पा रहा था. ऐसे में मैंने अपने मन की सुनी और ट्रेनिंग कंप्लीट होने से पहले ही उसे छोड़कर निकल पड़ा सपनों की दुनिया की तलाश में. जाहिर सी बात है घरवालों से काफी कुछ सुनने को मिला, बाहर के लोगों ने भी काफी ताने कसे. पर मन में ठान लिया था तो करना ही था. फिर अभिनय यात्रा के दौरान पिछले 14 सालों के लंबे संघर्ष में सबको बस सुनता रहा, और खुद को इस बात के लिए तैयार करता रहा कि इन सारी बातों का जवाब में एक दिन अपनी कामयाबी के साथ दूंगा.

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अभिनय के इस सफर में गुरुओं से मिले आशीर्वाद और बुद्धिजीवियों की सराहना ने संजीवनी का काम किया

ऐसे वक्त में जब आप तमाम तंज और आरोपों के बौछार का सामना कर रहे हों तब कुछ लोगों की सराहना और गुरुजनों का आशीर्वाद ही आपको संबल देता है. पुणे FTII में सीनियर्स और गुरुजनों का मेरे काम के लिए दिये गए सराहना, मुंबई में थिएटर के दौरान लीजेंड गुलजार साहब, आलोक चटर्जी सर, गोविंद निहलानी जी, दिवंगत टॉम अल्टर सर और मेरे गुरुदेव गोविंद नामदेव जैसे अभिनेताओं से मिली शाबाशी वक्त वक्त पर टॉनिक का काम करती रही, जिसके सहारे मैं खुद को मजबूत करता रहा.

santosh ojha as lokmanya tilak

लोकमान्य तिलक के इस किरदार के जरिए मुझे मिली सराहना ने आगे और बेहतर करने की हिम्मत दे दी है

आगे सफर काफी काफी लंबा है. यह तो बस एक बड़ा पड़ाव है जहां तारीफों के फूल मुझ पर फेंके जा रहे हैं. मुझे यह तारीफ समेटते हुए आगे अभी और लंबा रास्ता तय करना है. एक बात तो तय है अगर आपको खुद के क्राफ्ट और मेहनत पर यकीन हो फिर कायनात की सारी ताकत मिलकर आपको आपकी मंजिल की ओर धकेल ही देती है. इसकी किरदार ने भी मुझ में आगे और बेहतर करने की एक नई ऊर्जा भर दी है. साथ ही घरवालों और समाज की नजरों में भी मेरे लिए एक नई उम्मीद की किरण जगा दी है जो मुझ में अतिरिक्त उत्साह भर रहा है. आने वाले दिनों में यकीनन बेहतर और बेहतर करने की कोशिश रहेगी.