क्रिमिनल जस्टिस मेरे करियर का अहम मोड़: रानू सिंह (Raanu Singh)
1 min read- फिल्मेनिया ब्यूरो
सबसे पहले तो अपने बैकग्राउंड के बारे में बताइए ?
बिहार के मोतिहारी जिला के पिपरा थाना के रामगढ़- चिंतामनपुर गांव का रहने वाला हूं , पिता श्री नंदकिशोर सिंह एक किराना दूकान चलाते हैं और माता रिंकी देवी हाउसवाइफ हैं. शुरूआती पढ़ाई -लिखाई गाँव से हुईं, मैट्रिक के बाद आगे की पढाई के लिए पटना आ गया.
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पटना में अपने थिएटर के शुरुआती दिनों के बारे में बताएं.
शुरू के दिनों में सबको संघर्ष करना पड़ता हैं अच्छे काम के लिए, अच्छे रोल के लिए, सो मुझे भी करना पड़ा. शुरू मे छोटे – मोटे रोल मिलते थे, लेकिन डेढ़-दो साल के बाद ही लोगों को मेरे काम पर भरोसा हो गया. फिर शुरू हुईं एक नयी यात्रा. मैं रागा ग्रुप से जुड़ गया जो राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से पास आउट रणधीर कुमार चलाते थे. उनके साथ मैंने बहुत नाटक किये, हर महीने हम लोग दूसरे शहर जा कर नाटक करते थे. उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला. मुंबई आने से पहले तक मैं उनके साथ जुड़ा रहा. शुरू के दिनों में पटना में पुलिस फ़ाइल के लगभग 40 एपिसोड में काम किये जो बिग मैजिक चैनल पर आते थे, उसके बाद बिहार सरकार के लिए दो डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म की. एक साउथ की फ़िल्म पुजाई में छोटा सा किरदार किया, जिसमें साउथ के सुपरस्टार विशाल और श्रुति हसन थे. यूनिसेफ़ के लिए दो ऐड फ़िल्म किया, फिर MX player पर आई वेब सीरीज Runaway lugaai में काम किया जिसमे संजय मिश्रा, रवि किशन, रूही सिंह, नविन कस्तूरिया थे. संजय मिश्रा के साथ एक फ़िल्म death on sunday में किया. कुछ शार्ट फ़िल्म भी की. ये सारे काम पटना में रह कर किया.
थिएटर के दिनों के संघर्ष कैसे रहे ?
पटना में जब थिएटर से जुड़ा तो सबसे बड़ी मुसीबत यह थी कि नाटक में पैसे नहीं थे. नाटक करना तो ठीक था, पर घर का किराया, खाना कैसे चलेगा, यह मुख्या समस्या थी. क्योंकि जब तक पढ़ाई करता था, तो घर से पैसे मिल जाते थे. फिर मैंने वहीं एक कूरियर कंपनी ज्वाइन कर लीं, 30 से 40 कूरियर हर रोज़ डिलीवर करने पड़ते. और महीने के अंत में 4500 रुपया मिलता था. मैं सुबह 8 से 1 बजे तक कूरियर बांटता और फिर रिहर्सल के लिए चला जाता. ये सिलसिला 3 साल तक चलता रहा, बीच में बहुत मुसीबतें भी आई, लेकिन ज़िन्दगी चलती रही. बाद में मुझे अभिनय के लिए स्कॉलरशिप मिल गयी तब जाकर मैंने कूरियर की नौकरी छोड़ दी. क्यूंकि कूरियर के कारण कभी -कभी मुसीबत आ जाती थी, और जिस तरह का काम मैं करना चाहता था, नौकरी के कारण कर नहीं पाता था.
पहली बार वह कौन सी घटना थी जिससे आपको लगा कि आपको अभिनय के क्षेत्र में जाना है.
बचपन से फ़िल्म देखने का नशा था. स्कूल के नाटकों में एक-दो काम करने का मौका मिला था. लेकिन पटना आने के बाद फिल्में देखने और अभिनय करने का नशा और बढ़ गया. मैं SMU से BBA कर रहा था तभी एक दिन मुझे पता चला पटना में कालिदास रंगालय हैं जहाँ नाटक होते हैं. मैं वहां गया और जुड़ गया. फिर नाटकों की लम्बी यात्रा रही.
अभिनय करने की बात पर घर वालों का कैसा रिएक्शन रहा ?
पहले तो मैंने बताया नहीं कि मैं नाटक कर रहा हूं, क्यूंकि मैं BBA कर रहा हूं. बाद में बताया तो कोई ऐसा बुरा रिएक्शन नहीं था, क्यूंकि उन्हें भरोसा था मुझ पर मैं जो भी करूंगा वो सोच समझ कर ही करूंगा.
पटना से मुंबई की यात्रा कैसे शुरू हुई ?
2018 के बाद मैंने तय किया कि अब मुझे मुंबई जाना चाहिए. मैंने पहले से ही यह तय कर रखा था कि 6-7 साल रंगमंच करने और खुद को पूरी तरह तैयार करने के बाद ही मुंबई जाऊंगा. तो जब मुझे लगा अब मैं मुंबई के लिए पूरी तरह तैयार हूं तो 2019 के दिसंबर में मैंने मुंबई की राह पकड़ ली.
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मुंबई ने कैसे स्वागत किया ?
2019 के दिसंबर में जब मुंबई आया उसके दो महीने बाद पुरे देश में लॉकडाउन लग गयी, मैं जिनके पास रुका था वो घर गए और उधर ही रह गए. मुसीबत तो जैसे अपना साथी हो चला था. हमेशा साथ ही चल रहा था. मुंबई जैसे आया, मुसीबत ने यहाँ भी पीछा नहीं छोड़ा. एक तो कोरोना और ऊपर से अचानक कान के परदे का फट जाना. कुछ सुनाई ही नहीं देता था, किसी को जानता भी नहीं था. मुंबई में, 1 साल तक ऐसी मुसीबत आई कि लगने लगा था जैसे ज़िन्दगी ख़त्म. लेकिन हिम्मत नहीं हारी, इलाज कराता रहा, और कोशिश करता रहा. बीच में एक-दो दिन के काम आये, पर करता कैसे कुछ सुनाई ही नहीं देता था. मैं मुंबई मे अकेला था दो साल, पर हिम्मत नहीं हारी और कोशिश करता रहा.
crime petrol, crime alert, molkki, kundali bhagy जैसे टीवी शोज किये.
पंकज त्रिपाठी जैसे अभिनेता के साथ क्रिमिनल जस्टिस मिलने की कहानी क्या रही ?
एक रात मेरे पास एक ऑडिशन कॉल आया कि स्क्रिप्ट पर ऑडिशन बना कर भेज दो. मैंने अगले दिन अपने एक मित्र शेखर को कॉल किया कि ऑडिशन बनाना हैं. हमने ऑडिशन बनाया और भेज बीते. बीते दो सालों में इतनी बार रिजेक्ट हो चूका था कि उम्मीद बहुत ज्यादा थी नहीं. पर जैसे ही शाम को फ़ोन आया कि आप मोती के किरदार के लिए लॉक हो चुके हैं तो सहसा मुझे विश्वास ही नहीं हुआ. मुझे सबसे ज्यादा ख़ुशी इस बात की थी कि जिस सीरीज में पंकज त्रिपाठी जी काम कर रहे हैं, मुझे उनके साथ काम करने को मौका मिल रहा है.
अभिनेताओं के इस भीड़-भाड़ वाले दौर में आप खुद को कैसे मोटिवेट करते हैं ?
अच्छा काम आपको हमेशा मोटिवेट करता हैं. जब हाथ में काम नहीं होता हैं, मैं अपने ऊपर काम करता हूं. लोगों के अच्छे काम देखता हूं, वो भी मोटीवेट करता हैं. और ईश्वर पर भरोसा, मेरा ईश्वर पर अटूट विश्वास रहता हैं जो कभी मुझे हारने नहीं देते.