– दिव्यमान यती
पूरे भारत मे कोरोना महामारी के कारण लॉक डाउन लगा हुआ है. इस बीच सभी लोग अपने-अपने घरों में बंद हैं. सभी अपनी बोरियत को दूर करने के लिए फिल्मों और वेब सीरीज का सहारा ले रहे हैं. इसी बीच ओटीटी प्लेटफार्म पर क्राइम थ्रिलर, सस्पेंस जैसे कंटेंट की बाढ़ के बीच एक ऐसी सीरीज आती है जो दर्शकों को ठहरने का मौका देती हैं. हां मैं बात कर रहा हूँ अमेज़न पर स्ट्रीम हो रही सीरीज पंचायत के बारे में.
पंचायत उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के गांव फुलेरा की साधारण सी कहानी की असाधारण प्रस्तुति है. कहानी साधारण इसलिए क्योंकि यह हर दर्शक को अपनी ही कहानी लगेगी. मुख्य किरदार अभिषेक त्रिपाठी खुद का ही बदला हुआ नाम लगेगा. अभिषेक, जो कैरियर शहर में एक अच्छी हाई टेक कंपनी में रोजगार करते हुए बनाना चाहता है, लेकिन उसकी नियति उसे ग्राम सचिव के पद पर ले आती है. उसकी पोस्टिंग होती है फुलेरा गांव में. जो फिल्मी गांव जैसा नहीं है बल्कि भारत का असली गांव है. यहां उसकी मुलाकात कुछ दिलचस्प लोगों से होती है. जिनमें उसका सहायक विकास, प्रधान पति, उपप्रधान और महिला प्रधान सम्मिलित हैं. अभिषेक की एक सचिव के पद पर गांव में रहने के संघर्ष की कहानी है यह पंचायत. इस कहानी में दर्शकों को अभिषेक (सचिव) के जरिये हताशा, निराशा, हर्ष, उम्मीद और जज्बे इत्यादि से परिचित होने का मौका मिलेगा.
सीरीज को इतनी सादगी से बनाया गया है कि इसका हर किरदार आपको दिल की गहराइयों तक संतुष्ट करेगा, हर दृश्य में आपको सच्चाई दिखेगी, उत्तर भारत के किसी गांव से वास्ता रखते हैं तो इस कहानी का हर हिस्सा आपके गांव की कहानी जैसी ही लगेगी. और आखिर में सीरीज खत्म होते-होते आप हरेक किरदारों की मोहब्बत के गिरफ्त में होंगे. किरदार की मासूमियत, खासकर प्रधान (रघुवीर यादव) और सचिव (जितेंद्र कुमार) की जोड़ी आपको भावनाओं के सागर में बहा ले जायेगी. रघुवीर यादव तो ऐसे किरदारों के मंझे खिलाड़ी हैं ही (आमिर खान के प्रोडक्शन में आई फिल्म पीपली लाइव में इनका गंवाई अंदाज आप देख ही चुके होंगे), कोटा फैक्ट्री वाले जीतू भैया (जितेंद्र कुमार) भी अभिनय में एक लम्बी छलांग लगा जाते हैं. जितेंद्र कुमार ने एक हताश युवा, जो बेहतर कल की उम्मीद पर जी रहा है, के किरदार की सारी गांठों को सुलझा कर आपके सामने रख दिया है. सचिव सहायक बने चंदन रॉय ने तो क्रिकेट टीम के उस पिंच हीटर की तरह काम किया है जो हर गेंद पर छक्का लगाता हो. सबसे ज्यादा अपने किरदार से किसी ने ध्यान खींचा है तो वो चन्दन ही है. उपप्रधान के किरदार में फैसल मलिक ने जो देहाती अल्हड़पन दिखाया है वो आपको समय-समय गुदगुदाता रहता है. महिला प्रधान बनी नीना गुप्ता गाँव की हर उस औरत का प्रतिनिधित्व करती नजर आती हैं जो कहने के लिए तो प्रधान होती हैं पर पंचायत की कमान उनके पतिदेव ही सँभालते हैं, लेकिन बात जब घर की आती है तो घर के फैसलों में बिना उनके एक पत्ता भी ना हिलता. टीवीएफ के क्रिएटर्स ने इस बार भी दर्शकों की उम्मीद को जीवित रखा है. हल्के-फुल्के, हंसते-गुदगुदाते उन्होंने कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रकाश डाल दिया है.
अगर आप आजकल क्राइम-थ्रिलर-सस्पेंस या सेंसलेस इरोटिक से इतर कुछ ऐसा देखना चाहते हैं जिसे देखते हुए सुकून महसूस हो तो अमेजन प्राइम पर आयी इस सीरीज को जरूर देखें. और सिर्फ देखें ही नहीं इसे महसूस भी करें.
1 thought on “खूबसूरत अहसासों की पगडंडी पर चलना हो तो आइये ‘पंचायत’ फुलेरा”
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