Sat. Apr 27th, 2024

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भविष्य की भयावह तस्वीर है कड़वी हवा

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kadwi hawa


-गौरव

सिनेमा दो तरह के होते हैं. पहला वो जो कमायी के जोड़-घटाव वाले समीकरण के खांचे में रखकर बनाया गया हो, दूसरा वो जो इस समीकरण से बेपरवाह बस ईमानदारी की कड़वी चाशनी में लिपटा हो. कड़वी हवा उसी दूसरी किस्म की फिल्म है. बॉक्स ऑफिस की सोच वाली भेड़चाल से दूर, एक ईमानदार मगर कड़वी सच्चाई बयां करती फिल्म. क्लाइमेट चेंज जैसी भयावह हकीकत और उसके दुष्परिणाम का आईना. कमोबेश जिसका टीजर दिल्लीवाले स्मॉग हादसे के दौरान देख चुके हैं. स्थिति की भयावहता का अंदाजा तब आपको खुद ही होता है जब फिल्म के एक दृश्य में आप क्लास रूम में टीचर को सवाल पुछते देखते हैं देश में कितने मौसम होते हैं? और जवाब आता है दो, जाड़ा और गर्मी, क्योंकि बरसात तो उसने देखी ही नहीं. यह एक जवाब आपको अंदर तक दहला देता है और मजबूर करता है सोचने को कि कब ये जवाब दो से एक हो जाए और फिर एक से विनाश में बदल जाए. आई एम कलाम और जलपरी जैसी फिल्मों से चर्चा में आये नीला माधव पांडा की यह फिल्म शायद टिकट खिड़की पर भले शेखी बघारती नजर न आये, पर यकीनन आपको झकझोरती, स्थिति की भयावहता से दहलाती और भविष्य के लिए आगाह करती नजर आएगी.
कहानी बुंदेलखंड के छोटे से गांव की है जहां अंधा किसान हेडू (संजय मिश्र) अपने बेटे मुकुंद (भुपेश सिंह), बहू (तिलोत्तमा सोम) और दो पोतियों के साथ रहता है. गांव में पिछले 15 वर्षाें से बारिश नहीं हुई है. सूखे की वजह से गांव का हर किसान बैंक का कजर्दार हो चुका है. हर साल बिन बरसात फसल चौपट होने की वजह से कोई क र्ज चुका नहीं पाता. मुकुंद भी ऐसे ही कर्जे के बोझ तले दबा है. हेडू इस कर्जे की जानकारी के लिए बैंक के चक्कर भी लगाता है पर निराशा ही हाथ लगती है. कर्ज की वसूली के लिए बैंक की ओर से रिकवरी एजेंट गुन्नू (रणवीर शौरी) भेजा जाता है. गांव वाले गुन्नू को यमदूत के नाम से बुलाते हैं. गुन्नू की भी अपनी समस्या है. एक ओर उसकी फैमिली है जो उड़ीसा के तुफान में फंसी है और दूसरी ओर वो जिस भी गांव में रिकवरी के लिए जाने को होता है वहां के कई किसान कर्ज वापसी की दहशत से आत्महत्या कर लेते हैं. ऐसे में जब गुन्नू गांव में कर्ज वसूली के लिए जाता है तब उसकी मुलाकात हेडू से होती है. मौसम की मार झेल रहे दोनों अपनी समस्या से निबटने के लिए साथ आते हैं.
संजय मिश्रा पहले भी समय-समय पर अभिनय की विविधताओं से चौंकाते रहे हैं. गोलमाल अगेन के बाद उन्हें इस रूप में देखना दिली सुकून देता है. हेडू के किरदार में संजय की भावसंप्रेषणता ही रही जो कहानी के दर्द को जरूरी धरातल प्रदान करती है. रही-सही कसर रणवीर शौरी ने चेहरे की झुंझलाहट और अभिनय की बारीकी से पूरी कर दी. कहानी के साथ-साथ चलता गुलजार का गीत मैं बंजर भी कुरेदने का काम करता है.
प्रकृति और इंसान के बीच की खींचतान से उपजती भयावह स्थिति को करीब से देखना, समझना और संभलना चाहते हों तो फिल्म एक बार जरूर देखें.