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Film Review TGIF: धर्म की बेड़ियां तोड़ पारिवारिक मूल्यों की बात कहती है द ग्रेट इंडियन फैमिली

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  • गौरव

निर्देशक व लेखक: विजय कृष्ण आचार्य

कास्ट: विक्की कौशल, मानुषी छिल्लर, कुमुद मिश्रा, मनोज पाहवा, यशपाल शर्मा, सादिया सिद्धकी, अलका अमीन, आसिफ, आशुतोष उज्ज्वल

स्टार: ***1/2

परिवार वो नाव है जो बीच मझधार उठे तूफानों से भी बचाकर आपको सही सलामत किनारे पार लगा देता है. इसी सोच की पृष्ठभूमि पर बुनी है द ग्रेट इंडियन फैमिली (Film Review TGIF) की कहानी. कहानी में कुछ भी नया नहीं है, मनमोहन देसाई मार्का ऐसी कई कहानियां आप अस्सी नब्बे के दशक में देख चुके होंगे जहां जन्म के समय बच्चा अपने परिवार से अलग होकर किसी और परिवार तक पंहुच जाता है. उसकी परवरिश नए परिवार के संस्कारों और मूल्यों के साथ होती है. और जब इस राज से पर्दा उठता है तब एक सिनेमैटिक ट्विस्ट और क्लाइमैक्स के जरिए इस कहानी को मुकम्मल अंजाम दिया जाता था. यशराज बैनर के तले बनी विक्की कौशल की TGIF भी उसी कड़ी की फिल्म है. बावजूद इसके हल्के फुल्के व्यंग और इमोशन की चाशनी में लपेट कर बनाई गई ये फिल्म आपको गुदगुदाएगी, भावुक करेगी और कुछ सवालों के साथ कुरेदेगी भी.

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क्या है कहानी

कहानी वेद व्यास त्रिपाठी उर्फ बिल्लू उर्फ भजन कुमार की है. जो बलरामपुर के एक पंडित परिवार का लड़का है. ब्राह्मण परिवार के संस्कारों के साथ पला बढ़ा वेद बचपन से ही अपनी भजन गायकी की वजह से पूरे इलाके में भजन कुमार के नाम से मशहूर है. परिवार में पिता के अलावा जुड़वा बहन, चाचा – चाची, बुआ भी है. पूजा पाठ और धर्म कर्म के साथ थोड़ा मजनूं टाइप दिल रखने वाले वेद की फैमिली और सोशल लाइफ मजे से कट रही होती है तभी उसके जीवन में एक भूचाल आता है जब उसे यह पता चलता है कि उसकी पैदाइश एक मुस्लिम घर में हुई है और दंगे के दौरान उसकी मां की मौत के बाद उसे इस ब्राह्मण माता – पिता ने अपने परिवार का हिस्सा बना लिया. धीरे – धीरे यह सच परिवार के साथ पूरे इलाके के लोगों को पता चल जाता है. इस सच के बाद वेद की पारिवारिक और सामाजिक जिंदगी कैसे धर्म और मजहब के भंवर में फंसती है और वो और उसका परिवार कैसे इस भंवर से बाहर निकलते हैं, इसका मुजायरा आप थिएटर में करें तो ही बेहतर होगा.
कहानी भले साधारण हो पर इसकी बुनावट जरूर अपनी ओर ध्यान खींचती है. धर्म और संकीर्ण सोच पर हास्य व्यंग्य के जरिए बड़ी ही खूबसूरती से चोट किया गया है. फिल्म बड़े ही सीधे और सधे शब्दो में ये बता जाती है कि धर्म/मजहब की ओछी बातों से परे आपकी परवरिश, आपका परिवार और पारिवारिक मूल्य ही आपका व्यक्तित्व तय करते हैं.

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कैसा है अभिनय

सीधी सादी और छोटे शहर की कहानी के लिहाज से कलाकारों का चयन बेहतर रहा है. वेद के किरदार में विक्की कौशल ने उसके खिलंदड़पन से लेकर संजीदगी तक को बखूबी परदे पर उकेरा है. उरी, शहीद ऊधम सिंह और राजी जैसी फिल्मों के बाद ऐसी हल्की फुल्की फैमिली फिल्म में उन्हें देखना थोड़ा खलता तो जरूर है, पर विक्की ने अपने अभिनय के बलबूते ही इस साधारण सी कहानी को महसूस करने लायक बना दिया है. कुमुद मिश्रा और मनोज पाहवा भी किरदार के लिहाज से उम्दा बन पड़े हैं. मानुषी छिल्लर के हिस्से ज्यादा करने को कुछ था नहीं बावजूद इसके वो जब जब परदे पर आती हैं, आकर्षित करती हैं. फिल्म में गाने तो वैसे कम ही हैं पर बेहतर बन पड़े हैं. गानों का बड़ा कैनवास और रंगीनियत यशराज फिल्म्स की विरासत को आगे बढ़ाते से लगते है.

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क्यों देखें – आज के धार्मिक विषमताओं भरे माहौल में अंदर के इंसान से कुछ सवाल करने हों तो जरूर देखें. हल्के फुल्के इंटरटेमेंट के शौकीन हो तब भी फिल्म आपके लिए है.

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