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Halahal Review – मर्डर मिस्ट्री के बीच सिस्टम के काले सच को दिखाती ‘हलाहल’

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आपने ऐसी कोई फिल्म देखी है जिसका क्लाइमेक्स आपको पसंद तो आया हो लेकिन उसे स्वीकार करना मुश्किल हुआ हो? हां जरूर देखी होगी, लेकिन ऐसी फिल्में गिनती की ही मिलेंगी, मैंने इस फिल्म (Halahal) पर बात सीधे क्लाइमेक्स से शुरू की वो इसलिए क्योंकि इस फिल्म का क्लाइमेक्स इतना सच्चा है जिसे आपको स्वीकारने में थोड़ा वक़्त लग सकता है. हम सिनेमा में सब कुछ ठीक हो जाने वाले दौर से निकल कर आये हैं. जहां क्राइम-थ्रिलर फिल्मों में खूनी की तलाश पूरे होने पर मन शांत होता है. वो कहते हैं अंत भला तो सब भला लेकिन जब अंत आपको देश के सिस्टम का आईना दिखाता हुआ आपके दिल में असीमित बेचैनियां पैदा कर जाए और बावजूद इसके वो आपके दिल में उतर जाए फिर उसके बारे में क्या कहेंगे! कड़वा मगर दिलचस्प. परेशान ना होइए मैं कोई स्पॉइलर नहीं दे रहा. इस फिल्म की इतनी चर्चा न होने के कारण इसकी मूल आत्मा को आपके सामने रखना जरूरी है ताकि आप ऐसे सिनेमा को मौके दें.

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कहानी –

कहानी की शुरुआत एक लड़के के पीछे भागती लड़की और उस लड़की के पीछे भाग रहे कुछ लड़कों वाले सीन से होती है. लड़की का भागते-भागते ट्रक से टकरा कर एक्सीडेंट हो जाता है. आनन-फानन में वो लड़के उस लड़की की बॉडी को सड़क के किनारे जला कर फरार हो जाते हैं. इसके बाद होती है इन्वेस्टिगेशन की शुरुआत. जहां पुलिस इसे आत्महत्या करार देकर केस रफादफा करने में लग जाती है. वहीं दूसरी तरफ उस लड़की के पिता जो कि एक डॉक्टर होते हैं, इसे हत्या बता कर उसे न्याय दिलाने के लिए लड़ाई लड़ने लगते हैं. उनका साथ देता है एक घूसखोर पुलिस ऑफिसर यूसुफ कुरैशी. ये इंस्पेक्टर बिना पैसे लिए कोई काम नहीं करता, डॉक्टर का साथ देने के लिए भी वो पैसे लेता है. जैसे-जैसे वो दोनों सच के करीब जातें है वैसे-वैसे कई कड़वे सच उनके सामने आते हैं. इंस्पेक्टर के पैसे के प्रति ईमानदारी डॉक्टर के सामने कभी-कभी मुश्किलें पैदा करती है. सच-झूठ की इस लड़ाई में सच को छिपाने के लिए फर्जी पोस्टमॉर्टम, फर्जी एनकाउंटर, बल प्रयोग, डर्टी पॉलिटिक्स इन सारी चीजों का जिक्र इसमें दिखता है. एक बाप का अपनी बेटी की मौत के पीछे का काला सच जानने की पूरी कहानी को दर्शाती है फिल्म ‘हलाहल'(Halahal).

फिल्म ‘हलाहल’ का पोस्टर

अभिनय-

सचिन खेडेकर हिंदी सिनेमा के बहुत पुराने और मंझे हुए अभिनेता हैं, उन्हें 90 के दशक से सिनेमा में अलग-अलग तरह के किरदार में देखा गया है. वो इस फिल्म में मुख्य भूमिका में अपनी बेटी के न्याय के लिए जूझते बाप के किरदार में हैं, जहां उन्होंने कोई कमी नहीं छोड़ी है. घूसखोर इंस्पेक्टर यूसुफ यानी वरुण सोबती उनकी एंट्री के बाद से ही फिल्म का मूड और लेवल दोनों हाई हो जाता है. पिछली बार वेब सीरीज ‘असुर’ में सीबीआई ऑफिसर की भूमिका में दिखे थे लेकिन वहां वो बहुत गंभीर किरदार में थे. वहीं इस फिल्म में ठीक उसके उलट मजाकिया किरदार में नजर आये हैं. जो घुस खाता, गालियां बकता, किसी को कहीं भी थप्पड़ मार देता, जिसका ईमान-धर्म ही पैसा है. उन्होंने ने इस किरदार को इतने मजे में निभाया है कि उन्हें स्क्रीन पर और देखते रहने की चाहत होती है. वाकई वो आने वाले समय में और भी कमाल करने वाले हैं. कहानी तो इन्हीं दो किरदारों के इर्द-गिर्द घूमती है लेकिन इनके साथ के सहयोगी कलाकर परनेन्दू, मनु ऋषि, सनाया सब अपने किरदार में सहज दिखे हैं. फिल्म (Halahal) की कास्टिंग अच्छी है.

Halahal
फिल्म ‘हलाहल’ का एक सीन

लेखन-निर्देशन-

फिल्म ( Halahal) के निर्देशक से पहले लेखक का जिक्र बनता है जो हैं ज़ीशान कादरी, हाँ वही गैंग्स ऑफ वासेपुर के ‘डेफिनिट’. उन्होंने उसमें एक्टिंग के साथ उस फिल्म की लेखन टीम का हिस्सा भी थे. इस फिल्म कहानी भी बहुत ही बारीक तरीके से लिखी गयी है। इस विधा में ज़ीशान की कलाकारी हम पहले भी देख चुके हैं. इसबार भी एक खास कहानी लेकर आये हैं. निर्देशक रणदीप झा का निर्देशन अच्छा रहा है यूपी के ग़ाज़ियाबाद की कहानी को उसी अंदाज में फिल्माया है. कहीं भी कहानी को कमजोर नहीं होने दिया, कारण है इसका मजबूत स्क्रीनप्ले. फिल्म पूरी तरह से इंटेंस है लेकिन उसी इंटेस के बीच वरुण सोबती की कॉमिक टाइमिंग आपको खुशी और राहत बीच-बीच देती रहेगी. फिल्म के डायलॉग में यूपी वाला स्वाद रखा गया है. जो दर्शकों को जरूर पसंद आएंगे. कहीं-कहीं कुछ जगहों पर कुछ किरदार और उनके बीच का कनेक्शन को ठीक ढ़ंग से समझा पाने में नाकाम दिखाई देती है. कुछ गुत्थियां बड़े आराम से सुलझती मालूम पड़ती हैं. क्लाइमेक्स के आते-आते आपके दिमाग की मेहनत बढ़ जाएगी.

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यूनिक क्लाइमेक्स के इतर भी इस फिल्म (Halahal) में इतनी ताकत है कि ये पूरे डेढ़ घंटे आपको अपने कहानी के फ्लो के साथ बहते रहने का मौका देगी. आपके अंदर सस्पेंस और थ्रिल वाले भाव को जगाएगी. सिस्टम की काली सच्चाई भी दिखाएगी. सिनेमा के इस बदलते दौर में जहां कहानियां और उनके प्रजेंटेशन का तरीका अनोखा और आकर्षक हो रहा है वहां ऐसी फिल्मों को मौका जरूर मिलते रहना चाहिए.

– Divyaman Yati