Tue. Apr 23rd, 2024

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खुद को दोहराने के बजाय रूक कर अलग तरह के काम का इंतजार करना बेहतर: सौरभ

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Saurabh Raj Jain


– गौरव

यूं तो टेलीविजन की दुनिया में रोज कई कलाकार आते हैं और कुछ शोज करके गुम हो जाते हैं, पर कुछ कलाकार ऐसे होते हैं जिनके द्वारा निभाया गया किरदार ही उनकी पहचान बन जाती है. कुछ ऐसी ही शख्सियत है टीवी और सिनेमा में काम कर चुके सौरभ राज जैन की. नाम शायद आपको अपरिचित सा भले लगे पर महाभारत, जय श्री कृष्णा और देवों के देव महादेव जैसे शोज में उनके द्वारा निभाया गया श्री कृष्ण और विष्णु का किरदार उनकी पहचान बताने के लिए काफी है. टीवी के ही अन्य शोज मसलन कसम से, यहां मैं घर-घर खेली और उतरन में भी वो अपनी पुरजोर उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं. आजकल सौरभ अपने नये शो महाकाली : अंत ही आरंभ है में निभा रहे भगवान शिव की भुमिका को लेकर चर्चा में हैं. अपने नये शो और अभिनय के सफर को ले सौरभ ने गौरव से खास बातचीत की.

– सबसे पहले तो बधाई नये शो की. शो के बारे में कुछ बताएं?

– महाकाली हमारा जो नया शो है, इसे एक यात्र कहें तो गलत नहीं होगा. यह यात्र है देवी पार्वती के महाकाली बनने की. इस शो की आधारभुत सोच ये है कि नारी को किसी भी क ाल में आगे बढ़ने या समस्याओं से जुझने के लिए किसी पुरूष की आवश्यकता नहीं होती. वो अपने आप में ही इतनी पूर्ण होती हैं कि किसी भी तरह की बाधा उन्हें रोक नहीं सकती.

– आजकल धार्मिक शोज की इतनी भरमार हो गयी है कि दर्शकों के लिए चुनाव करना मुश्किल हो गया है. ऐसे में लगातार इस तरह के शो करने से टाइपकास्ट होने का खतरा नहीं लगता?

– देखिये दोनों सवालों के अलग-अलग जवाब हैं. जहां तक बात टाइपकास्ट होने की है तो जबतक आपको दर्शक उस रूप में पसंद कर रहे हों तबतक खतरे वाली कोई बात ही नहीं. जिस दिन वो दर्शकों को बोर करने लगेगा मैं खुद ही वो र7ास्ता छोड़ दूंगा. वैसे मैं इन शोज के अलावा चेंज के किए कई अन्य तरह के शोज भी करता रहता हूं. जहां तक बात दर्शकों की है तो वो भीड़ में भी अपने लायक चीजे ढूंढ ही लेते हैं. जबतक ऐसे शोज उन्हें पसंद आते रहेंगे निर्माता-निर्देशक बनाते रहेंगे.

– धार्मिक किरदार निभाने की अलग चुनौतियां हैं. ऐसे किरदार की रिफरेंस कहां से लाते हैं?

– ये पूरा का पूरा एक थॉट प्रोसेस है. हम पहले भी इस तरह के कई किरदार कई शोज में देख चुके होते हैं. तो हर बार नया शो करते वक्त हमें राइटर्स और क्रियेटिव टीम के साथ ऐसे थॉट प्रोसेस से गुजरना पड़ता है कि इस किरदार में हम ऐसा क्या नया करें जो पहले के किरदारों ने नहीं किया. यह भी एक बंधन होती है कि हमें एक सीमा रेखा के बाहर नहीं लांघना है जिससे किरदार बनावटी या विवादास्पद लगे. मेरे नये शो में आप देखेंगे कि शिव जी का किरदार अपने सौम्य और प्रेरणाश्रोत के रूप में दिखाया गया है जो उनकी पिछली उग्र रूप वाले इमेज से बिलकुल अलग है.

– ऐसे किरदारों का औरा शो के बाद भी एक्टर को बेचैन रखता है. इस सिचुएशन से कैसे निबटते हैं?

– देखिये केवल ऐसे किरदार ही नहीं किसी तरह के किरदार को लंबे समय तक प्ले करने पर हमारे सबकॉन्सस माइंड में उसका असर कहीं न कहीं रह ही जाता है. धीरे-धीरे वक्त के साथ हमें यह अहसास होता है कि प्रोफेशनल लाइफ के इस दायरे को पार कर कैसे हम पर्सनल लाइफ में इंटर करें. मुङो लगता है मैं वो फेज पार कर चुका हूं जब ऐसे किरदारों का असर काम खत्म करने के बाद भी रहता था. अब मैं शुटिंग से बाहर आते ही सौरभ राज जैन हो जाता हूं.

– ऐसे किरदार के बाद पब्लिक लाइफ में भी लोग आपको भगवान के रूप में ही देखने लगते हैं. कभी ऐसी किसी घटना से सामना हुआ?

– कई बार ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं. वो मैं पब्लिकली नहीं बता सकता क्योंकि ये धर्म और आस्था से जुड़ा मामला है. मुङो पर्सनली अपना दायरा पता है पर कभी-कभी लोगों के भावनाओं की कद्र करते हुए मुङो उनकी सोच जैसा खुद को ढालना पड़ता है. उनकी सोच को रिस्पेक्ट देना पड़ता है क्योंकि उन्हीं की वजह से मेरी पहचान भी है.

– कब लगा कि अभिनय ही आगे की राह है?

– ईमानदारी से कहूं तो शुरू से कभी सोचा ही नहीं था कि इस क्षेत्र में जाना है. फैमिली में भी दूर-दूर तक कोई इससे जुड़ा नहीं था. कम्प्यूटर अप्लीकेशंस की पढ़ाई के वक्त मुङो मुंबई से एक ऑफर आया. अठारह की उम्र में इस तरह के ऑफर सीरियसली कम और एक्साइटमेंट में ज्यादा स्वीकारे जाते हैं. सो मैंने भी कर लिया. पर पहले काम के बाद अहसास हुआ कि ये करने से मुङो काफी खूशी मिल रही है. तब इसे सीरियसली लेना शुरू किया. और धीरे-धीरे यही प्रोफेशन बन गया.

– किसी शो का चुनाव करते वक्त सबसे पहले क्या देखते हैं?

– सबसे पहले मैं ये देखता हूं कि वो रोल मेरे लिए अलग और चैलेंजिंग कैसे हो. किरदार ऐसा हो जो मेरे पिछले काम से अलग हो. बार-बार खुद को दोहराने के बजाय रूक कर अलग तरह के काम का इंतजार करना बेहतर समझता हूं.

– हिंदी सिनेमा का बड़ा परदा कभी आकर्षित नहीं करता?

– कौन एक्टर होगा जो इसका जवाब ना में देगा. इस साल मैंने एक तेलुगू फिल्म की है नागार्जुनसर के साथ. उससे पहले भी एक इंडोनेशियन फिल्म की थी. इंतजार में हूं, पर जैसे ही मौका मिलेगा हिंदी सिनेमा की दहलीज जरूर लांघना चाहूंगा.

– टीवी और सिनेमा में अलग-अलग क्या खासियत पाते हैं?

– मेरे लिए दोनों माध्यम अलग-अलग हैं पर हम एक्टर्स को हर जगह एक्टिंग ही करनी होती है. अंतर बस दर्शकों के लिए हो सकता है पर हम काम करने वालों के लिए दोनों जगह एक से हैं.

– अभिनय के आपके लिए क्या मायने हैं?

– कहीं शाहरूख खान को मैंने कहते सुना था कि फ ॉर मी एक्टिंग इज वनली रिएक्टिंग. उस वक्त इस लाइन ने मुझपर ऐसा असर छोड़ा कि आज तक इस बात को फ ॉलो करता हूं.

– एक्टिंग के अलावे सौरभ को और क्या पसंद है?

– मुङो पढ़ना बहुत पसंद है. जब भी मौका मिलता है कोई न कोई किताब पढ़ता ही रहता हूं. इसके अलावा डांसिंग का भी शौकीन हूं. और इन सब के साथ-साथ जो एक बात और सबसे ज्यादा पसंद है वो है आउटिंग. जब भी मौका मिलता है घूमने निकल जाता हूं. आम इंसान की जिंदगी के हर लम्हें की तरह मैं भी अपनी जिंदगी इंज्वाय करना चाहता हूं.

– एक्टिंग की दुनिया में आने के लिए यंगस्टर्स को क्या एडवाइस देंगे?

– एक ही बात कहना चाहूंगा सपने देखिये, पर केवल और केवल सपने मत देखिये. काम करते रहिए. बाहर काम ना मिले तो खुद को अंदर से पॉलिस करने का काम करते रहिए. हिम्मत कभी मत हारिए सफलता जरूर मिलेगी.

बातचीत नवंबर 2017 में टीवी शो महाकाली: आरम्भ ही अंत है के प्रमोशन के दौरान की है